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राजस्थान हाई कोर्ट ने संविदाकर्मी महिला को छह माह की मैटरनिट लीव नहीं देने को गलत माना हैं। जस्टिस अनूप ढंड की अदालत ने महिला संविदाकर्मी को राहत देते हुए राज्य सरकार को निर्देश दिए है कि वह संविदाकर्मी के बकाया मैटरनिटी लीव के माह का वेतन उसे 9 प्रतिशत ब्याज के साथ अदा करे। अदालत ने मामले में टिप्प्णी करते हुए कहा कि एक मां, मां है, चाहे वह नियमित आधार पर कार्यरत हो या संविदा के आधार पर। संविदा कर्मचारियों के नवजात शिशुओं को भी नियमित कर्मचारियों के समान जीवन का अधिकार है। हाई कोर्ट ने यह आदेश बंसती देवी की याचिका पर दिए। छह की जगह दो माह की मैटरनिटी लीव स्वीकृत की
याचिकाकर्ता बसंती देवी की साल 2003 में संविदा के आधार पर नर्स (ग्रेड II) के पद पर नियुक्ति हुई थी। 2008 में याचिकाकर्ता ने एक बच्ची को जन्म दिया और छह महीने की मैटरनिटी लीव के लिए आवेदन किया। लेकिन उसे केवल दो महीने का अवकाश इस आधार पर मंजूर किया गया कि वह संविदा कर्मचारी है। विभाग की ओर से कहा गया कि वित्त विभाग द्वारा 6 नवंबर, 2007 को जारी परिपत्र के अनुसार, संविदा कर्मचारी केवल 2 महीने के मैटरनिटी लीव की हकदार हैं। राज्य संविदाकर्मी के साथ भेदभाव नहीं कर सकता
अदालत ने कहा कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार में मातृत्व का अधिकार भी शामिल है। साथ ही प्रत्येक बच्चे को अपनी मां से पूर्ण प्यार, देखभाल, सुरक्षा और विकास प्राप्त करने का अधिकार भी शामिल है। इसलिए राज्य संविदा के नाम पर किसी महिला को उसके इस अधिकार से वंचित नहीं कर सकता हैं। ऐसा करना न केवल अनुच्छेद 21 के तहत निहित जीवन के अधिकार का उल्लंघन हैं, बल्कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत गारंटीकृत समानता के अधिकार का भी उल्लंखन हैं। इस मामले में यदि समय बीतने के कारण बढ़ी हुई मातृत्व छुट्टी देना संभव नहीं है तो प्रतिवादी याचिकाकर्ता को मुआवजे के रूप में शेष अवधि के लिए अतिरिक्त वेतन 9 प्रतिशत की दर से ब्याज के साथ दे।

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