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बीजेपी सांसद बोले- आपातकाल में मुझे अधमरा होने तक पीटा:भारत माता की जय बोलने वाले का सिर मुंडवाकर जुलूस निकालते थे

25 जून 1975 को आपातकाल की घोषणा के बाद देश-प्रदेश के कई गैर कांग्रेसी नेताओं की धरपकड़ की गई। नेताओं को रातों रात जेलों में डाल दिया गया। राजस्थान में आज के कई वरिष्ठ बीजेपी नेता आपातकाल के दौरान जेलों में रहे। इन्हीं में शामिल हैं वरिष्ठ भाजपा नेता व राज्यसभा सांसद राजेंद्र गहलोत। भास्कर से खास बातचीत में कहा- आपातकाल में गिरफ्तारी के वक्त पुलिस ने मुझ पर कंबल डालकर अधमरा होने तक पीटा। बूट पहने पुलिसवाले हाथ-पांवों पर खड़े हो गए थे और पीट रहे थे। अधमरी हालत में जेल लेकर गए तो जेलर ने एक बार तो लेने से मना कर दिया और कहा- हम जिंदा लोगों को लेते हैं। राजेंद्र गहलोत ने दैनिक भास्कर से बातचीत में आपातकाल की ज्यादतियों की कई घटनाएं बयां की। पढ़िए पूरी बातचीत… भास्कर : 25 जून 1975 को जब आपातकाल लगा, उस दिन क्या हुआ था? गहलोत : आपातकाल की घोषणा होते ही विरोधी दलों के कार्यकर्ताओं की धरपकड़ शुरू हो गई। मेरे घर सुबह 5:30 बजे पुलिस आ गई थी। संयोग से मैं जोधपुर में नहीं था। इसी कारण मेरी गिरफ्तारी नहीं हुई। सुबह जब मैं जोधपुर पहुंचा तो मुझे समाचार मिल गए थे। मैं किसी मित्र के साथ सोजती गेट की तरफ गया। मैं वहां से निकल रहा था तो जनसंघ के नेता दामोदर बंग अपनी दुकान खोलने जा रहे थे। पुलिस ने दुकान नहीं खोलने दी और पकड़कर गाड़ी में बिठा लिया। कहा कि इमरजेंसी है। उनको घर पर बात तक नहीं करने दी। मैं छुप गया। नेताओं और कार्यकर्ताओं की धरपकड़ शुरू हो गई। इससे आम लोगों में डर बैठ गया। जो इंदिरा गांधी के विरोध में थे, सबको जेल में डाल दिया गया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर प्रतिबंध लगा दिया। भास्कर : आपको कब अरेस्ट किया? गहलोत : मैंने खुद गिरफ्तारी दी थी। हमारे नेताओं ने 15 जुलाई को हर जिले में गिरफ्तारी देने का फैसला किया। हम लोग उस वक्त भूमिगत थे। हमने सब जिलों में संपर्क किया। 15 जुलाई को सभी जिलों में गिरफ्तारियां दीं। हमारी तैयारियों की भनक तक पुलिस को नहीं लगी। जोधपुर में गिरफ्तारी देने के लिए जिस कार्यकर्ता का नाम तय हुआ, वह बीमार हो गया तो मुझे रात 2 बजे सूचना दी गई कि अगले दिन गिरफ्तारी देनी है। कुछ साथियों के साथ हमने जोधपुर के सिनेमा में 12 से 3 बजे का शो बुक करवाया। बाहर मालाएं लिए कार्यकर्ता खड़े थे। योजना के मुताबिक शो खत्म होते ही हम कार्यकर्ताओं के छोटे से जुलूस के साथ रवाना हो गए। इंदिरा गांधी और आपातकाल के खिलाफ नारेबाजी करने लगे। पुलिस में हड़कंप मच गया। हमने सोजती गेट इलाके को चुना क्योंकि 4 बजे रेलवे वर्कशॉप के हजारों कर्मचारी छूटते थे। वहां भीड़भाड़ का माहौल रहता था। सोजती गेट पहुंचने पर लोगों की भी जुट गई। इमरजेंसी के खिलाफ मेरा