राजस्थान हाईकोर्ट ने करीब 35 साल की सेवा के बाद रिटायर हुए दैनिक वेतनभोगी कर्मचारी को नियमित करते हुए सभी सेवानिवृति परिलाभ देने का आदेश दिया है। जस्टिस समीर जैन की अदालत ने यह आदेश देवेश कुमार शर्मा की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए। फैसले में हाईकोर्ट ने सरकार को निर्देश दिए है कि वह याचिकाकर्ता को साल 2006 से नियमित करते हुए रिटायरमेंट के सभी परिलाभ अदा करें। वकील हितेष बागड़ी ने बताया कि याचिकाकर्ता की चिकित्सा विभाग कोटा में साल 1985 में दैनिक वेतनभोगी के तौर पर कनिष्ठ लिपिक के पद पर नियुक्ति हुई थी। करीब 25 साल से याचिका लंबित थी
याचिकाकर्ता को उसकी पहली नियुक्ति के कुछ माह बाद ही विभाग ने हटा दिया था। जिसे उसने कोटा श्रम न्यायालय में चुनौती दी। साल 1992 में कोटा श्रम न्यायालय ने याचिकाकर्ता के पक्ष में फैसला दे दिया। जिसके बाद साल 1997 में विभाग ने उसे फिर से नियुक्ति दे दी। याचिकाकर्ता ने विभाग में नियमित करने का आवेदन किया। जिस पर विभाग ने कोई विचार नहीं किया। इस पर याचिकाकर्ता ने साल 2000 में हाईकोर्ट में याचिका दायर की। इस बीच याचिकाकर्ता 60 वर्ष की उम्र में पूर्ण करने के बाद साल 2020 में रिटायर हो गया। साल 2006 से नियमित करने के आदेश
याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि साल 2009 में राज्य सरकार ने नोटिफिकेशन जारी करके कहा कि वे दैनिक वेतनभोगी कार्मिक जिन्होंने बिना किसी अदालत के आदेश से 10 अप्रेल 2006 तक सेवा में 10 वर्ष पूर्ण किए हैं। उन्हें नियमित किया जाए। लेकिन विभाग ने याचिकाकर्ता को नियमित नहीं किया। अदालत ने अपने आदेश में कहा कि विभाग ने श्रम विभाग कोटा के आदेश पर कोई आपत्ति नहीं की। ऐसे में विभाग का यह कहना कि यह आदेश एकतरफा था, मानने योग्य नहीं हैं। वहीं सीएमएचओ बारां द्वारा जारी आदेश में भी याचिकाकर्ता के कार्यभार ग्रहण करने की तिथि 1993 अंकित हैं। ऐसे में याचिकाकर्ता नियमितीकरण का अधिकार रखता हैं।

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