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राजस्थान के नए पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) राजीव शर्मा होंगे। भजनलाल सरकार ने उनके नाम पर मुहर लगा दी है। यूपीएससी के पैनल ने राज्य सरकार को तीन आईपीएस राजीव शर्मा, राजेश निर्वाण और संजय अग्रवाल के नाम शॉर्टलिस्ट कर भेजे थे। डीजीपी की दौड़ में 1990 बैच के IPS राजीव शर्मा का नाम सबसे आगे चल रहा था। केंद्र में प्रतिनियुक्ति पर गए राजीव शर्मा को बुलाने के लिए सरकार ने पत्र लिखा था। आईपीएस राजीव शर्मा कैसे सरकार की पहली पसंद बने और राजेश निर्वाण व संजय अग्रवाल क्यों पिछड़ गए। इसे भास्कर ने एक्सपर्ट से समझने की कोशिश की। एक्सपर्ट की मानें तो सरकार ने निष्ठा और योग्यता काे ध्यान में रखते हुए डीजीपी का चयन किया। राजीव शर्मा के डीजीपी बनने के पीछे 5 कारण सरकार ने तीन नामों में से शर्मा को चुना
कार्मिक विभाग ने 7 आईपीएस के नाम यूपीएससी को भेजे थे। आईपीएस राजेश आर्य के इनकार करने के बाद नए डीजीपी के चयन के लिए दिल्ली में 27 जून को बैठक हुई। जिसमें छह नामों पर चर्चा हुई। आयोग ने नियमानुसार डीजीपी के लिए तीन नामों पर सहमति जताई। आयोग ने राजीव शर्मा, राजेश निर्वाण और संजय अग्रवाल के नाम शॉर्टलिस्ट कर राज्य सरकार को भेजे। इनके चयन में वरिष्ठता, सेवा रिकॉर्ड और केंद्र व राज्य स्तर पर अनुभव को ध्यान में रखा गया। राजस्थान में नए डीजीपी के चयन में हुई देरी का कारण पैनल में गए नामाें को लेकर चर्चाओं का दौर था। इन नामों में से सरकार ने राजीव शर्मा के नाम पर सहमति दी। कार्मिक विभाग ने उन्हें रिलीव करने के लिए केंद्र को पत्र लिखा। केंद्र की मंजूरी के बाद आखिरकार गुरुवार को उन्हें डीजीपी बनाने के आदेश जारी कर दिए। क्यों पिछड़े राजेश निर्वाण और संजय अग्रवाल
सुप्रीम कोर्ट के आदेश और नियमानुसार वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी को ही डीजीपी बनाने की परंपरा रही है। लेकिन कई बार यह परंपरा टूटी भी है। कई बार सीनियर पुलिस अधिकारी को दरकिनार कर जूनियर अधिकारी को डीजीपी बनाया जाता रहा है। राजस्थान में भी ऐसा कई बार हुआ है। वरिष्ठ पत्रकार नारायण बारेठ का कहना है कि बीजेपी शासित राज्यों में यह ज्यादा देखा गया है। राजस्थान में पूर्व सरकारों ने वरिष्ठता को लांघकर अपनी पसंद के डीजीपी नियुक्त किए हैं। हालांकि यूपी की तुलना में राजस्थान में बड़े स्तर पर वरिष्ठ अधिकारियों को दरकिनार कर डीजीपी की नियुक्ति नहीं हुई है। यही कारण है कि पैनल में शामिल 1992 बैच के आईपीएस संजय अग्रवाल और राजेश निर्वाण डीजीपी बनने की दौड़ में शामिल थे। सरकार को भेजे गए यूपीएससी के पैनल में भी उनका नाम शामिल था। संजय अग्रवाल अभी डीजी इंटेलिजेंस के पद पर कार्यरत हैं। वहीं राजेश निर्वाण केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर दिल्ली में तैनात हैं। दोनों ने राजस्थान व केंद्र में कई महत्वपूर्ण पदों की जिम्मेदारी संभाली है। इसके बावजूद वरिष्ठता के पैमाने व सरकार की पसंद के मामले में दोनों अधिकारी पिछड़ गए। क्या अगले डीजीपी बन सकते हैं राजेश आर्य व संजय अग्रवाल?
