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भास्कर संवाददाता | पाली आगामी 17 जुलाई का दिन सनातन धर्म के लोगों के लिए बहुत खास रहेगा। इस दिन देवशयनी एकादशी रहेगी और इसी दिन से भगवान श्रीहरि विष्णु सृष्टि की सत्ता के संचालन का भार भगवान भोलेनाथ को सौंपकर 118 दिन के लिए योग निद्रा में जा विश्राम करेंगे। भोलेनाथ यह कार्यभार 11 नवंबर तक अपने पास रखेंगे और 12 नवंबर को देवउठनी एकादशी पर पुन: श्रीहरि के जागने पर उन्हें सत्ता सौंप देंगे। खास बात यह है कि देवशयनी एकादशी पर इस बार 3 खास योगों का संयोग बन रहा है, जो आगामी 4 महीने के लिए शुभ फलदायी व मंगलकारी रहेंगे। इनमें सर्वार्थ सिद्धि, अमृत सिद्धि व बुधादित्य योग रहेगा। आमलेश्वर महादेव मंदिर के पुजारी आचार्य कृष्ण कुमार मिश्रा ने बताया कि चातुर्मास के चलते विवाह आदि मांगलिक कार्य नहीं होंगे, परंतु पूजा, कथा, प्रवचन होंगे और व्रत भी त्योहार मनाए जाएंगे। इन चार महीने में श्रीहरि की उपासना का अभीष्ठ फल प्राप्त होगा। आचार्य मिश्रा ने बताया कि एकादशी पर भगवान लक्ष्मीनारायण के शयनोत्सव पर मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना की जाएगी। इसके पूर्व वेदोक्त मंत्रों से अभिषेक कर जगत कल्याण के लिए प्रार्थना करेंगे। माता लक्ष्मी का पूजन व श्री सूक्त का पाठ किया जाएगा। इसी दिन चातुर्मास भी शुरू होगा, योगों में खरीदारी होगी शुभ : देवशयनी एकादशी 17 जुलाई को है। इसी दिन से चातुर्मास प्रारंभ होगा। जैन संतों का वर्षावास भी शुरु हो जाएगा। आचार्य मिश्रा ने बताया कि देवशयनी एकादशी पर इस बार सूर्योदय से रात 11.18 तक सर्वार्थ व अमृत सिद्धि योग एक साथ रहेंगे। सूर्य व बुध के कर्क राशि में एक साथ रहने से बुधादित्य योग भी रहेगा। यह तीनों योग खरीदारी व कार्यों की सफलता के लिए श्रेष्ठ माने जाते हैं। आचार्य कृष्ण कुमार मिश्रा ने बताया कि चातुर्मास में हवन, पूजन, कथा सत्संग होते रहेंगे। इन चातुर्मास में कथा प्रवचन कराने व श्रवण करने का कई गुना फल प्राप्त होता है। इन चार माह में शाकाहार का पालन करने वाले लोग विभिन्न शारीरिक कष्ट व्याधियों से बचे रहेंगे। एकादशी पर इन राशि के जातकों को होगा फायदा मेष और मिथुन राशि वालों को विशेष लाभ प्राप्त हो सकता है। सिंह राशि : जॉब मिल सकती है। कन्या राशि : धन प्राप्ति के नवीन मार्ग बनेंगे। तुला राशि : कॅरियर और कारोबार में सफलता मिल सकती है। विष्णु आचार्य मिश्रा बताते हैं कि वामन पुराण के मुताबिक असुरों के राजा बलि ने तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया था। इससे भयभीत होकर देवताओं ने भगवान विष्‍णु से मदद मांगी। तब भगवान विष्‍णु ने वामन अवतार धारण कर भिक्षा में बलि से तीन पग भूमि मांगी। पहले और दूसरे पग में भगवान ने धरती और आकाश को नाप लिया। अब तीसरा पग रखने के लिए कुछ बचा नहीं थी तो राजा बलि ने कहा कि तीसरा पग उनके सिर पर रख दें। तब भगवान ने ऐसा ही किया। भगवान राजा बलि से प्रसन्‍न हुए और उन्‍होंने राजा बलि से वरदान मांगने को कहा तो बलि ने उनसे पाताल में बसने की प्रार्थना की। बलि की इच्‍छा पूर्ति के लिए भगवान को पाताल जाना पड़ा। सभी देवतागण और माता लक्ष्‍मी चिंतित हो गए। अपने पति भगवान विष्‍णु को वापस लाने के लिए माता लक्ष्‍मी गरीब स्‍त्री बनकर राजा बलि के पास पहुंची और उन्‍हें अपना भाई बनाकर राखी बांध दी। बदले में भगवान विष्‍णु को पाताल लोक से वापस ले जाने का वचन ले लिया। पाताल से विदा लेते वक्‍त भगवान विष्‍णु ने राजा बलि को वरदान दिया। आषाढ़ शुक्‍ल पक्ष की एकादशी से कार्तिक शुक्‍ल पक्ष की एकादशी तक पाताल लोक में रहेंगे। कथा, प्रवचन कराने और श्रवण रहेगा फलदायी

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