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फर्जी एनओसी से किडनी ट्रांसप्लांट के मामले की जांच में अब मनी लॉन्ड्रिंग के सबूत मिले हैं। स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम (एसआईटी) ने इसका पूरा ब्यौरा व दस्तावेज प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के जयपुर जोनल ऑफिस को सौंपे हैं। एजेंसी के अधिकारी इनका अध्ययन कर रहे हैं। विश्वस्त सूत्रों के अनुसार ईडी जल्द ही कार्रवाई को अंजाम देगी। एसआईटी की ओर से दिए गए ब्यौरे में सामने आया है कि बांग्लादेश से किडनी ट्रांसप्लांट के लिए आने वाले लोगों से दलाल हॉस्पिटल की फीस से तीन से चार गुना तक रकम वसूलते थे। किडनी बेचने वाले शख्स को 2 लाख रुपए ही मिलते थे। हॉस्पिटल की फीस जमाने होने के बाद भी दलाल मुर्तजा अंसारी के पास मोटी रकम बचती थी। इसका एक हिस्सा वो अपने पास रखता था और बाकी डॉक्टर, हॉस्पिटल प्रबंधन व फर्जी एनओसी बनाने के नेटवर्क के बीच बांटता था। पूरा पैसा दलाल करी देखरेख में अलग-अलग रूट से भारत पहुंचता था। अब आईवीएफ सेंटर को अटैच करने की तैयारी ईडी फोर्टिस हॉस्पिटल में ट्रांसप्लांट करने वाले डॉ. संदीप गुप्ता की पत्नी शिखा गुप्ता के दिवा आईवीएफ सेंटर को अटैच करने की तैयारी कर रही है। एसआईटी की जांच में सामने आया है कि सेंटर के खाते में लगभग पूरी रकम नकद जमा हुई, जो व्यवाहरिक रूप से संभव नहीं है। इस रकम का सेंटर में इलाज करवाने वाले मरीजों के रिकॉर्ड से मिलान नहीं हुआ। एसआईटी का मानना है कि डॉ. संदीप गुप्ता को दलाल के जरिए जो अतिरिक्त रकम मिली उसे आईवीएफ सेंटर के खाते में जमा किया। एसआईटी ने इससे जुड़े दस्तावेज भी ईडी को सौंपे हैं। डॉ. गुप्ता अभी न्यायिक हिरासत में हैं। ट्रांसप्लांट के लिए डॉलर में भी भुगतान हुआ एसआईटी की जांच में यह भी सामने आया है कि ट्रांसप्लांट के लिए हॉस्पिटल को रुपए के अलावा डॉलर में भी नकद भुगतान किया गया। कई मामलों में भारतीय व्यक्तियों के क्रेडिट कार्ड से भी हॉस्पिटल को भुगतान किया गया। ये कार्ड दलालों के नेटवर्क में शामिल लोगों के हैं। हॉस्पिटल के रिसीवर व डोनर के रिकॉर्ड में भी इन्हीं लोगों के मोबाइल नंबर दर्ज हैं। बता दें कि भास्कर ने सबसे पहले यह खुलासा किया था कि दलाल रिसीवर से एक किडनी ट्रांसप्लांट के 32 लाख रुपए तक वसूलते थे, लेकिन डोनर को 2 लाख रुपए ही देते थे। जबकि हॉस्पिटल को 7 से 10 लाख का भुगतान होता था।

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