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बीकानेर में हर साल चाइनीज मांझा बेचने और इस्तेमाल करने पर सख्त पाबंदी की बात होती है, मगर हकीकत में ये प्रतिबंध सिर्फ सरकारी फाइलों तक सीमित है। सड़क पर चलते लोगों की गर्दन कट रही है, पक्षी तड़प-तड़प कर मर रहे हैं और मांझे के ये ‘कातिल धागे’ धड़ल्ले से दुकानों पर बिक रहे हैं। दैनिक भास्कर के फोटो जर्नलिस्ट मनीष पारीक ने शुक्रवार को जब स्टिंग ऑपरेशन किया, तो शहर की दो दुकानों से मांझा आसानी से खरीद लिया और प्रशासन पूरी तरह बेखबर दिखा। दैनिक भास्कर के पास इस स्टिंग ऑपरेशन के वीडियो और ऑडियो रिकॉर्डिंग मौजूद हैं, जो यह साबित करते हैं कि प्रशासन की कार्रवाई सिर्फ प्रेस नोट्स तक सीमित है। अगर समय रहते कार्रवाई नहीं हुई, तो ये मांझा किसी दिन किसी मासूम की जान लेकर रहेगा। भास्कर व्यू
त्यौहार, आनंद और मस्ती लेने के लिए होता है। लेकिन अपनी खुशी के लिए किसी की जान पर बन आए ऐसा काम नहीं करना चाहिए। चाइनीज मांझे ये नहीं जानते कि वो आपके परिवार का सदस्य है, जिसके शरीर पर फिरा वहां घांव करके छोड़ेगा। कई जाने जा चुकी हैं। जितने दोषी इसे बेचने वाले है उतने की दोषी चोरी छिपे खरीदने वाले भी हैं। प्रशासन को दोनों पर कार्रवाई करनी चाहिए। 10 मई 2024 को हुई घटनाएं अभी भूले नहीं है। उन युवाओं के चेहरे पर मांझे के निशान शरीर पर चिपक गए हैं। स्टिंग ऑपरेशन: मौत की डोर कैसे आसानी से मिलती है केस 1 : गजनेर रोड की दुकान भास्कर के फोटो जर्नलिस्ट ने जब गजनेर रोड की एक दुकान पर चाइनीज मांझा मांगा, तो दुकानदार ने पहले तो मना किया। लेकिन एक व्यक्ति का नाम लेते ही, दुकानदार ने कहा ‘सामान मेरी दूसरी दुकान पर है, आप पीछे आइए। पत्रकार के पीछे-पीछे चलते हुए वह जस्सूसर गेट स्थित एक और दुकान पर पहुंचा, जहां एयर कूलर के अंदर रखा चाइनीज मांझा दिया। बारकोड स्कैन कराके 500 ले लिए। केस 2 : रोशनी घर के पास
दूसरी खरीद रोशनी घर इलाके में हुई, शुरू में झिझक दिखी, लेकिन जब फोटो जर्नलिस्ट ने पहले खरीदे गए मांझे की चरखी दिखाई, तो दुकानदार ने विश्वास में लिया। उसने अपनी चरखी को ‘बेस्ट क्वालिटी’ बताकर 600 रुपए मांगे। खरीद की हामी भरने पर वह बाइक से 5 मिनट में लौटा और कट्टे में छुपाकर लाया गया मांझा सौंप दिया। अरे जिम्मेदारों आप भी बोगस ग्राहक बनकर पकड़ सकते हैं चाइनीज मांझा न सिर्फ इंसानों की गर्दन काटता है, बल्कि हर साल हजारों परिंदे भी इसकी धारदार नायलॉन से उलझकर तड़पते हैं। बावजूद इसके, बीकानेर के बाजारों में यह आसानी से मिल रहा है। अक्षय तृतीया जैसे अवसरों पर पतंगबाजी का जुनून जानलेवा बन जाता है। स्थानीय व्यापारी जानबूझकर प्रतिबंधों को दरकिनार कर रहे हैं। कानून की आंखों में धूल झोंककर लोगों की जिंदगी से खेल रहे हैं।

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