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बांसवाड़ा के मानगढ़ धाम में भील-प्रदेश संदेश सभा-यात्रा:बड़ी संख्या में पहुंचे आदिवासी; मंच से बोले-अलग राज्य के लिए आंदोलन जारी रहेगा

भील प्रदेश की मांग को लेकर राजस्थान के बांसवाड़ा में मानगढ़ धाम पर एक बार फिर आदिवासी समाज के लोग जुटे हैं। सुरक्षा को देखते हुए सभा स्थल के पास 500 से ज्यादा पुलिस जवानों की तैनाती की गई है। भील प्रदेश मुक्ति मोर्चा और आदिवासी परिवार के बैनर तले मानगढ़ धाम (बांसवाड़ा) में सभा और भील प्रदेश संदेश यात्रा का आयोजन किया जा रहा है। मानगढ़ धाम बांसवाड़ा जिले में मध्यप्रदेश-गुजरात सीमा से सटा है। सभा में बड़ी संख्या में लोग जुटे हैं। बड़ी संख्या में मानगढ़ धाम जुटे लोग.. आदिवासी परिवार के संस्थापक सदस्य कांतिभाई रोत ने सभा को संबोधित करते हुए कहा- भील प्रदेश की मांग कई साल से चल रही है। आंदोलन भी किए हैं और आगे भी करते रहेंगे। डूंगरपुर के कांकरी-डूंगरी में जो कुछ हुआ था, वह भी भील प्रदेश के लिए हमारा आंदोलन ही था। ये दूसरी आजादी का आंदोलन, 1947 तक ही आजाद थे आदिवासी परिवार के संस्थापक सदस्य मास्टर भंवरलाल ने शपथ दिलाई कि मानगढ़ और विश्व आदिवासी दिवस के कार्यक्रमों में शराब पीकर नहीं जाएंगे। आदिवासी संस्कृति और वेषभूषा में कार्यक्रमों में शामिल होंगे। उन्होंने कहा कि डूंगरपुर 2018 में आदिवासी दिवस के मौके पर कलेक्टर राजेंद्र भट्‌ट और एसपी शंकर दत्त शर्मा को समाज की जाजम पर बैठाकर बात की थी। आज से आप भी अपने जिले का प्रशासन एसपी-कलेक्टर को निमंत्रण दे देना। कह देना कि हमारी बात जाजम पर सुननी है, कुर्सी नहीं मिलेगी। दोबारा राजा बनना है तो अनुशासन सबसे पहले होना चाहिए, नशा छोड़ना होगा, गुटखा छोड़ना होगा, आत्म समीक्षा करनी होगी, वजन बढ़ाना होगा। हम मिलकर काम करेंगे तो हमारी स्वतंत्र आवाज होगी। संगठन खड़ा हो जाएगा। हम आजाद हो जाएंगे। ये दूसरी आजादी का आंदोलन है। हम 1947 तक आजाद थे, फिर शासन प्रशासन ने हमें बंधन में डाल दिया। दोबारा आजादी चाहिए तो शासन-प्रशासन में जाना होगा। भील समाज की ओर से राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र (4 राज्यों) के 43 जिलों को मिलाकर नया भील प्रदेश बनाने की मांग वर्षों से की जा रही है। सभा में कई राज्यों से लोग जुटे हैं। इस दौरान मंच पर आदिवासी लोक गीत-संगीत भी पेश किया गया। भील प्रदेश की मांग के लिए आए दिन आंदोलन और ज्ञापन दिए जाते हैं। बांसवाड़ा-डूंगरपुर से बीएपी सांसद राजकुमार रोत ने सोशल मीडिया पर भील प्रदेश का नक्शा भी जारी किया था। रोत से लोगों से अधिक से अधिक संख्या में सभा में पहुंचने की अपील की थी। एक साल पहले भी इन्हीं राज्यों से लोग मानगढ़ धाम पहुंचे थे। उस दौरान ही मांग में सिंदूर नहीं लगाने की अपील मंच से की गई थी। सांसद राजकुमार रोत ने यह नक्शा किया था शेयर… दरअसल, रोत ने 15 जुलाई को भील प्रदेश का यह नक्शा शेयर करते हुए लिखा था- भील प्रदेश की मांग आजादी के पहले से ही उठती आई है, क्योंकि यहां के लोगों की संस्कृति, भाषा, बोली और रीति रिवाज दूसरे