जिसके पास बधिर का सर्टिफिकेट है वे आम लोगों की तरह सुन रहे हैं। यह संभव नहीं है, लेकिन एसएमएस के ऑडियोमेट्री डिपार्टमेंट में सक्रिय गिरोह फर्जी बधिर सर्टिफिकेट बना रहे हैं। जाली दस्तावेज से तैयार रिपोर्ट दे रहे हैं, जांच में मशीन पर डमी मरीज बैठा रहे हैं। इसी सर्टिफिकेट के आधार पर कई ने सरकारी नौकरी पा ली तथा कई कतार में लगे हुए हैं। भास्कर ने इस फर्जीवाड़े के कई मामले खोजे हैं। ज्यादातर फर्जी मामले स.माधोपुर, भरतपुर और धौलपुर के हैं। दरअसल, दिव्यांग कोटे से भर्ती होने वाले 44 ऐसे कर्मचारियों को एसओजी ने संदेह के घेरे में लिया है। अब इनकी मेडिकल बोर्ड से जांच होगी। इनमें सबसे अधिक 18 कर्मचारी बधिर सर्टिफिकेट वाले हैं। भास्कर ने एसओजी को 5 नाम और दिए हैं जो एसओजी की लिस्ट में शामिल नहीं। एसएमएस में गत वर्ष 1759 बेरा जांच (ब्रेनस्टेम इवोक रिस्पॉन्स ऑडियोमेट्री) हुई। मई-25 में 150 तथा 20 जून-25 तक 90 जांच हुईं, कुछ में डमी भी बिठाए गए। कई के पास वे सर्टिफिकेट हैं, जो एसएमएस से जारी नहीं हुई। बेरा जांच से सुनने की क्षमता का पता चलता है। सुनने में 40% से अधिक दिक्कत होने पर दिव्यांग श्रेणी में आता है। फर्जीवाड़े के कारण अधिकतर मेडिकल कॉलेज बेरा जांच के लिए एसएमएस रैफर कर देते हैं। 3 उदाहरण; जो बताते हैं कि फर्जी सर्टिफिकेट का गिरोह चल रहा, डॉक्टर खुद अथॉरिटी से जांच की मांग कर रहे हैं डॉक्टर के फर्जी सिग्नेचर से बने सर्टिफिकेट से टीचर बन गया…बयाना निवासी विश्वेन्द्र सिंह के पास बधिर होने की रिपोर्ट है। 48% विकलांगता के आधार पर अध्यापक की नौकरी पा ली। सर्टिफिकेट के मुताबिक उसकी जांच (बेरा रिपोर्ट) एसएमएस में 13 मई को की गई। भास्कर पड़ताल अस्पताल में 13 मई को 4 मरीजों की जांच हुई थी। इसमें विश्वेन्द्र का नाम नहीं है। रिपोर्ट पर चिकित्सा अधिकारी अजीत फौजदार व विकास रोहिल्ला के हस्ताक्षर हैं। दोनों अभी एसएमएस में पोस्टेड नहीं हैं। सिग्नेचर फर्जी हैं। बधिर सर्टिफिकेट लेने वाला मरीज सुन रहा आम लोगों की तरह सवाईमाधोपुर जिला अस्पताल में यूडीआईडी कार्ड के लिए पहुंचा इंजीनियर। चिकित्सक ने स्थिति देख एसएमएस अस्पताल को लिखा कि वह सामान्य लोगों की तरह बातचीत कर रहा है। एसएमएस में इंजीनियर से भास्कर ने बात की। सर्टिफिकेट में 40% से ज्यादा बधिर घोषित इंजीनियर ने रिपोर्टर से सामान्य व्यक्ति की तरह बातचीत की… भास्कर : सवाई माधोपुर में जांच हुई तो दोबारा क्यों?
इंजीनियर- डिसेबल कार्ड बनाने गए थे, डॉक्टर ने यहां भेज दिया। भास्कर- बीटेक हो गई क्या? अभी क्या कर रहे?
इंजीनियर- हां, आईआईटी की है। भास्कर- आईआईटी में दाखिले में प्रमाण पत्र काम में लिया था क्या?
इंजीनियर- नहीं, यह समस्या तो करीब तीन साल से ही हुई है। कान की मशीन दिलाने की कह जांच कराने डमी भेजा
एसएमएस अस्पताल में 18 मार्च को अभिषेक की बेरा जांच करनी थी। अभिषेक जू. अकाउंटेंट भर्ती में पास हुआ है। जांच से पहले मरीज को दवा देने के लिए बुलाया गया तो 13 साल का बच्चा आ गया। पड़ताल शुरू देख अभिषेक फरार हो गया। पिता ने बताया कि जांच से गुजरने के बदले कान की मशीन दिलाने का झांसा दिया था। डॉक्टरों का दर्द… बड़े स्तर पर गिरोह सक्रिय, सिस्टम आंखें मूंदे मौन बैठा है डॉक्टरों के फर्जी साइन से जारी फर्जी सर्टिफिकेट पर भी सिस्टम आंखें मूंदकर मौन बैठा है। ईएनटी विभाग के हेड पवन सिंघल ने बताया- गिरोह बड़े स्तर पर सक्रिय है। दो साल से कई मामले आ चुके हैं। अधीक्षक को लिखित में सूचना दी गई है पर कुछ नहीं हुआ। फर्जी सर्टिफिकेट जिन डॉक्टरों के नाम बने हैं वे भी यही कह रहे हैं। ऑडियोलॉजिस्ट राकेश कुमार ने बताया- लिखित में अधीक्षक कार्यालय को दिया था। जवाब मिला कि अपने स्तर पर कार्रवाई करें। विभाग के कर्मी विक्रम यादव ने बताया- डमी मरीज पकड़ कर सूचित किया, कुछ नहीं हुआ। डऑ. विकास रोहिला ने बताया- सूचना पर भी एफआईआर नहीं कराई गई। “एक मामले की जानकारी आई थी। बाकी मामलों को लेकर कोई जानकारी नहीं है। अशोक जी ने जो पत्र लिखा है उस पर नियमानुसार बोर्ड गठन का काम किया जाएगा।”
-सुशील भाटी, अधीक्षक, एसएमएस
बधिर जांच का सिस्टम ‘अंधा’:डॉक्टरों के साइन से जारी हो रहे हैं फर्जी सर्टिफिकेट; डॉक्टर बोले- साइन भी फर्जी, हम 2 साल से बता रहे
