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1999 में हुए कारगिल युद्ध को आज 25 साल पूरे हो गए हैं। करीब दो महीने तक चलने वाले इस युद्ध में देश के 527 वीर सपूतों ने अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया था। शहीदों की इस फेहरिस्त में राजस्थान के 60 बहादुर बेटों ने इतिहास में नाम दर्ज करवाया था। अमर शहीदों ने अपनी देश की सीमाओं की रक्षा के लिए ‘राष्ट्र प्रथम’ को ध्यान में रखते हुए अपनी प्राण न्योछावर कर दिए थे। इन वीर सपूतों की शहादत में हर साल देशभर में कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। जहां वीरांगनाओं का सम्मान किया जाता है। जयपुर के अमर जवान ज्योति पर भी कारगिल विजय दिवस की रजत जयंती के मौके पर शहीदों की वीरांगना और परिवार के सदस्य जुटे, जहां उनका सम्मान किया गया। वहीं, दैनिक भास्कर ने इन वीरांगना और शहीद परिवार के बात की। आगे पढ़िए पूरी बातचीत… शहीद आनंद सिंह की वीरांगना संतोष कंवर बोली- स्कूल के लिए रास्ते का हो इंतजाम कारगिल में शहीद आनंद सिंह की वीरांगना संतोष कंवर ने बताया- गांव जेतपुरा में शहीद के नाम का स्कूल बनाया गया था। लेकिन स्कूल जाने के लिए रास्ता नहीं है। इससे इस स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों को परेशानी का सामना करना पड़ता है। बच्चों को 2 किलोमीटर घूमकर आना पड़ता है। उन्होंने बताया- वह इस मामले में मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा से स्कूल के रास्ते के लिए गुहार लगाएंगी। ताकि स्कूल को रास्ता मिल पाए। उन्होंने बताया- शहीद आनंद के दादाजी भी सेना में थे। उनसे प्रेरणा लेकर ही वह सेना में शामिल हुए थे। परिवार को उनकी शहादत पर आज भी गर्व है। कैप्टन अमित भारद्वाज के पिता बोले- डायरी से जानी उनके मन की बात कैप्टन अमित भारद्वाज के पिता ओमप्रकाश शर्मा ने बताया- उन्हें गर्व है कि अमित ने देश की रक्षा के लिए प्राण न्योछावर किया। हमारे परिवार से अमित पहला व्यक्ति था, जिसने आर्मी जॉइन की थी। अमित का सेना के लिए समर्पण था। उन्होंने कभी परिवार में किसी को नहीं बताया था कि वह सेना में जाना चाहते थे। अमित के पिता ने बताया कि जब कारगिल में अमित की शहादत हो गई। उसके सामान के साथ डायरी परिवार को मिली। उस डायरी में लिखा था कि मेरी तमन्ना है कि बुरे लोगों के खिलाफ लड़ूंगा। मैं आईपीएस बनूंगा या सेना में जाऊंगा। अमित का हमेशा कहता था कि मन की बात कभी किसी को मत बताओ। आप क्या करने जा रहे हो किसी को मत बताओ। कोई प्रोपेगेंडा मत करो। आपकी सफलता ही आपका सही परिचय देगी। शहीद प्रभुराम चोटिया की बेटी बोलीं- पापा से प्रेरणा लेकर भाई भी सेना मे शामिल होकर कर रहे देश की सेवा कारगिल में नागौर निवासी शहीद प्रभुराम चोटिया की बेटी निरमा ने बताया- मेरे पापा कारगिल की लड़ाई में 18 हजार फीट की ऊंचाई पर चढ़ते हुए दुश्मनों की भारी गोलाबारी से देश की रक्षा करते हुए शहीद हो गए। मेरे पापा जब कारगिल युद्ध में शहीद हुए थे। तब मेरी उम्र महज डेढ़ साल थी। भाई की उम्र साढ़े तीन साल और बड़ी बहन की उम्र साढ़े पांच साल थी। पिता की शहादत के समय हम तीनों बहन भाई काफी छोटे थे। मां भी पढ़ी लिखी नहीं थी। लेकिन मां ने कभी हिम्मत नहीं हारी और हमें हमेशा पिता की वीरता और शहादत के किस्से बताकर मोटिवेट किया। भाई ने इसी से प्रेरणा लेकर सेना में ही भर्ती होकर देश की सेवा करने का प्रण लिया। मेरा भाई आज सीआईएसएफ में असिस्टेंट कमांडेंट के रूप में देश की सेवा कर रहे हैं। शहीद हुए नरेंद्र की पत्नी बोलीं- बेटे ने पिता की कसम को किया पूरा कारगिल की लड़ाई में अलवर निवासी शहीद हुए नरेंद्र की पत्नी सुमित्रा ने बताया- जब कारगिल में नरेंद्र शहीद हुए तब मेरे एक बेटा डेढ़ साल का था और मैं पेट से थी। मेरे बेटे अंकित कुमार ने कम उम्र में ही पिता की शहादत पर कसम ली थी कि वह भी सेना में भर्ती होकर देश की सेवा करेगा। वह आज गुवाहाटी में पोस्टेड है। उन्होंने बताया कि उनके छोटे बेटे अमित कुमार को भी सेना में ही भर्ती करवाना चाहती है। अभी फिलहाल वह पढ़ाई कर रहा है। यहां देखें फोटोज

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