जवाहर कला केंद्र की ओर से राजस्थान दिवस समारोह के अंतर्गत आयोजित कार्यक्रमों की श्रृंखला में भक्ति प्रवाह का आयोजन हुआ। जहां पं. आलोक भट्ट व समूह ने भक्ति से राष्ट्रभक्ति तक विभिन्न गीत व भजन प्रस्तुत किए। इसी कड़ी में पाक्षिक नाट्य योजना के अंतर्गत हर्षित वर्मा के निर्देशन में नाटक ‘कौव्वों की पाठशाला’ का मंचन हुआ जिसमें पढ़ाई करने के लिए शांति की खोज में अपने दोस्त के घर पहुंचे युवक के संघर्ष को हास्यमय ढंग से प्रस्तुत किया गया। रविवार को सिंगर रिनी चंद्रा व रैपर हनी ट्रूपर की ओर से फ्यूजन बैंड परफॉर्मेंस दी जाएगी। जिसमें राजस्थानी लोक गीतों पर लगेगा फ्यूजन बीट्स का तड़का। शांति की खोज बनी संघर्ष का कारण
विजय तेंदुलकर द्वारा लिखित नाटक ‘कौव्वों की पाठशाला’ का निर्देशन हर्षित वर्मा ने किया है और नाट्य रूपांतरण पद्मजा घोरपड़े ने किया है। नाटक की कहानी सीए की तैयारी कर रहे विद्यार्थी के ईर्द-गिर्द घूमती है जो शांति की खोज में भटकता हुआ अपने दोस्त के घर जा पहुंचता है। यह एक हास्यपूर्ण कहानी है जो यह एहसास कराती है कि लोग जैसा दिखाते हैं उससे काफी अलग वह आपके बारे में चाहते हैं। नाटक की शुरुआत एक कमरे से होती है जिसे मंगेश अपने हाथों से सजा रहा है और उसकी पत्नी शांता वहां खड़ी उसकी गतिविधी देख रही है। मंगेश यह तैयारियां सीए की तैयारी कर रहे अपने दोस्त बालू के लिए कर रहा है। उसे पढ़ाई के लिए शांत वातावरण चाहिए। बालू 15 दिन के लिए मंगेश के घर आकर रहने को तैयार हो जाता है क्योंकि उसके दोस्त ने उसे यह विश्वास दिलाया है कि उसकी पढ़ाई यहां शांतिपूर्ण ढंग से हो सकती है। बालू अपने दोस्त के घर पहुंचता है और एक ही दिन में उसे यह एहसास होने लगता है कि यहां वैसा माहौल नहीं है जैसा उसे बताया गया था। मंगेश के घर पर मेहमानों का काफी आना-जाना है। उसने कहा था कि यहां कोयल की मधुर आवाज से सुबह होती है लेकिन यहां तो आवारा कुत्तों का भौंकना सुनाई देता है। कोई भी समय खाली नहीं जाता जब किसी की आवाज न आती हो। बालू अपनी पढ़ाई पर ध्यान नहीं दे पाता। बढ़ते शोर से उसकी एकाग्रता टूट जाती है और वह मानसिक रूप से परेशान होने लगता है। आखिरकार वह कौव्वों की कर्कश आवाजों से दूर भागना चाहता है और मंगेश का घर छोड़कर वह चला जाता है। यह नाटक हास्य और व्यंग्य के माध्यम से यह दर्शाता है कि हमारी अपेक्षाएं और वास्तविकता कितनी विपरीत हैं साथ ही यह एहसास कराता है कि एकाग्रता की खोज कभी-कभी संघर्ष का कारण बन जाती है। नाटक के दौरान मंच पर हर्षित वर्मा, तुषार चमोला, दर्शन, सावंत मौर्या, संदीप गौतम, ऋतिक भास्कर, रूद्राणी हाडा, दीप्ति ठाकुरी, लक्की मल्होत्रा और आकाश रहे। वहीं मंच परे लाइट पर : साहिल वेद और म्यूजिक पर पलक ने व्यवस्था संभाली। पं. आलोक भट्ट व समूह ने दी श्रीराम जीवन चरित्र की संगीतमय प्रस्तुति राजस्थान दिवस समारोह के अंतर्गत आयोजित ‘भक्ति प्रवाह’ में विशेष संगीतमय प्रस्तुति में भक्ति, शौर्य, राष्ट्रीय अखंडता और भगवान राम-कृष्ण की भक्ति से कार्यक्रम की शुरुआत हुई। संगीतकार पं. आलोक भट्ट ने मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के जीवन चरित्र की संगीतमय प्रस्तुति के अंतर्गत “हम सबके प्रिय राम”, “राम द्वारा आचार्यों से शिक्षा ग्रहण”, “ठुमक चलत रामचंद्र” और “केवट प्रसंग” जैसे महत्वपूर्ण प्रसंगों को संगीतबद्ध किया। इसके बाद कृष्ण भक्ति पर आधारित प्रस्तुति में वल्लभाचार्य कृत मधुराष्टक “अधरं मधुरं”, महाकवि जयदेव की विष्णु स्तुति “श्रित कमला”, सूरदास का “यशोदा हरि पालने झुलावे”, परमानंद दास की “ब्रज के बिरही लोग”, और मीरा बाई की “मैं तो गिरधर आगे नाचूंगी” को संगीतमय रूप में प्रस्तुत किया गया। राष्ट्र वंदन के अंतर्गत “जय जय राजस्थान” गीत की शानदार प्रस्तुति हुई, जिसमें राजस्थान की महिमा को गान के माध्यम से व्यक्त किया गया। कार्यक्रम का समापन “वंदे मातरम्” के सामूहिक गायन से हुआ, जिससे पूरा वातावरण भक्तिमय और राष्ट्रप्रेम से ओतप्रोत हो गया। इस आयोजन में संगीतकारों और वादकों का विशेष योगदान रहा। गायन में अंकित भात, बृजेश व्यास, सूरज मोठिया, युवराज और हिमांशु सैन ने अपनी आवाज़ से समा बांधा। वाद्य यंत्रों पर संगत देने वालों में पंडित हरिहर शरण (सितार), गिर्राज बलोदिया (हारमोनियम), अश्वनी शर्मा और अनिल शर्मा (बांसुरी), ऋषि शर्मा और ऋतिक व्यास (तबला), अबीर तिवारी (पखावज), पवन जैन (की-बोर्ड), सतीश शर्मा (ऑक्टोपैड), कुणाल शर्मा (गिटार), और शशि मोठिया (ड्रम्स) शामिल रहे। कार्यक्रम की प्रकाश व्यवस्था का कार्यभार राजेंद्र शर्मा “राजू” ने संभाला।
