spl cover 1743344773 DYQ3LG

पाकिस्तान बॉर्डर से सटा राजस्थान का अंतिम गांव हिन्दूमल कोट। रात 8.30 बजे हम कंचनपुर बीओपी (बॉर्डर आउट पोस्ट) में दाखिल हुए। चारों ओर घुप अंधेरा था। बॉर्डर के उस पार से पाकिस्तानी सैनिक सर्च लाइट मार रहे थे। इधर, मोर्चा संभाले हुए थी BSF की महिला बटालियन। प्लाटून कमांडर उन्हें निर्देशित कर रही थी। कंधे पर राइफल टांगे महिला जवान पूरी मुस्तैदी से हर मूवमेंट पर नजर रख रहीं थीं। इस चेकपोस्ट पर इंटरनेशनल तस्कर और ड्रग माफियाओं की नापाक हरकत सामने आती रहती है। हर समय मंडराते खतरों के बीच यह पोस्ट बीएसएफ की जांबाज महिला जवानों के हाथ में है। प्लाटून कमांडर से लेकर कुक, टेलर, बार्बर व सफाईकर्मी सभी महिलाएं हैं, जो 24 घंटे सुरक्षा में तैनात रहती हैं। चैत्र नवरात्रि के मौके पर हमने इस पोस्ट पर तैनात महिला जवानों से बात की। उपवास में ड्यूटी, अंधेरे में चुनौतियों सहित सजने संवरने और तीज-त्योहारों पर उनकी दिनचर्या क्या रहती है। रात में आती हैं गीदड़ की आवाजें, निशाने पर रहते हैं तस्करों के ड्रोन
कंचनपुर पोस्ट की प्लाटून कमांडर पूनम से हम बात कर रहे थे कि अचानक जंगली जानवरों की आवाजें सुनाई देने लगीं। पूछने पर उन्होंने बताया कि पाकिस्तान की ओर से खेतों में छिपे गीदड़ की आवाज है। यहां जंगली सुअर भी हैं जो आवाज करते रहते हैं। सन्नाटा होने के कारण ये आवाजें और भी भयानक लगती हैं। लेकिन महिला जवान इन आवाजों को सुनकर पहचान लेती हैं कि कौन-सा जानवर है। सबसे ज्यादा कान चौकन्ने रखने पड़ते हैं, क्योंकि पाकिस्तान की ओर से ड्रोन के जरिए ड्रग की तस्करी ज्यादा होती है। महिला जवान अपनी तैनाती के दौरान हाथ में इंसास राइफल थामे रहती हैं। ड्रोन की आवाज कानों में पड़ते ही निशाना लेकर उसे मार गिराती हैं। तारबंदी के नजदीक परेड करनी होती है। इस दौरान 4 किलो वजनी राइफल, चार किलो का बैग व लोहे की कील वाले जूते पहनने होते हैं। एक कॉन्स्टेबल ने बताया कि डेढ़ साल पहले बीएसएफ जॉइन किया था। “पांच महीने से बॉर्डर पर ड्यूटी दे रही हूं। कभी इस तरह अंधेरे में अकेले ड्यूटी नहीं दी थी, लेकिन अब आदत हो गई है। सर्दियों में धुंध के दौरान ज्यादा अलर्ट रहना पड़ता है।” खाने में आइसक्रीम-मोमोज मिस करती हैं, सजने-संवरने का होता है मन
बॉर्डर पर सबसे ज्यादा क्या मिस करती हैं, इस सवाल के जवाब में एक महिला जवान बोलीं- आइसक्रीम और मोमोज। उन्होंने बताया कि ड्यूटी के दौरान हेल्थ को ध्यान में रखते हुए सख्त डाइट फॉलो करनी पड़ती है, लेकिन जब भी छुट्टी मिलती है, घर जाने से पहले मां को बोल देती हूं- मोमोज तैयार रखना। त्योहार या किसी खास मौके पर ड्यूटी के बाद सजती-संवरती हैं। आम लोगों की तरह सज-संवर नहीं सकतीं। लेकिन ड्यूटी के बाद मौका मिलने पर वह सब करती हैं। महिला जवान ऐसे मौकों के लिए एक्स्ट्रा ड्रेस लेकर आती हैं। जब इच्छा होती है और टाइम भी मिलता है तो बिना मौके के ही ड्रेस पहनकर खुश हो जाती हैं। ड्रेस पहनने का मौका न भी मिले, चाहे न पहनें लेकिन कलेक्शन जरूर रखती हैं। किसी महिला साथी का बर्थडे होता है तो पूरा सेलिब्रेशन करती हैं। उपवास में भी करती हैं बॉर्डर की सिक्योरिटी
