राजस्थान में छोटे-छोटे बच्चे तनाव में आकर सुसाइड कर रहे हैं। महज 10-12 साल की उम्र में बच्चे ऐसे खौफनाक कदम उठा रहे हैं। 10 मार्च को जयपुर के शिप्रापथ इलाके में 5वीं की छात्रा फंदे से झूल गई। दो महीने पहले अलवर के राजगढ़ में भी ऐसा मामला सामने आया था। सबसे बड़ा सवाल यह है कि इतनी कम उम्र के बच्चों में कैसा मानसिक तनाव है और किस बात से वह डिप्रेशन में जाकर आत्मघाती कदम उठा रहे हैं? भास्कर ने बीते 2 साल में कम उम्र के बच्चों के सुसाइड मामलों का एनालिसिस कर एक्सपर्ट की मदद से सवालों के जवाब जाने।
पढ़िए यह स्पेशल स्टोरी… केस-1 : 5वीं क्लास की छात्रा फंदे पर झूली
10 मार्च को जयपुर के शिप्रापथ में 5वीं में पढ़ने वाली 10 साल की बच्ची दोपहर में स्कूल से लौटी। परिवार वाले बाहर गए हुए थे। सिर्फ छोटा भाई घर पर था। मासूम ने उसे एक कमरे में बंद किया और खुद दूसरे कमरे में जाकर सुसाइड कर लिया। परिजनों ने स्कूल में छात्रा पर पढ़ाई का ज्यादा प्रेशर देने का आरोप लगाया है। स्कूल संचालक के खिलाफ मामला दर्ज करवाया है। पुलिस बोली- नकल करते पकड़ा तो डिप्रेशन में आ गई
शिप्रापथ थानाधिकारी राजेंद्र गोदारा ने बताया- छात्रा एग्जाम में नकल करती पकड़ी गई थी। टीचर ने लड़की को कॉपी बदलकर दी और फिर से परीक्षा में बैठा दिया। नकल करने की शिकायत परिजनों से कर दी थी। केस 2 : 10 साल के मासूम बच्चे ने किया सुसाइड
14 जनवरी को अलवर के राजगढ़ में क्लास 6 में पढ़ने वाले 10 साल के मासूम ने अपने घर के पीछे पेड़ पर फंदे से झूल गया। राजगढ़ पुलिस के अनुसार, छात्र बुआ के पास रहकर पढ़ाई करता था। घटना वाले दिन छात्र की मां का फोन आया तो बुआ ने पढ़ाई में लापरवाही की शिकायत कर दी। मां ने छात्र को फोन पर पढ़ाई के लिए डांटा था। छात्र से ये बर्दाश्त नहीं हुआ और उसने खुद को ही खत्म कर लिया। केस 3 : 7वीं क्लास की छात्रा ने किया सुसाइड
26 अगस्त 2024 को भीलवाड़ा के सुभाष नगर इलाके की 7वीं में पढ़ने वाली 11 साल की लड़की ने सुसाइड कर लिया था। सुभाष नगर थानाधिकारी शिवराज गुर्जर ने बताया कि लड़की (मृतक) के माता-पिता दोनों मजदूर थे। सुबह जल्दी काम पर निकल जाते थे। लड़की दिनभर घर में अकेली रहती। इससे उसका व्यवहार एकाकी हो गया था। टोकने पर गुस्सा करने लगी थी। घटना वाले दिन भी माता-पिता मजदूरी पर निकले तो बेटी से कोई खास बात नहीं हुई। शाम को लौटे तो सुसाइड का पता चला। कोई सुसाइड नोट भी नहीं मिला। आशंका है कि छात्रा काफी समय से डिप्रेशन में थी। केस-4 : अपनी नाराजगी लिख किया सुसाइड
