राजस्थान के बांसवाड़ा में मानगढ़ धाम से एक बार फिर भील प्रदेश बनाने की मांग उठी। इस मांग को लेकर गुरुवार को भील आदिवासी सम्मेलन (भील प्रदेश संदेश यात्रा) में राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात और मध्यप्रदेश के आदिवासी जुटे। बीएपी सांसद राजकुमार रोत ने कहा- जाति के नाम से राज्य नहीं बन सकता तो धर्म के नाम पर हिंदू राष्ट्र बनाने की बात क्यों करते हो? आदिवासी परिवार संस्था के संस्थापक सदस्य मास्टर भंवरलाल परमार ने कहा- आदिवासियों की मांगें 70 साल में भी पूरी नहीं हुईं। आदिवासी भारत का मूल मालिक है। आदिवासियों ने डरना छोड़ दिया है। भील प्रदेश के लिए आंदोलन चलता रहेगा। मानगढ़ धाम आदिवासियों का तीर्थ स्थल है। यहां भील प्रदेश मुक्ति मोर्चा और आदिवासी परिवार की ओर से सम्मेलन आयोजित किया गया। भील समाज की ओर से राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र के 45 जिलों को मिलाकर भील प्रदेश बनाने की मांग वर्षों से की जा रही है। रोत बोले- जो आदिवासी समुदाय का विरोधी, वो विदेशी है
बांसवाड़ा-डूंगरपुर से सांसद राजकुमार रोत ने कहा- चारों राज्यों के जिन जिलों को भील प्रदेश में शामिल करने की मांग कर रहे हैं। वे सबसे ज्यादा कुपोषित, अशिक्षित, खराब स्वास्थ्य सेवाओं से जूझ रहे पिछड़े इलाके हैं। उन्होंने कहा- उदयपुर सांसद (मन्नालाल रावत) कह रहे हैं कि पाठ्यक्रम से भील प्रदेश की मांग का चैप्टर हटाया जाए। अब ये मुहिम गांव-गांव पहुंच गई है। भील प्रदेश बना तो अव्यवस्था खत्म होगी। जो आदिवासी समुदाय का विरोधी है वो विदेशी है। वह इस देश का नहीं हो सकता। हम मानवता में यकीन करते हैं। आदिवासी होने से ज्यादा आदिवासियत होना जरूरी है। सांसद रोत बोले- विरोध करने वाले सम्मेलन करके दिखाएं
राजकुमार रोत ने कहा- अब तक जो भी सरकारें बनीं, अगर वो आदिवासियों को संवैधानिक अधिकार देतीं तो भील प्रदेश की मांग की जरूरत ही नहीं होती। विरोध करने वाले भील प्रदेश के विरोध में सम्मेलन करके दिखाएं। मैं देखता हूं कितने लोग आते हैं। राजस्थान का गौरव भीलों से है। भील नहीं होते तो आप मूंछें नहीं तानते। परमार बोले- इतनी इंडस्ट्री लगा दी कि आदिवासी सिमट गए
भंवरलाल परमार ने कहा- भील प्रदेश क्यों चाहिए? कुंभलगढ़ में आदिवासी लंबे समय से हैं, उस एरिया को सिविल एरिया में शामिल किया? अगर सिविल एरिया में शामिल किया होता तो वहां के लोग यहां नहीं आते। खानपुर (गुजरात) के आदिवासियों को 2004 से 2006 तक जनजाति का प्रमाण पत्र एसटी का मिलता था। आज नहीं मिलता। दादर नगर हवेली में 80 फीसदी आदिवासी थे। वहां इतनी इंडस्ट्री लगा दी कि आदिवासी सिमट गए। 70 साल में भी पूरी नहीं हुई मांगें
परमार ने कहा- मेरे हाथ में ज्ञापन हैं। 150 से ज्यादा लोगों ने रात में दिए थे। ये वो मांगें हैं जो 70 साल में भी पूरी नहीं हुई। बनासकांठा (गुजरात) में आदिवासी फुटपाथ पर सो रहे हैं। रोजगार के लिए भेड़-बकरी की तरह नाकों पर खड़े होते हैं। आदिवासियों को उनके इलाके में रोजगार दिया क्या? अगर साबरमती का पानी मिल गया होता। माही बांध का पानी मिल गया होता। नर्मदा का पानी मिल गया होता। तापी नहर का पानी मिल गया होता तो क्या शहरों में रोजगार के लिए आदिवासी लाइन लगाते? अखबारों में खबरें छपती हैं कि आदिवासी बेटियां बेच रहे हैं। क्या हाल बना दिया आदिवासियों का। हमारे बाप-दादा राजा थे, हमारे बच्चे राजकुमार-राजकुमारी थे