भाषण हुआ। लोगों ने मालाएं पहनाईं। वहीं से मैंने गिरफ्तारी दी। भास्कर : आपके साथ कैसा बर्ताव किया गया? गहलोत : मुझे गिरफ्तार करके पुलिस लाइन लेकर गए, वहां एसपी मिस्टर खन्ना थे। मिस्टर खन्ना ने मुझे देखते ही कहा- ‘नेताजी बहुत मालाएं पहनकर आए हो। पता नहीं इमरजेंसी लग गई है। अब तुम्हारी वह डेमोक्रेसी नहीं है कि चाहे जो नारे लगा दो। चाहे जो लोगों के सामने जुलूस निकाल दो। प्रधानमंत्री के खिलाफ आपने नारे लगाए, यह ठीक नहीं किया। मैंने भी उनको कहा- लोकतंत्र बहाली के लिए हम लड़ते रहेंगे। आप में जितना दम है वो लगा लो। भास्कर : सुना है आपको खूब टॉर्चर किया था? गहलोत : नाराज एसपी ने पुलिस वालों को बुलाया और मुझे हवालात की तरफ ले जाने को कहा। मुझे उस जगह ले गए जहां हमारे एक कार्यकर्ता की पिटाई हो रही थी। मैंने कहा कि इस बालक को क्यों पूछ रहे हो? जो पूछना हम बताएंगे। इतने में उन्होंने मेरे ऊपर एक कंबल डाली और बुरी तरह पीटना शुरू कर दिया। पुलिस वाले मेरे दोनों पैरों पर जूतों सहित खड़े हो गए। इससे मेरा अंगूठा पिचक गया, वो आज भी पिचका हुआ है। इस हालत में कंबल डालकर मेरी पिटाई करते रहे। मैं बेहोश हो गया। एक बार होश आया तो फिर पिटाई की। इस दौरान एक कॉन्स्टेबल था, उसका बहुत धन्यवाद देता हूं उसने मुझे पानी पिलाया। उसने कहा कि आप क्यों जिद कर रहे हो, जो बताना है इनको बताओ। मैंने कहा- मुझे कुछ नहीं बताना है। कंबल डालकर की गई पिटाई से मैं अधमरा हो चुका था। मुझे इसी हालत में जेल ले गए तो जेल सुपरिटेंडेंट ने कहा- हम जिंदा लोगों को लेते हैं मरे हुए लोगों को नहीं। लेकिन प्रेशर डलवाकर मुझे जेल की कोठरी में डलवा दिया। मैं बुरी तरह घायल था, कराह रहा था। मुझे कराहता देखकर किसी ने उसी जेल में हमारे सीनियर नेताओं तक सूचना पहुंचाई कि एक सत्याग्रही को अधमरी हालत में कोठरी में डालकर गए हैं। उस समय जेल में बंद हमारे नेताओं ने हंगामा किया, जिसके बाद मेरा मेडिकल करवाया, इलाज करवाया। मेरे हाथ पैरों में चोटें थीं, तीन महीने मेरा इलाज चला तब जाकर ठीक हुआ। भास्कर : आपको इतना टॉर्चर क्यों किया? गहलोत : उस समय अखबारों पर सेंसर लगा हुआ था। कोई खबर आती ही नहीं थी। उस वक्त हम चिंगारी के नाम से गुप्त अखबार निकालते थे। चिंगारी के माध्यम से हम अपनी बात पहुंचाते थे। इस अखबार को साइक्लोस्टाइल करके कॉपी बनाते थे और फिर दुकानों और कुछ लोगों के बीच बांटते थे। एक दिन हमारा एक नाबालिग कार्यकर्ता घनश्याम डागा चिंगारी बांटते वक्त पकड़ा गया। उससे पुलिस ने चिंगारी छापने वाले के बारे में पूछा। उसे कुछ पता ही नहीं था। वो तो केवल बांटने का काम करता था। पुलिस लाइन में उस नाबालिग कार्यकर्ता को बुरी तरह पीटा गया। मुझे भी उस कार्यकर्ता के पास ले जाया गया था। पुलिस वाले चिंगारी के निकलने की जगह और उसे बांटने वालों की जानकारी चाह रहे थे। भास्कर : उस वक्त नारेबाजी करने पर अपराधियों की तरह घुमाने