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भास्कर न्यूज | राजसमंद. राजसमंद में प्लास्टिक मुक्त अभियान का असर अब खत्म होता दिख रहा है। सरकार ने 1 जुलाई 2022 से देशभर में सिंगल यूज प्लास्टिक और पॉलीथीन पर पूरी तरह रोक लगाई थी। मकसद था भारत को पॉलीथीन मुक्त बनाना। लेकिन दो साल बाद भी राजसमंद में इसका कोई असर नहीं दिख रहा। नगर परिषद ने अब तक करीब 2500 जुट और कपड़े के थैले बांटे फिर भी लोग घर से थैला लेकर नहीं निकल रहे। दुकानदार भी प्लास्टिक की थैलियों में सामान देने से नहीं हिचक रहे। सब्जीमंडी, ठेले, किराना सामान विक्रेता सभी जगह पॉलीथीन का खुला इस्तेमाल हो रहा है। इससे पर्यावरण और जनजीवन पर बुरा असर पड़ रहा है। शहर की सबसे बड़ी कृषि सब्जीमंडी, पुरानी और नई सब्जीमंडी, राजनगर मंडी और अन्य बाजारों में भी पॉलीथीन का धड़ल्ले से उपयोग हो रहा है। फुटपाथ की थड़ियों पर भी यही हाल है। नगर परिषद ने पिछले चार माह में 830 किलो पॉलीथीन जब्त की। उल्लंघन करने वालों पर 1000 रुपए का जुर्माना भी लगाया फिर भी लोगों पर इसका कोई असर नहीं पड़ा। उल्टा पॉलीथीन का इस्तेमाल और बढ़ गया। प्रशासन कर रहा जागरुकता का प्रयास : सिंगल यूज प्लास्टिक बंद होने पर प्रशासन ने नुक्कड़ नाटक, रैलियां, दीवार लेखन और जागरूकता अभियान चलाए। लेकिन लोगों पर इनका कोई असर नहीं हुआ। आज भी 70 से 80 प्रतिशत लोग पॉलीथीन का इस्तेमाल कर रहे हैं। शहर के कूड़े के ढेर पॉलीथीन से भरे पड़े हैं। यह साफ करता है कि प्रतिबंध सिर्फ कागजों तक सीमित है। पर्यावरण को नुकसान : पॉलीथीन और सिंगल यूज प्लास्टिक हजारों साल तक नष्ट नहीं होते। ये मिट्टी में मिलकर उसकी उर्वरता घटाते हैं। सूक्ष्मजीव और पौधों का विकास रुकता है। यह कचरा नदियों और नालों से होते हुए समुद्र तक पहुंचता है। समुद्री जीव इसे निगल लेते हैं। इससे उनकी मौत हो जाती है। प्लास्टिक के छोटे टुकड़े पानी में घुलकर माइक्रोप्लास्टिक बन जाते हैं। ये खाद्य श्रृंखला में शामिल हो जाते हैं। इससे इंसानों और जानवरों की सेहत पर खतरा बढ़ता है। प्लास्टिक जलाने से जहरीली गैसें निकलती हैं। इनमें कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड और डाईऑक्सीन शामिल हैं। ये गैसें हवा को प्रदूषित करती हैं। ओजोन परत को नुकसान पहुंचता है। ग्लोबल वार्मिंग बढ़ती है। शहर में जगह जगह होती नालियां और नाले जाम : फेंकी गई पॉलीथीन नालियों को जाम कर देती है। इससे जलभराव होता है। मच्छर और कीट पनपते हैं। बीमारियां फैलती हैं। जानवर प्लास्टिक खा लेते हैं। इससे उनकी पाचन प्रणाली बंद हो जाती है। उनकी जान चली जाती है। प्लास्टिक में कई जहरीले रसायन होते हैं। ये खाने-पीने की चीजों में मिल सकते हैं। खासकर जब प्लास्टिक को गर्म किया जाता है। इससे कैंसर का खतरा बढ़ता है। हार्मोनल असंतुलन होता है। प्रजनन में दिक्कत और मधुमेह हो सकता है। गर्भवती महिलाओं में थैलेट्स की मात्रा बढ़ने से भ्रूण पर असर पड़ता है। बिस्फेनॉल ए लीवर और अग्नाशय को नुकसान पहुंचाता है। प्लास्टिक जलाने से निकलने वाली गैसें सांस की दिक्कत, अस्थमा और अन्य बीमारियां पैदा करती हैं। ये रसायन शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को भी कमजोर करते हैं।

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