प्रदेशों से अलग हैं और आदिवासी संस्कृति और सभ्यता को बचाने और उसके सरंक्षण के लिए जरूरी है। मैप को भाजपा नेता राजेंद्र राठौड़ ने बताया था प्रदेशद्रोह राजेंद्र राठौड़ ने ट्वीट पर प्रतिक्रिया देते हुए लिखा था- राजस्थान की आन, बान और शान को तोड़ने की साजिश कभी सफल नहीं होगी। बांसवाड़ा-डूंगरपुर लोकसभा क्षेत्र से सांसद राजकुमार रोत की ओर से जारी किया गया तथाकथित “भील प्रदेश” का नक्शा एक शर्मनाक और दुर्भाग्यपूर्ण राजनीतिक स्टंट है। यह न केवल गौरवशाली राजस्थान की एकता पर चोट है बल्कि आदिवासी समाज के नाम पर भ्रम फैलाने और सस्ती लोकप्रियता पाने की कोशिश भी है। आज अगर कोई भील प्रदेश की बात करेगा, कल कोई मरू प्रदेश की मांग करेगा। तो क्या हम अपने शानदार इतिहास, विरासत और गौरव को ऐसे ही टुकड़ों में बाँट देंगे ? सांसद राजकुमार रोत नक्शा जारी कर आदिवासी समाज में जहर बोने की साजिश कर रहे हैं। यह प्रदेशद्रोह की श्रेणी में आता है। इसे जनमानस कभी स्वीकार नहीं करेगा। राजकुमार रोत ने दिया राजेंद्र राठौड़ को जवाब राजेंद्र राठौड़ की प्रतिक्रिया का जवाब देते हुए राजकुमार रोत ने ट्वीट किया- राठौड़ साहब, आप राजस्थान विधानसभा के सात बार सदस्य और नेता प्रतिपक्ष रहे हैं। आप संसदीय कार्यप्रणाली के ज्ञाता हैं, जिसे मैंने मेरे 15वीं विधानसभा के कार्यकाल के दौरान अनुभव किया है। सदन की कार्यवाही के दौरान आप तुरंत एक पुस्तक लेकर खड़े होते थे और विधानसभा प्रक्रिया एवं कार्य संचालन नियमों का हवाला देते थे। ऐसे विद्वान राजनेता से मुझे भील प्रदेश की मांग के संबंध में इस प्रकार के बयान की कतई अपेक्षा नही थी। आप द्वारा इस्तेमाल किए गए ‘प्रदेशद्रोह’ सहित विभिन्न असंसदीय शब्दों पर मुझे घोर आपत्ति है। आपने इन शब्दों का प्रयोग कर हमारे देश के कई महान नेताओं के साथ झारखंड, छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड का गठन करने वाले पूर्व प्रधानमंत्री स्व. अटल बिहारी वाजपेयी जी का भी अपमान किया है। आपने वर्तमान राजस्व मंत्री के पिताश्री एवं आपके साथी कैबिनेट मंत्री रहे आदरणीय नंदलाल मीणा का भी अपमान किया है, जिन्होंने भील प्रदेश निर्माण की मांग का पुरजोर समर्थन किया था। मैं आपको ध्यान दिलाना चाहता हूं कि भारत के संविधान में नवीन राज्यों के निर्माण और पुनर्गठन के प्रावधानों का स्पष्ट उल्लेख है। स्वतंत्र भारत में विभिन्न आधार पर कई नए राज्यों का गठन हुआ है। भील प्रदेश भी राज्य बनने के लिए भाषाई-सांस्कृतिक-भौगोलिक एकरूपता, संसाधनों का असमान वितरण एवं आर्थिक विकास की जरूरत जैसे विभिन्न मापदंड पूरे करता है। हमारे पुरखों ने गोविंद गुरु के नेतृत्व में 1913 में अलग भील राज्य की स्थापना का स्वप्न देखा था, जो लोकतांत्रिक तरीके से अवश्य साकार होगा। अंत में मेरा आपसे एक विशेष आग्रह है कि आप जैसे संसदीय प्रणाली के विद्वान राजनेता को ऐसे तथ्यहीन, अतार्किक और भ्रामक बयान शोभा नहीं देते हैं। आप देश के संविधान में नवीन राज्यों के निर्माण एवं पुनर्गठन से संबंधित प्रावधानों तथा स्वतंत्र भारत में नए राज्यों के गठन के इतिहास का अध्ययन करें