एक महिला जवान ने बताया कि हमें डाइट कंट्रोल अच्छी तरह से सिखाया जाता है। यही वजह है कि व्रत-तीज-त्योहार के मौकों पर उपवास रखने के दौरान भी हम ड्यूटी कर पाती हैं। गणगौर, नवरात्र, करवाचौथ के उपवास पर नियमों को फॉलो करती हैं। महिला बीओपी (बॉर्डर आउट पोस्ट) होने से एक बड़े हॉल में सभी महिलाएं एक साथ रहती हैं। रूम में 13 बेड लगे हैं, सभी अपने-अपने बेड के नीचे सामान रखती हैं। यहां सभी एक साथ रहने से किसी को घर की याद ज्यादा नहीं आती। सभी का कहना है, हमारा परिवार तो अब बॉर्डर ही है।” कुछ माह पूर्व ही जॉइन करने वाली एक महिला जवान ने बताया कि “सीनियर अच्छी तरह से गाइड करती हैं। घर जैसा माहौल लगता है यहां। यह रहती है ड्यूटी
सुबह 5 बजे से महिला जवान ड्यूटी के लिए तैयार हो जाती हैं। ऑब्जर्वेशन पोस्ट पर टावर से पाकिस्तान की सरहद पर पैनी निगाहें डाले रहती हैं। सुबह व शाम दो पारियों में जवान टावर से वॉच करती हैं। पाकिस्तान की ओर से घुसपैठ करने वालों और ड्रोन से तस्करी पर खास नजर रखती हैं। ड्यूटी के समय महिला जवान सुबह व शाम 2-2 घंटे बॉर्डर के पास के एरिया को समतल करती हैं, ताकि वहां कोई आए या जाए तो फुट प्रिंट से पता लग जाए। इस ड्यूटी के दौरान उस एरिया में पहले फुट प्रिंट की चैकिंग होती है। रात में फिर उस एरिया का समतल कर देते हैं। करीब 3 किलोमीटर की रेंज में महिला जवान व्हीकल व पैदल पेट्रोलिंग करती हैं। सरहद पर एक समय में 6 महिला जवान ड्यूटी देती हैं। ड्यूटी तीन शिफ्ट में रहती हैं। दोपहर के समय जॉब ट्रेनिंग दी जाती हैं। बॉर्डर की इस पोस्ट के आस-पास दोनों देश की सरहद के बीच के हिस्से में किसान अपनी जमीन पर खेती करने आते हैं। महिला जवान उन किसानों के साथ खेत में भी निगरानी रखती हैं। बता दें कि बीएसएफ की ओर से पिछले वर्ष राजस्थान फ्रंटियर पर महिलाओं को समर्पित चार बीओपी बनाई गई थी। दो बीओपी जैसलमेर, एक बीकानेर व एक श्रीगंगानगर में स्थित है। बीओपी पर प्लाटून कमांडर, असिस्टेंट कमांडर, सब इंस्पेक्टर, कॉन्स्टेबल, बार्बर, टेलर, कुक आदि पोस्ट पर महिलाएं पोस्टेड हैं। जल्द ही ड्राइवर पद पर भी महिलाओं को ही मिले इसके प्रयास जारी हैं। बीएसएफ में 2008 से महिलाओं की भर्ती शुरू हुई, 2015 में पहली महिला ऑफिसर तनुश्री बनीं। 2024 में पहली महिला बीओपी की शुरुआत हुई। 2008 में बना था महिला बटालियन का पहला बैच
बीएसएफ में पहला बैच महिलाओं का 2008 में था उस समय फ्रिस्किंग के लिए भर्ती किया गया था। तब वेतन पुरुषों की तुलना में कम था। उसके बाद पहले बैच की महिलाओं ने पुरुषों के समान वेतन की मांग की। इस पर बीएसएफ की ओर से एक कमेटी गठित की गई उसमें जब महिला जवानों से पुरुष के बराबर जिम्मेदारी उठाने की बात की गई तब महिलाएं राजी हो गई। इसके बाद से महिलाओं की जिम्मेदारी व ड्यूटी भी पुरुषों के बराबर की गई। अब अधिकारी के पद पर भी महिलाओं की भर्ती हो रही है। समान वेतन भी है।

By

Leave a Reply