नवनियुक्त डीजीपी राजीव शर्मा का कार्यकाल 2 साल का होगा। इसके बाद आईपीएस संजय अग्रवाल और राजेश निर्वाण में से कोई नया डीजीपी बन सकता है। वरिष्ठता के आधार पर यूपीएससी के पैनल में इनके अलावा 1993 बैच के आईपीएस गोविंद गुप्ता का नाम शामिल हो सकता है। राजेश निर्वाण तीन साल पांच महीने और संजय अग्रवाल तीन साल छह महीने बाद रिटायर हाेंगे। ऐसे में सरकार बीच में कोई उलटफेर नहीं करती है तो इनमें से कोई एक अधिकारी को डीजीपी बनाए जाने पर विचार कर सकती है। आईपीएस अधिकारी गोविंद गुप्ता और राजेश आर्य करीब ढाई साल बाद रिटायर होंगे। वहीं 1994 बैच के आईपीएस अधिकारी आनंद कुमार श्रीवास्तव के रिटायरमेंट में दो साल बाकी हैं। गहलोत और वसुंधरा सरकार से अलग निर्णय
वर्तमान सरकार डीजीपी चयन को लेकर पूर्ववर्ती सरकारों की परिपाटी से अलग दिखाई दी। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और वसुंधरा राजे ने अपने कार्यकाल के दौरान वरिष्ठता लांघकर अपनी पसंद के आईपीएस को डीजीपी बनाया। जबकि वर्तमान सरकार ने वरिष्ठता का सम्मान करते हुए वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी को यह जिम्मेदारी सौंपी। राजनीतिक विश्लेषक वरुण पुरोहित का कहना है कि मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक जैसे पदों पर आईएएस और आईपीएस के चयन में वरिष्ठता, सेवा कार्य और अनुभव देखा जाता है। लेकिन अंतिम निर्णय राज्य सरकारें ही लेती हैं। राज्य सरकार राजनैतिक दलों की होती हैं और किसी भी पार्टी की सरकार अपने राजनीतिक दृष्टिकोण से ही निर्णय लेती है। इस कारण ब्यूरोक्रेसी और राजनैतिक दलों का एक गठजोड़ बन गया है। इसके कारण आम जनता की सुनवाई नहीं होती और पूर्ण रूप से जनहित में कार्य नहीं होते हैं। कार्यवाहक डीजीपी और अतिरिक्त प्रभार की परंपरा सही नहीं
वरिष्ठ पत्रकार नारायण बारेठ डीजीपी चयन में वरिष्ठता लांघकर पसंद के अधिकारी की नियुक्ति करने और कार्यवाहक डीजीपी बनाने की परंपरा को सही नहीं मानते हैं। उनका कहना है कि पिछले 19 साल से ये मुद्दा चल रहा है। हरियाणा, राजस्थान, झारखंड में एडहॉक डीजीपी बनाया गया। पंजाब में आप पार्टी ने भी एडहॉक डीजीपी बनाया। उत्तरप्रदेश में वरिष्ठ आईपीएस को दरकिनार कर 18वें नंबर के आईपीएस को डीजीपी नियुक्त किया। कई राज्य अस्थाई डीजीपी नियुक्त करने का एक नया रिवाज कायम कर रहे हैं। यह सही नहीं है। सरकारें जब सुप्रीम कोर्ट के निर्देश की पालना नहीं करेगी तो ये समाज में अच्छी नजीर नहीं बनेगी। जहां तक तत्कालीन व्यवस्था की बात है। यह हमारी संसद या राजनैतिक दलों की मेहरबानी नहीं है। ये व्यवस्था सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप से लागू हुई है। जल्द बदलेंगे जिलों के एसपी से डीजी तक
पुलिस विभाग में डीजीपी की नियुक्ति के बाद कई जिलों में एसपी से डीजी लेवल तक अफसरों के तबादले होना तय माना जा रहा है। एसीबी डीजी डॉ. रविप्रकाश मेहरड़ा सोमवार को रिटायर हो गए। ऐसे में डीजी एसीबी का पद रिक्त हो गया है। एडीजी से डीजी के पद पर पदोन्नत होने के बाद आनंद श्रीवास्तव, अशोक राठौड़ और मालिनी अग्रवाल को भी नई पोस्टिंग नहीं दी गई है। इसके अलावा डीआईजी पद पर प्रमोट किए गए 10 आईपीएस अधिकारी अब भी अपने पुराने कार्यस्थलों पर पदस्थ हैं। तीन आईपीएस अधिकारी डीआईजी से आईजी पद पर पदोन्नत हुए हैं, लेकिन अब भी डीआईजी के तौर पर काम कर रहे हैं। झुंझुनूं जिला एसपी का पद भी रिक्त चल रहा है। ऐसे में आगामी तबादला सूची में प्रदेश में कई आईपीएस अधिकारियों का बदलना तय माना जा रहा है। ये खबर भी पढ़ें… राजस्थान के नए डीजीपी बने राजीव शर्मा:आज शाम 5 बजे संभालेंगे पदभार, 6 जिलों में रह चुके एसपी राजस्थान पुलिस को आखिरकार नया मुखिया मिल गया है। 1990 बैच के आईपीएस अधिकारी राजीव शर्मा को राज्य का अगला पुलिस महानिदेशक (DGP) नियुक्त किया गया है। पुलिस मुख्यालय (PHQ) में गुरुवार शाम 5 बजे राजीव शर्मा पदभार संभालेंगे। (यहां पढ़ें पूरी खबर)

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