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मदरसे के 75 से ज्यादा हाफिज सुना रहे हैं तरावीह की नमाज में कुरआन

कासं | टोंक देश-दुनिया में दीनी तालीम के ऐतेबार से टोंक शहर का नाम विदेशों तक में आज भी सम्मान से लिया जाता है। यहां के मदरसों में आला तालीम हासिल करने के लिए एक समय तक विदेशों तक से तालिबे इल्म आया करते थे। इन मदरसों में ऐतिहासिक खलीलिया मदरसे का नाम भी सफे अव्वल रहा। आज भी इस मदरसें के करीब 75 से अधिक हाफिज कंठस्थ कुरआन की तिलावत राज्य एवं राज्य के बाहर तरावीह की नमाज़ में सुना रहे हैं। हालांकि वर्तमान में पूर्व जैसी स्थिति यहां पर अब नजर नहीं आती है। लेकिन मदरसे में आज भी दीनी तालीम व दुनियावीं तालीम भी दी जा रही है। सन् 1899 में इस मदरसे की बुनियाद हकीम सैयद बरकत अहमद साहब ने रखी थी, जिनकी पहचान एक समय विदेशों तक थी। इस मदरसे में मिस्त्र, बुखारा, ताशकंद, सरहद काबुल, उज्बेकिस्तान, इराक सहित कई मुल्कों के तालिबे इल्म यहां पर दीनी तालीम के लिए आया करते थे। हाफिज डा. राशिद मियां ने बताया कि रियासत काल में टोंक ऐसी रियासत थी, जहां शरीयत का दफ्तार चला करता था। खाड़ी देशों से भी उसमें सवाल आते थे। यहां के नामी उलेमाओं की वजह से यहां की सनद का बहुत महत्व हुआ करता था। यहीं वजह थी कि विदेशी तालिबे इल्म भी यहां पर तालीम हासिल करने आए। मदरसों का रहा है बड़ा इतिहास रियासत काल से अब तक टोंक के मदरसों का अपना अलग ही इतिहास रहा है। प्रथम नवाब अमीर खां के समय मौलाना खलीलुर्रहमान युसूफी जो रामपुर के थे, उन्होंने मोतीबाग में स्थित मदरसे में पढ़ाना शुरू किया। ये मदरसा प्रथम नवाब के शासन काल की शुरुआत में ही शुरू हो गया था। इसी समय मदरसा अमीरिया भी संचालित हुआ। उसके बाद एक मदरसा शाही जामा मस्जिद में भी संचालित हुआ। एक मदरसा काफला जामा मस्जिद में संचालित हुआ। जिसकी बुनियाद मौलवी सिराजुर्रहमान साहब ने रखी। दारुल उलूम फुरकानिया सहित टोंक शहर में हर मोहल्ले में कम से कम एक मदरसा ऐसा था, जिनका अपनी आला तालीम के ऐतबार से नाम रहा है। वर्तमान में भी कई मदरसे संचालित है, जिसमें आधुनिक शिक्षा के लिए शिक्षा अनुदेशक आदि भी सेवाएं दे रहे हैं।

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