भीलवाड़ा के बनेड़ा में वर्ष 2022 में 12 साल की 8वीं क्लास की स्टूडेंट ने सुसाइड कर लिया था। छात्रा ने सुसाइड नोट में लिखा ‘सॉरी मम्मी मैं आज रात को 12 बजे पापा के पास चली जाऊंगी, ताकि मेरी भी इच्छा पूरी हो। मेरे दोस्तों के पास साइकिल है। उनसे मांगने पर कहते हैं तेरी साइकिल नहीं है। मेरे पापा होते तो मेरे भी साइकिल आ जाती।’ बनेड़ा के तत्कालीन थानाधिकारी राजेंद्र ताड़ा ने बताया- कुछ दिन पहले ही पड़ोस में रहने वाले बच्चे ने साइकिल खरीदी थी। उसे देख वह मासूम भी साइकिल की डिमांड कर रही थी। मां ने मना कर दिया था। 6 महीने पहले ही बच्ची के पिता की एक्सीडेंट में मौत हो गई थी। बच्ची पिता की मौत से भी डिप्रेशन में थी। एक्सपर्ट ने बताया मासूम क्यों उठा रहे जानलेवा कदम 1. मानसिक परेशानी : स्कूल में बुलीइंग होना- इसे आम भाषा में डराना या टारगेट करना कहते हैं। दोस्तों या टीचर द्वारा बच्चों को पढ़ाई व अन्य कारणों से लगातार टोकना। ऐसे में बच्चों के आत्मविश्वास और मानसिक स्वास्थ्य पर घातक असर पड़ता है। सुसाइड के ख्याल आने लगते हैं। 2. घरेलू हिंसा : जिन घरों में परिजन हर समय लड़ते-झगड़ते रहते हैं या तलाक हो चुका होता है। उन परिवारों के बीच रहने वाले बच्चे सबसे ज्यादा निराश होते हैं। उन्हें पता नहीं होता है कि उनकी बात सुनने वाला कौन होगा। 3. परफॉर्मेंस का डर : परिजन बच्चों पर छोटी उम्र में ही हर तरह से परफॉर्मेंस का दबाव बना रहे हैं। रहने, खाने, लोगों के बीच ढंग से बातचीत करने, समाज में स्टेटस दिखाने के लिए मासूमों पर मानसिक दबाव डाला जाता है। इस तरह का दबाव बच्चों को तनाव में धकेलता है। 4. बायोलॉजिकल क्लॉक : 10-12 साल की उम्र में बच्चे आस-पास के परिवेश को देख खुद को बड़ा महसूस कर रहे हैं। बच्चे मानसिक रूप से बड़ों के जैसे सोच रहे हैं, वैसे ही तनाव ले रहे हैं और वैसे ही फैसले ले रहे हैं। हार्मोन्स बदलाव का समय सवाई मानसिंह हॉस्पिटल, जयपुर के मनोचिकित्सक डॉ. सुनील शर्मा ने बताया- हाल ही में सुसाइड के जो केस सामने आए हैं, उनमें बच्चों की उम्र महज 10-12 साल है। यह चाइल्ड हुड से यंग एज में प्रवेश का ट्रांजिशन पीरियड है। हार्मोन का बदलाव भी होता है। बच्चों का कम उम्र में ही सोचने का दायरा बढ़ रहा है। वह चाहता है कि उसकी बात को महत्व दिया जाए। उसके जीवन में कोई दखल न करे। बच्चों की इन भावनाओं को कोई समझ नहीं पाता तो वह प्रेशर महसूस करते हैं। कई बार चौंकाने वाले फैसले ले लेते हैं। मोबाइल ने काल्पनिक दुनिया में डाल दिया
MDM हॉस्पिटल जोधपुर के मनोचिकित्सक डॉ. सुरेंद्र कुमार के अनुसार कम उम्र के बच्चे मोबाइल एडिक्टेड हो रहे हैं। क्या देखना चाहिए और क्या नहीं, इसकी गाइडेंस नहीं मिलती है। उदाहरण के लिए छोटे बच्चे कार्टून से काफी प्रभावित होते हैं, उसे देखकर काल्पनिक दुनिया में रहने लगते हैं। वैसा व्यवहार भी करने लगते हैं।
