gif 5 1738817727 H2g0Vu

खैरथल (अलवर) से 3-4 किलोमीटर दूर किरवारी गांव। बरकती की 7 साल की मासूम बेटी इकराना को झुंड में घूम रहे खूंखार कुत्तों ने 1 जनवरी को शिकार बना लिया। कुत्तों ने इतनी बेरहमी से नोचा कि मासूम के पेट की अंतड़ियां तक बाहर निकल आईं। उसकी क्षत-विक्षत लाश मिली। 22 जनवरी को घर के बाहर खेल रहे 6 साल के सैफ को कुत्ते घसीटकर ले गए। इतना नोचा कि शरीर पर 200 से ज्यादा छोटे-बड़े जख्म हो गए। सैफ जिंदगी और मौत के बीच झूल रहा है। 10 दिन बाद फिर उसी झुंड खेत में काम कर रही 8 महीने की गर्भवती आयशा पर हमला किया। किसी तरीके से भागकर जान बचाई। किरवारी गांव ही नहीं, आस-पास के दर्जनभर गांव-ढाणियों में खूंखार कुत्तों का आतंक है। कुत्तों का झुंड में हमला करना, घसीटना और मौत तक नोचना… खौफ का दूसरा नाम बन चुका है। चर्चा है कि इंसान के सबसे अच्छे दोस्त माने जाने वाले कुत्ते ‘आदमखोर’ बन गए हैं। गांव वालों का कहना है कि जानवरों का खून मुंह लगने के बाद अब बच्चे इनके निशाने पर हैं। दैनिक भास्कर ने हमले के शिकार हुए परिवारों और डॉग बिहेवियर एक्सपर्ट से बात कर पूरी हकीकत जानी। पढ़िए- ये रिपोर्ट… पहले नीलगाय का शिकार किया, फिर इकराना को दबोचा
इकराना के ताऊ आस मुहम्मद (कालू) ने बताया- 1 जनवरी की शाम करीब 4 बजे घर के 5 बच्चे इकराना, फिजी, जानिस्ता, बुल्लम और वफाना घर लौट रहे थे। करीब आधा किलोमीटर दूर होंगे। अचानक 10-12 कुत्तों का झुंड खेतों से निकलकर आया और हमला कर दिया। बाकी बच्चे भाग निकले, लेकिन झुंड के कुत्तों ने इकराना को दबोच लिया। किसी शिकारी प्रजाति के जानवर की तरह उसे घसीटते हुए खेत में ले गए। बच्चों के शोर पर जब तक लोग पहुंचते खूंखार कुत्तों ने इकराना के सिर के बाल चमड़ी समेत उखाड़ दिए थे। उसके गले, सीने और पेट को नुकीले दांतों से चीर दिया था। इतना खौफनाक तरीके से हमला किया कि बच्ची की अंतड़ियां तक बाहर निकल दीं। जब तक उसे खैरथल हॉस्पिटल लेकर पहुंचे, बच्ची की मौत हो गई थी। ताऊ आस मुहम्मद बताते हैं- हमें बाद में पता चला कि इकराना पर हमला करने से कुछ घंटे पहले पास के ही खेतों में एक नीलगाय का भी शिकार हुआ था। लेकिन समझ से परे है कि कुत्ते भला ऐसा कैसे कर सकते हैं? इसके बाद भी लगातार इलाके में छोटे बच्चे, महिलाएं और पालतू जानवरों पर ये खूंखार जानवर लगातार बेखौफ हमला कर उन्हें अपना शिकार बना रहे हैं। इनकी शिकारी प्रवृत्ति इतनी बढ़ गई है कि भेड़ियों की तरह झुंड में चल रही भेड़-बकरियों के बच्चों को दांत में दबोचकर भाग जाते हैं। खैरथल के आसपास शाहपुरा, किरवारी, भादू की ढाणी, शहदपुर बाग, किशनगढ़ बास समेत 6 गांवों में इनका आतंक है। एक ही दिन में दो बार हमला
किरवारी के पास ही भादू की ढाणी में 22 जनवरी की सुबह करीब 11.30 बजे 6 साल का मुहम्मद सैफ अपने भाई-बहनों के साथ घर के मेन गेट पर खेल रहा था। अचानक कुत्तों का झुंड आया और उसे दांतों से घसीटता हुआ पास ही पहाड़ी की तरफ ले गया। खेत से लौट रहे कुछ लोगों ने चीखें सुनी और दौड़कर कुत्तों को खदेड़ा। इस हमले में सैफ के शरीर को इस कदर नोच डाला कि उसका मांस हड्डी से अलग हो गया था। सैफ के पिता बरकत अली ने बताया कि सिर से लेकर पांव तक उसे छोटे-बड़े 200 घाव थे, जिन्हें देख डॉक्टर्स की भी रूह कांप गई थी। सैफ के सिर में 40 टांके आए हैं। जांघ, कलाई, सिर, पिंडलियों और कमर की सर्जरी की गई है। हमारी ढाणी में ऐसा पहली बार हुआ है। उस दिन प्राइमरी स्कूल के पास एक और बच्ची गरिमा (6) पर भी सुबह-सुबह कुत्तों ने हमला कर उसे बुरी तरह घायल कर दिया था। सैफ के दादा जमालुद्दीन ने बताया की आस पास अक्सर कुत्तों का ये झुंड नीलगाय भेड़ों के बच्चे बकरियों और पाड़ो पर हमला कर उन्हें घायल कर देते हैं। अब बच्चे इनके निशाने पर हैं। बरकत ने बताया कि ढाणी में कुत्तों के हमले में गंभीर घायल कुछ बच्चे अब भी जयपुर के एसएमएस हॉस्पिटल में भर्ती हैं। आसपास दो स्कूल हैं, लेकिन बच्चे वहां जाने से घबरा रहे हैं। जानवरों का खून मुंह लगा, अब बच्चे भी निशाने पर
