भास्कर संवाददाता | पाली पिछली होली पर धुलंडी के दिन नहीं निकली गांवशाही गेर इस बार परंपरागत रूट से निकली। इसी के साथ खर्ची लुटाने की बरसों पुरानी परंपरा फिर से जीवंत हो उठी। सर्व हिंदू समाज ने होली से एक दिन पहले बैठक कर जो रूपरेखा तय की, उसके अनुसार ही गांवशाही गेर शाम 4 बजे जोधपुरिया बारी से रवाना हुई जो शहर के िवभिन्न रास्तों से होते हुए प्यारा चौक से गुजरी। धुलंडी के दूसरे दिन शनिवार को धानमंडी से श्याम संग गुलाल कार्यक्रम हुआ। इसमें भगवान श्रीकृष्ण का रूप धरकर खर्ची रूपी गुलाल बांटी गई। इसके बाद धुलंडी के दूसरे दिन यानी शनिवार को श्याम संग गुलाल कार्यक्रम में गुलाल रूपी खर्ची लेने के लिए महिला-पुरुष उमड़ पड़े। धानमंडी से शुरू हुई यह इस श्याम संग गुलाल में उत्साह अधिक था। करीब इस बार एक हजार किलो गुलाल उड़ी। इस गुलाल के लिए पूरे रास्ते लोग हाथ फैलाए खड़े नजर आए। गुलाल को शगुन मानकर घर ले जाते हैं और तिजोरी में रखते हैं। गुलाल इतनी उड़ी कि पूरे रास्ते की सड़कें व आस-पास की दुकानों के शटर तक लाल हो गए। जिनको कई लोगों को गुलाल नहीं मिली वे सड़क या शटर पर लगी गुलाल को ही शगुन रूपी घर लेकर गए। इस दौरान पुलिस भी काफी सक्रिय दिखी। जगह-जगह पर शहरवासियांे द्वारा स्वागत भी किया गया। गौरतलब है कि इस बार होली से पहले ही सर्व हिंदू समाज के लोगों ने बैठक कर गांवशाही गेर निकालने के लिए तैयारियां कर दी थीं। गौरतलब है कि इससे पहले दूसरे नाम से सवारी निकलने की परंपरा थी, जो पिछले साल नहीं हो सकी। परंपरा के अनुसार इस कार्यक्रम के बाद ही बाजार में दुकानें खोली जाती हैं। धुलंडी के दिन शहर मंे ढोल और चंग की थाप पर घूंघरू बांध खनकते गेरिये, राजस्थानी वेशभूषा धारण कर हाथों में छतरियों, लकड़ियां और गोल गोल घूम कर नृत्य कर खनकाते डांडिया, यह नजारा गांवशाही गेर में देखने को मिला। शहरवासियों के चेहरे पर अलग ही चमक थी। धुलंडी के दिन सुबह से ही लोगांे ने जमकर एक दूसरे को कलर व गुलाल लगाकर होली खेली। कॉलोनियों में अलग से व्यवस्थाएं की गई थीं। डीजे की धुनांे पर लोग फाल्गुनी गानों पर थिरक रहे थे।
फिर निकली गेर, श्याम ने बांटी गुलाल वाली खर्ची