भंवरलाल परमार ने कहा- भीलों का इतिहास गौरवशाली रहा है। सलूंबर में 12वीं सदी में राजा सोनारा भील था। पृथ्वीराज चौहान राजा थे। 12वीं सदी में सावंत सिंह गुहिल थे जो डूंगरपुर-बांसवाड़ा में शासक बने। हमारे बाप-दादा राजा महाराजा थे। महिलाएं राजकुमारी, रानियां थीं। डूंगरपुर में 1282 में डूंगर भील राजा थे। बांसवाड़ा में 16वीं सदी में बांसिया भील राजा थे। महाराणा प्रताप के पूर्वज राणा मोकल की हत्या हुई। मेवाड़ का साथ दिया भीलों ने। हत्यारों को शासन-प्रशासन एक परिवार के 7 भाइयों ने पकड़ दिखाया। संविधान की 5वीं अनुसूची कहती है- आदिवासियों का सम्मान होना चाहिए। उनकी बात सुनी जानी चाहिए। आज तक हमारी बात सुनी नहीं गई। राज्य या देश का शासन-प्रशासन रहा, किसी ने आदिवासियों से कोई संवाद नहीं किया। अब हर जिले का जिला प्रशासन, कलेक्टर, एसपी-एसडीएम-थानेदार-तहसीलदार-अफसर-महीने में एक बार आदिवासी संगठनों से बात करें कि आप क्या चाहते हो। कई साल से कर रहे मांग, आंदोलन जारी रहेगा
आदिवासी परिवार के संस्थापक सदस्य कांतिभाई रोत ने कहा- भील प्रदेश की मांग कई साल से चल रही है। आंदोलन भी किए हैं और आगे भी करते रहेंगे। डूंगरपुर के कांकरी-डूंगरी में जो कुछ हुआ था, वह भी भील प्रदेश के लिए हमारा आंदोलन ही था। उन्होंने कहा- डूंगरपुर में 2018 में आदिवासी दिवस के मौके पर तत्कालीन कलेक्टर राजेंद्र भट्ट और एसपी शंकर दत्त शर्मा को समाज की जाजम पर बैठाकर बात की थी। आज से आप भी अपने जिले के प्रशासन एसपी-कलेक्टर को निमंत्रण दे देना। कह देना कि हमारी बात जाजम पर सुननी है, कुर्सी नहीं मिलेगी। दोबारा राजा बनना है तो अनुशासन सबसे पहले होना चाहिए। नशा छोड़ना होगा, गुटखा छोड़ना होगा। आत्म समीक्षा करनी होगी, वजन बढ़ाना होगा। सांसद रोत ने शेयर किया था भील प्रदेश का मैप
बांसवाड़ा-डूंगरपुर से बीएपी सांसद राजकुमार रोत ने 15 जुलाई को सोशल मीडिया पर भील प्रदेश का नक्शा भी जारी किया था। रोत ने लोगों से अधिक से अधिक संख्या में सभा में पहुंचने की अपील की थी। नक्शे को भाजपा नेता राजेंद्र राठौड़ ने बताया था प्रदेशद्रोह
भाजपा नेता राजेंद्र राठौड़ ने X पर पोस्ट कर मैप को प्रदेशद्रोह करा दिया था। लिखा था- सांसद राजकुमार रोत की ओर से जारी किया गया तथाकथित “भील प्रदेश” का नक्शा राजनीतिक स्टंट है। राजकुमार रोत ने दिया राजेंद्र राठौड़ को जवाब
राजेंद्र राठौड़ की प्रतिक्रिया का जवाब देते हुए राजकुमार रोत ने पोस्ट किया- राठौड़ साहब, आपसे मुझे भील प्रदेश की मांग के संबंध में इस प्रकार के बयान की कतई अपेक्षा नहीं थी। भील प्रदेश में ये जिले शामिल करने की मांग आदिवासी जलियांवाला के रूप में मानगढ़ घटना की पहचान
भील प्रदेश की मांग का इतिहास 108 साल पुराना है। 1913 में मानगढ़ नरसंहार के बाद भील समाज सुधारक गोविंद गुरु ने इसकी शुरुआत की थी। 17 नवंबर 1913 को राजस्थान-गुजरात सीमा पर मानगढ़ की पहाड़ियों में ब्रिटिश सेना ने सैकड़ों भील आदिवासियों की हत्या कर दी थी। इस घटना को ‘आदिवासी जलियांवाला’ के रूप में भी जाना जाता है। तब से भील समुदाय अनुसूचित जनजाति के विशेषाधिकारों के साथ एक अलग राज्य की मांग करता रहा है। ……………. यह खबर भी पढ़ें 4 राज्यों के 49 जिले मिलाकर भीलप्रदेश बनाने की मांग:MP-राजस्थान समेत 4 राज्यों के आदिवासी बांसवाड़ा पहुंचे, कहा- हम हिंदू नहीं हैं देश के 4 राज्यों के 49 जिले मिलाकर भील प्रदेश बनाने की मांग जोर पकड़ने लगी है। इस मांग को लेकर गुरुवार को बासंवाड़ा के मानगढ़ धाम में आयोजित महारैली में राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र से हजारों की संख्या में आदिवासी समाज के लोग राजस्थान के बांसवाड़ा स्थित मानगढ़ धाम पहुंचे। महारैली में भील प्रदेश बनाने का राजनीतिक प्रस्ताव भी पारित किया गया है। इस मौके पर नेताओं ने कहा कि वे हिंदू नहीं हैं। इस रैली में कई सांसद-विधायक भी शामिल हुए। (पढ़ें पूरी खबर)
