प्रतापगढ़/बड़ीसाखथली | जिले में इस बार खरीफ की बुवाई पर मौसम की मार पड़ गई है। बीते 27 दिनों से लगातार रुक-रुक कर हो रही बारिश ने किसानों की कमर तोड़ दी है। खेतों में अत्यधिक नमी और जलभराव की स्थिति है, जिससे बुवाई करना नामुमकिन हो गया है। हालात ये हैं कि अब तक कुल रकबे की महज 45 फीसदी खेतों में ही बुवाई हो पाई है। जबकि 55 फीसदी खेत अभी भी खाली हैं। मौसम विभाग ने 8 जुलाई तक बारिश से राहत की कोई संभावना नहीं जताई है। ऐसे में किसान मानसिक और आर्थिक दोनों स्तरों पर संकट में हैं। जिले में सर्वाधिक क्षेत्र में सोयाबीन की फसल की जाती है। जिले में सोयाबीन की कुल बुवाई का लक्ष्य 1 लाख 18 हजार हेक्टेयर रखा गया है, लेकिन अब तक सिर्फ 53 हजार हेक्टेयर में ही बुवाई हो सकी है। इसमें भी कई खेतों में फसल खराब होने की स्थिति बन गई है। खेतों में पानी भरा है और नमी इतनी है कि ट्रैक्टर और बैलों से बुवाई संभव नहीं हो रही। ग्रामीण किसानों का कहना है कि अगर इसी तरह बारिश चलती रही, तो उन्हें दोबारा बुवाई करनी पड़ेगी, जिससे डबल बोवनी का बोझ और बढ़ जाएगा। अनुमान है कि करीब 15 फीसदी किसानों को दोबारा बोवनी करनी पड़ेगी। जिला फसलों की बुवाई से 20 से 22 दिन पिछड़ चुका है। यह अंतर और बढ़ता जा रहा है। अगर जुलाई के दूसरे सप्ताह तक बारिश नहीं रुकी तो यह देरी एक माह से भी ज्यादा हो सकती है। जिले की मुख्य फसलें सोयाबीन, उड़द, मक्का, तिल, चावल, ज्वार और कपास हैं, जिन पर अब संकट मंडरा रहा है। किसानों का कहना है कि शुरुआती फसल में ही नुकसान हो गया तो साल भर की मेहनत और मुनाफा सब खत्म हो जाएगा। कई आदिवासी किसान बगैर बुवाई के खाली हाथ बैठे हैं। क्षेत्र के आदिवासी किसान पहले से ही आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं। बुवाई में देरी ने उनकी मुश्किलें और बढ़ा दी हैं। ऐसे में किसानों ने राज्य सरकार से मांग की है कि उन्हें समय पर गेहूं वितरण, वरिष्ठ पेंशन, और नरेगा जैसी योजनाओं का तुरंत लाभ दिया जाए, ताकि ग्रामीण महिला-पुरुषों को राहत मिल सके। उनका कहना है कि अगर अब मदद नहीं मिली, तो पूरे साल की कृषि व्यवस्था गड़बड़ा जाएगी और रोजगार का संकट भी गहरा जाएगा।