गांव के लोगों ने बताया कि यहां नया कुवां, साईवाड़ और लिसाणी के बीच पहाड़ों के करीब 2 किमी क्षेत्र में इन कुत्तों ने अपना ठिकाना बना रखा है। काफी साल से ये कुत्ते पहाड़ और खेतों में रहने वाली नील गाय, पालतू मवेशियों, भेड़-बकरियों और मेमनों को शिकार बनाते आ रहे हैं। जनवरी से अचानक इन कुत्तों ने छोटे बच्चे को भी निशाना बनाना शुरू कर दिया है। झुंड में कुत्तों की संख्या पहले 20-25 थी, जो अब बढ़कर करीब 30-40 हो गई है। ये 10-12 का एक झुंड बनाकर अचानक हमला कर रहे हैं। दिन में पहाड़ियों में छिपे रहते हैं, लेकिन शाम होते ही इंसानी बस्तियों में आ जाते हैं। घर के बाहर से बच्चों को घसीटकर ले जाने की घटनाएं हो रही हैं। सैफ के शरीर के जख्म देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है, क्योंकि नोचने की ऐसी हिंसक प्रवृत्ति आम कुत्तों में नहीं पाई जाती। किरवारी गांव के ही बुजुर्ग रमेश चंद का कहां है कि ये कुत्ते खेत और पहाड़ के आस पास भेड़ बकरियों को भी शिकार कर मार डालते है। इनके मुंह खून लग गया है जिस वजह से ये अब बच्चों पर भी हमला करने लगे हैं। न रात को नींद, न दिन को सुकून- ‘घरों में कैद बचपन’
बीते एक महीने से किरवारी गांव और इसके आस पास के 6-7 गांवों में इन कुत्तों का खौफ इतना बढ़ गया है कि जब तक बच्चे घर के बाहर खेलते हैं, परिवार के लोग उनकी चौकसी करते हैं। स्कूल भेजना हो या पास की दुकान से कोई सामान लाना हो, बच्चों को नहीं भेज रहे। जानकारी में आया कि कुछ लोगों ने तो इन हमलों के डर से अपने बच्चों को रिश्तेदारों के यहां भेज दिया है। गांव वालों का कहना है की प्रशासन के प्रयास नाकाफी हैं। गांव खैरथल के नगर पालिका क्षेत्र में ही आते हैं। पालिका की गाड़ी आकर गांव के ही आवारा कुत्तों को उठाकर ले जाती है। एंटी रेबीज के इंजेक्शन लगाने के बाद इसी सीमा में छोड़ जाती है। जबकि असली खतरा तो पहाड़ों की तलहटी में मौजूद खुंखार कुत्तों के झुंड से है। इस खौफ से आजाद करने के लिए अभी तक प्रशासन ने कोई खास कदम नहीं उठाया है। लोगों का कहना है की यह सिर्फ ‘आवारा कुत्तों’ का मामला नहीं है यह किसी बड़ी समस्या का संकेत भी हो सकता है। क्या यह ‘हाइब्रिड-वाइल्ड डॉग्स’ का नया क्लस्टर है?
आखिर क्या वजह है कि कुत्ते इतने खूंखार हो गए हैं? जयपुर नगर निगम के वेटरनरी स्पेशलिस्ट डॉ. सुनील चावला और एंटी रेबीज सेंटर के मेडिकल ऑफिसर डॉ. महेश वर्मा का कहना था कि खैरथल में कुत्तों का इस तरह का हमले करना अपने आप में हैरान करने वाला है। ऐसा कभी-कभार ही देखने को मिलता है। असामान्य घटनाएं हैं
पागल होने होने पर, भूख प्यास या तनाव में होने अथवा इलाका छिन जाने के बाद भी कुत्ते केवल एक-दो बार काट कर छोड़ देते हैं। फिर किसी और को काटने दौड़ पड़ते हैं। लेकिन खैरथल में हुई हमले की घटनाएं बहुत असामान्य हैं। मरने तक नोचना, पलटकर बार-बार हमला करना, छोटे बच्चों को झुंड में दबोचकर उठा ले जाना भेड़िए और जंगली कुत्ते करते हैं। इसलिए पशुपालन विभाग को इस पर स्टडी करनी चाहिए कि ऐसा क्यों हो रहा है। कुत्तों के हमले की यह खबर भी पढ़िए… खैरथल में कुत्तों के हमलों से दहशत में बच्चे:एक महीने में पांच घटनाएं, एक बच्ची की जान गई, दो को रेफर करना पड़ा

By

Leave a Reply