का क्या मामला था? गहलोत : पुलिस स्टेशन में रिमांड के दौरान मुझे बुरी तरह मारा। वो यह पूछना चाह रहे थे कि चिंगारी कहां से निकलती है। हम आंदोलन चला रहे थे। इसी दौरान 15 अगस्त को एक घटना और घटी। हमारे एक कार्यकर्ता थे, उन्होंने भारत माता की जय बोलते हुए इंदिरा गांधी के विरोध में नारेबाजी कर दी थी। उस कार्यकर्ता का सिर मुंडवाकर, गले में ‘मैं देशद्रोही हूं’ की तख्ती डालकर पूरे शहर में पुलिसवालों ने जुलूस निकालते हुए घुमाया। इस तरह का आतंक, अत्याचार, उत्पीड़न, जनसंघ और आरएसएस के कार्यकर्ताओं ने झेला और विरोध किया। जोधपुर बंद के समय असामाजिक तत्वों ने आग लगा दी। उस घटना के लिए भी मुझे अरेस्ट किया। एक समय में 42 जगह पर आगजनी का आरोप लगाया। उस वक्त सेशन जज ने कहा था- यह हनुमानजी तो थे नहीं कि लंका में एक साथ आग लगा दे, एक आदमी शहर में एक समय में 42 जगह आगजनी कैसे कर सकता है? हमारे ऊपर आरोप था उसका केस चल रहा था तो हमको जेल से कोर्ट तक बेड़ियों में लाया जाता था। जैसे ही हम बाजार में आते लोगों को मजमा लग जाता। हमने इंदिरा गांधी के खिलाफ नारेबाजी शुरू कर दी। हमें बेड़ियों की परवाह नहीं थी, लेकिन इससे जनता का सपोर्ट मिल रहा था। भास्कर : जेल में कैसा व्यवहार किया, वहां कुछ बदलाव हुआ या थाने जैसा ही बर्ताव किया? गहलोत : शुरुआत के 6 महीने हर तरह की तकलीफें झेलनी पड़ी। खाने में तकलीफ रही। हम रेडियो पर बीबीसी सुनना चाहते थे, लेकिन ट्रांजिस्टर नहीं दिया जाता था। बीमार हो जाते तो हमें मेडिसिन बहुत मुश्किल से मिलती थी। छह महीने बाद तो हालात सुधरे। हमें कपड़े चाहिए होते तो हम घर से कपड़े मंगवा सकते थे। फिर धीरे-धीरे हमारी व्यवस्थाएं ठीक हो गईं। मजबूती से आंदोलन खड़ा हुआ और बाद में जेल प्रशासन को मजबूर होना पड़ा। दूसरे कैदियों को भी हमारी वजह से साफ सुथरा और अच्छा खाना मिलने लग गया था। जेल में मंदिर भी बनवाया। सुबह-शाम हम खेलते थे, शाखा लगती थी, प्रार्थना करते थे। दिन में प्रवचन होता था। हरिशंकर भाभड़ा रामचरितमानस, गीता, रामायण पर प्रवचन करते थे। भास्कर : आपके साथ बड़े नेताओं में उस वक्त कौन जेल में थे? कार्यकर्ता और नेताओं को एक ही जगह रखा या अलग अलग? गहलोत : जेलों में सब साथ ही थे। मेरे साथ हरिशंकर भाभड़ा, राधा कृष्ण रस्तोगी (जो एडवोकेट जनरल रहे हैं), बिशन सिंह भाटी जैसे बड़े नेता थे। भैरोंसिंह शेखावत और उस समय के सभी नेता जेलों में थे। भंवरलाल शर्मा भी कुछ दिनों के लिए रहे। ललित किशोर चतुर्वेदी, सतीश चंद्र अग्रवाल रोहतक जेल में थे। जैसे-जैसे हमारी संख्या बढ़ी, जेल के अंदर का प्रशासन धीरे-धीरे जैसे हमारे हाथ में आ गया था। हम एक बैरक से दूसरे बैरक में आने-जाने लगे थे। प्रशासन में भी हम लोगों से सहानुभूति हो गई थी।