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जवाहर कला केंद्र का शिल्पग्राम इन दिनों सिर्फ रंगों और ब्रश की कहानी नहीं कह रहा, बल्कि वेस्ट मटेरियल से कला गढ़ने की नई परिभाषा भी लिख रहा है। 24वें कला मेले में पारंपरिक चित्रों और मूर्तियों के साथ-साथ वेस्ट मटेरियल आर्ट भी आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। प्लास्टिक की बोतलें, अखबार, पुराने कार्डबोर्ड, फैब्रिक वेस्ट यहां कलाकारों की कल्पना से अनोखे आर्टिफैक्ट्स और पेंटिंग्स का रूप ले रहा है। राजस्थान ललित कला अकादमी के सहयोग से आयोजित इस मेले में 100 से ज्यादा स्टॉल्स पर कलाकारों की अलग-अलग शैलियों में बनाई गई पेंटिंग्स भी देखने को मिल रही हैं। इनमें ऑयल, वॉटर कलर, एक्रेलिक, लैंडस्केप पेंटिंग्स के साथ अपसाइक्लिंग आर्ट भी देखने को मिला। इसमें आर्ट स्टूडेंट्स ने प्लास्टिक की बोतलों से इंस्टॉलेशन ‘अनर्थ’ तैयार किया। थर्माकोल और प्लास्टिक बोतलों से बना इंस्टॉलेशन; मेले में जेईसीआरसी यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ डिजाइन के 8 स्टूडेंट्स ने मिलकर प्लास्टिक बोतलों से इंस्टॉलेशन ‘अनर्थ’ तैयार किया है। जिसमें दिखाया गया है कि कैसे बढ़ता प्लास्टिक वेस्ट पृथ्वी को नुकसान पहुंचा रहा है और अब यह पर्यावरण में उगलने पर मजबूर है। यह हमारे लिए और आने वाली पीढ़ियों के लिए खतरा बन रहा है। इसे थर्माकोल और एक्रेलिक पेंट के साथ प्लास्टिक बोतलों से बनाया गया है। लालचंद कावलिया का वेस्ट मटेरियल गार्डन पिज्जा बॉक्स से बनाया कछुआ; राजस्थान स्कूल ऑफ आर्ट्स के फर्स्ट ईयर के स्टूडेंट विष्णु सिंह तंवर ने वेस्ट कार्डबोर्ड और अखबार से कमीलीअन बनाया है। यह एक तरह का आर्टिफैक्ट्स है, जिसे लकड़ी के टुकड़े पर लगाया गया है। वहीं आर्यन तिवाड़ी ने पिज्जा बॉक्स से कछुआ बनाया है। आर्यन ने बताया कि पिज्जा बॉक्स को 2-3 दिन पानी में छोड़ दिया, इसके बाद इसमें फेविकोल मिक्स करके पेपरमेशी बनाया। कछुए का बेस कार्डबोर्ड में अखबार भर कर तैयार किया। फिर इस पर पेपरमेशी को लगा कर कलर किया। स्टेज के ठीक बगल में आर्टिस्ट लालचंद कावलिया ने अपना अनोखा गार्डन सजाया है। इसे उन्होंने कांच की बॉटल, पाइप, पुराने रेडियो, पानी के टैंक से बनाया है। इससे उन्होंने पर्यावरण के प्रति लोगों को अवेयर करने के लिए मैसेज भी लिखा है, ‘प्रकृति से प्रेम करने वाले को हर जगह सुंदरता दिखाई देती है।’ यह सिर्फ एक आर्टवर्क नहीं, बल्कि एक संदेश है कि अपने आसपास की दुनिया को कला से संवारा जा सकता है।

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