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वित्त वर्ष 2022 में इंडिविजुअल ट्रेडर्स की संख्या में वित्त वर्ष 2019 की तुलना में 500% से ज्यादा की बढ़ोतरी हुई है। 90% एक्टिव ट्रेडर्स को इस दौरान औसतन 1.25 लाख रुपए का नुकसान हुआ। SEBI की 25 जनवरी 2023 को इंडिविजुअल ट्रेडर के FO में प्रॉफिट और लॉस को लेकर पब्लिश रिपोर्ट में ये बात कही गई थी। ‘FO में रिटेल ट्रेडिंग का कोई भी अनियंत्रित विस्फोट न केवल बाजारों के लिए, बल्कि इन्वेस्टर सेंटीमेंट और हाउसहोल्ड फाइनेंस के लिए भी भविष्य की चुनौतियां पैदा कर सकता है। हम इसे सुरक्षित रखना चाहते हैं और यह सुनिश्चित करना चाहते हैं।’ मई 2024 में एक कार्यक्रम में वित्त मंत्री, निर्मला सीतारमण ने ये कहा था। युवा स्पेकुलेटिव ट्रेड में लाखों रुपए गंवा रहे
‘कैपिटल मार्केट रेगुलेटर FO सेगमेंट में स्पेकुलेटिव बेट के खिलाफ चेतावनी देने के लिए “मजबूर” है क्योंकि यह एक निवेशक का माइक्रो इश्यू न रहकर अर्थव्यवस्था का मैक्रो इश्यू बन गया है। हाउसहोल्ड फाइनेंशियल सेविंग्स सट्टेबाजी में जा रही है। युवा ऐसे ट्रेड में लाखों रुपए गंवा रहे हैं।’ सेबी चेयरपर्सन माधबी पुरी बुच ने ये बात कही। कोटक म्यूचुअल फंड के नीलेश शाह ने भी कहा कि FO एक्टिविटी माइक्रो और मैक्रो दोनों स्तरों पर प्रभावित कर रही है। सेविंग करने वाले इन्वेस्टर की जगह स्पेकुलेटर बन गए हैं। माइक्रो इश्यू यानी एसी समस्या जो केवल आपको प्रभावित करती हैं। मैक्रो ऐसी समस्याएं है जो हर किसी को प्रभावित करती हैं। FO में रिटेल पार्टिसिपेशन का बढ़ना अच्छा नहीं
इन बयानों और सेबी की रिसर्च रिपोर्ट से पता चलता है कि FO में रिटेल पार्टिसिपेशन का बढ़ना अच्छा नहीं है। ऐसे में सरकार बजट 2024 में FO ट्रेडिंग को ‘स्पेकुलेटिव’ इनकम के रूप में कैटेगराइज कर सकती है। इसपर 30% की दर से टैक्स भी लग सकता है। हाई रिस्क, हाई प्रॉफिट वाले निवेश हैं स्पेकुलेशन
स्पेकुलेशन एक फाइनेंशियल टर्म है जो किसी एसेट (कमोडिटी, गुड या रियल एस्टेट) को खरीदने से जुड़ा है। इस एसेट में वैल्यू खोने का रिस्क होता है, लेकिन निकट भविष्य में वैल्यू गेन होने की उम्मीद भी होती है। ये हाई रिस्क, हाई प्रॉफिट वाले निवेश हैं जो कम समय के लिए किए जाते हैं। फ्यूचर्स एंड ऑप्शन क्या होता है?
फ्यूचर्स एंड ऑप्शन (FO) एक प्रकार के फाइनेंशियल इंस्ट्रूमेंट हैं जो निवेशक को स्टॉक, कमोडिटी, करेंसी में कम पूंजी में बड़ी पोजीशन लेने की अनुमति देते हैं। फ्यूचर्स और ऑप्शन, एक प्रकार के डेरिवेटिव कॉन्ट्रेक्ट होते हैं, जिनकी एक तय अवधि होती है। इस समय सीमा के अंदर इनकी कीमतों में स्टॉक की प्राइस के अनुसार बदलाव होते हैं। हर शेयर का फ्यूचर्स और ऑप्शन एक लॉट साइज में अवेलेबल होता है।

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