कुछ लोगों को हमारे यहां से पकड़कर दूसरी जेलों में ले जाते थे। छोटी जेल में डाल देते थे। वहां कोई पूछने वाला नहीं था। जैसे जयपुर वालों को जोधपुर डाल दिया, भरतपुर वालों को जोधपुर, दिल्ली वालों को जोधपुर डाल दिया और जोधपुर वालों को दिल्ली डाल दिया। भास्कर : आपातकाल हटने के बाद 1977 में हुए चुनावों में भैरोंसिंह शेखावत की अगुवाई में पहली गैर कांग्रेसी सरकार बनी। आपकी सरकार ने आपातकाल की ज्यादतियों की जांच के लिए जस्टिस कानसिंह आयोग बनाया, लेकिन उस पर कुछ नहीं हुआ, ऐसा क्यों? गहलोत : जस्टिस कान सिंह आयोग बना था। जब तक उसकी रिपोर्ट आई तब तक हमारी सरकार चली गई। थोड़ा बहुत एक्शन हुआ था, लेकिन ज्यादा एक्शन हो नहीं पाया। केंद्र स्तर पर शाह आयोग और राज्यों की गैर कांग्रेसी सरकारों ने जांच आयोग बनाए। कांग्रेस सरकारों ने बाद में इन रिपोर्ट्स को दबा दिया। इसके 10 साल बाद 1990 में जब हमारी सरकार आई तब तक सब मामले न्यूट्रलाइज हो गए। कान सिंह आयोग की रिपोर्ट गायब कर दी गई। भास्कर : आपातकाल के दौर में जबरन नसबंदी के आरोप लगे थे। नसबंदी की ज्यादतियों के कुछ किस्से होंगे? गहलोत : हम गांवों में गए तो लोगों ने कई किस्से सुनाए। बुजुर्गों तक की नसबंदी कर देते थे। नसबंदी का आतंक इतना था कि गांव में लोग गाड़ी देखकर भाग जाते थे। कई कुंवारे लोगों की नसबंदी कर दी। इस तरह के कई अत्याचार हुए। नसबंदी में लापरवाही के कारण कई लोगों की जान चली गई थी। लोगों में भारी नाराजगी थी। इसी वजह से 1977 के चुनाव में कांग्रेस उत्तर भारत में पूरी तरह साफ हो गई थी। केवल नागौर से नाथूराम मिर्धा मामूली वोटों से जीते थे। भास्कर : आप लोगों ने आपातकाल में इतने अत्याचार सहे, उन घटनाओं से क्या सबक सीखा? आज का विपक्ष आपकी सरकार पर अघोषित आपातकाल के आरोप लगाता है? गहलोत : देश पर आपातकाल थोपने वाले ऐसे आरोप लगाते हैं तो कौन यकीन करेगा? चुनी हुई सरकारों को सबसे ज्यादा इन्होंने गिराया। संविधान की किताब हाथ में लेकर घूमने वाले पहले संविधान को पढ़ें तो सही। अघोषित इमरजेंसी होती तो हम आपको बोलने देते क्या? हम राहुल गांधी को जेल में डाल देते जिस तरह हमें डाला था। चाहे जैसे बोल लेंगे, चाहे जैसे कर लेंगे, फिर भी आरोप लगाते हैं। राहुल गांधी को पूरा अधिकार है बोलने का, वो जो चाहे बोलते हैं। कांग्रेस नेता गैर जिम्मेदार व्यक्ति की तरह बात कर रहे हैं, इसी कारण कांग्रेस के प्रति लोगों का मोहभंग हो गया। ये खबर भी पढ़ें… ‘इमरजेंसी लगी…मैं डेढ़ महीने तक पकड़ में नहीं आया’:गुलाबचंद कटारिया बोले-श्मशान के पास खेतों में अंडरग्राउंड रहे, विरोध में अखबार छापे, पोस्टर बांटे इमरजेंसी लगी…मैं डेढ़ महीने तक पकड़ में नहीं आया, अंडरग्राउंड रहकर इमरजेंसी के खिलाफ अखबार छापे, पोस्टर बांटे। सरेंडर करते ही जेल में डाल दिया…कड़ाके की ठंड में एक कंबल ​ओढ़ने और एक बिछाने को मिलता था, सारी रात बैठकर निकालते ​थे। हमने जेल में कंबल जलाकर बगावत की तो प्रशासन की नींद खुली। (यहां पढ़ें पूरी खबर)

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