और उसके पश्चात भील प्रदेश निर्माण के संबंध में अपना तथ्यात्मक एवं तार्किक पक्ष रखें। भील प्रदेश हमारे पुरखों का संकल्प है, एक सच्चाई है और हमारा अधिकार है, जिसे हम लोकतांत्रिक तरीके से लेकर रहेंगे। भील प्रदेश संदेश यात्रा को लेकर रोत बोले भील प्रदेश संदेश यात्रा का आयोजन मानगढ़ (बांसवाड़ा) में किया जा रहा है। हर साल की तरह इस बार भी सोशल मीडिया पर कई लोग इसका विरोध भी कर रहे हैं। कुछ लोगों के पेट में दर्द हो रहा है। मानगढ़ वो स्थल है जहां 1913 में गोविंद गुरु के नेतृत्व में 1500 आदिवासियों ने बलिदान दिया था।भील प्रदेश संदेश यात्रा में राजस्थान, दादर नगर हवेली, महाराष्ट्र, गुजरात और मध्यप्रदेश से आदिवासी समाज के लोग आ रहे हैं। मेरी अपील है कि लोग शांति रखें।वाहन अनुशासन से चलाएं। लेन में चलें। हेलमेट पहनें। बुजुर्ग बारिश का समय है, छाता रखें। पानी की बोतल रखें। फसलों की बुवाई का सीजन चल रहा है। लोग खेतों के रास्ते न आकर सड़क के रास्ते से पहुंचे। शॉर्टकट के लिए पहाड़ी रास्ते पर न चलें। पुलिस से भी कहा है कि व्यवस्था में सहयोग करें। क्या है भील प्रदेश राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के 43 जिलों को मिलाकर एक अलग आदिवासी राज्य ‘भील प्रदेश’ बनाने की मांग की जा रही है। प्रस्तावित भील प्रदेश में चार राज्यों- राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के 43 जिलों को शामिल करने की बात कही गई है। राजस्थान के बांसवाड़ा, डूंगरपुर, बाड़मेर, जालौर, सिरोही, उदयपुर, झालावाड़, राजसमंद, चित्तौड़गढ़, कोटा, बारां और पाली जिले शामिल हैं। गुजरात के अरवल्ली, महीसागर, दाहोद, पंचमहल, सूरत, बड़ोदरा, तापी, नवसारी, छोटा उदेपुर, नर्मदा, साबरकांठा, बनासकांठा और भरुच जिले शामिल हैं। मध्य प्रदेश के इंदौर, गुना, शिवपुरी, मंदसौर, नीमच, रतलाम, धार, देवास, खंडवा, खरगोन, बुरहानपुर, बड़वानी, अलीराजपुर जिले शामिल हैं। महाराष्ट्र के नासिक, ठाणे, जलगांव, धुले, पालघर और नंदुरबार जिले शामिल हैं। आदिवासी जलियांवाला के रूप में मानगढ़ घटना की पहचान भील प्रदेश की मांग का इतिहास 108 साल पुराना है। 1913 में मानगढ़ नरसंहार के बाद भील समाज सुधारक गोविंद गुरु ने इसकी शुरुआत की थी। 17 नवंबर 1913 को राजस्थान-गुजरात सीमा पर मानगढ़ की पहाड़ियों में ब्रिटिश सेना ने सैकड़ों भील आदिवासियों की हत्या कर दी थी। इस घटना को ‘आदिवासी जलियांवाला’ के रूप में भी जाना जाता है। तब से भील समुदाय अनुसूचित जनजाति के विशेषाधिकारों के साथ एक अलग राज्य की मांग करता रहा है। जल जंगल जमीन के अधिकारों का हनन हो रहा सांसद रोत का कहना है कि आदिवासी क्षेत्रों में शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल और सिंचाई जैसी मूलभूत सुविधाओं की कमी है। आदिवासियों को उनकी जमीन से बेदखल किया जा रहा है और उनके जल-जंगल-जमीन के अधिकारों का हनन हो रहा है। रोत का तर्क है कि भील प्रदेश का गठन इन समस्याओं का समाधान करेगा और पांचवीं-छठी अनुसूची के प्रावधान लागू करने में मदद करेगा।

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