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45 डिग्री में नाकाबंदी, पुलिसकर्मियों की वर्दी के रंग उड़े:बाड़मेर में दोपहर में फैक्ट्रियों में ‘लॉकडाउन’, पांच घंटे नहीं होता काम, गायों के लिए एसी-कूलर​​​​​​​

दुनिया के सबसे गर्म शहरों में शुमार रहने वाला बाड़मेर। यहां बॉर्डर इलाकों में गर्मियों में तापमान 46° से 51°C तक पहुंच जाता है। अप्रैल में ही गर्मी के रिकॉर्ड टूटने शुरू हो जाते हैं। सूरज की तपिश से रेगिस्तान की मिट्टी से आग बरसने लगती है। गर्मी की ऐसी मार को लोग कैसे झेल पाते हैं? यह जानने के लिए भास्कर टीम ने गुजरात बॉर्डर पर सटे सरहदी थाने से बाड़मेर शहर तक सफर की शुरुआत की। नाकाबंदी करते पुलिसकर्मियों ने बताया कि गर्मी से उनकी वर्दी का रंग उड़ जाता है। 6 महीने में ही उनकी वर्दी खराब हो जाती है। यहां पशुओं को भी गर्मी से बचाने के लिए कूलर-AC में रखना पड़ता है। फैक्ट्रियों में दिन के पांच घंटे लॉकडाउन जैसी स्थिति रहती है। पढ़िए- पूरी रिपोर्ट गर्मी ऐसी कि पुलिस की वर्दी का बदल जाता है रंग
भास्कर टीम सबसे पहले सरहदी थाने बाखासर पहुंची। यह बॉर्डर से महज 6 किलोमीटर दूर आखिरी थाना है, जो कि गुजरात सीमा से भी लगता है। दोपहर के 2 बजे थे। हमने नोट किया तो तापमान करीब 45 डिग्री था, लेकिन ‘लू’ इस तरह से झकझोर रही थी, जैसे आग की लपटें चेहरे पर पड़ रही हो। हम थाना परिसर में दाखिल हुए तो वहां सन्नाटा था। अंदर एक पुलिसकर्मी आईदान सिंह पंखे के नीचे बैठे हुए मिले। पसीना पोंछते हुए आईदान सिंह बोले- देखिए, गर्मी से राहत के तमाम प्रयास ऐसे ही विफल रहते हैं। कंप्यूटर तक काम करने बंद कर देते हैं। मशीनरी काम करती रहे, इसके लिए एक कमरे में एसी जरूर लगवाया था, लेकिन वह सिर्फ कंप्यूटर सिस्टम के लिए है। छत पर रखी टंकियां का पानी इतना गर्म हो जाता है कि हाथ धोएं तो जल जाए। रण से लगता हुआ थाना है, इसलिए 24 घंटे नाकाबंदी रहती है। तेज धूप में ड्यूटी करने और यहां गर्म पानी से धोने के कारण 6 महीने में ही यूनिफॉर्म का रंग बदल जाता है। पुलिसकर्मी आईदान ने बताया कि अभी बाखासर-गुजरात बॉर्डर के पास चेकिंग चल रही है, मैं भी वहीं जा रहा हूं। हम उनके साथ-साथ नाकाबंदी पर पहुंचे। तपती दोपहरी में यूनिफॉर्म पहने 6 पुलिसकर्मी वाहनों को रोककर चेकिंग कर रहे थे। दरअसल, यहां शराब तस्करी के मामले होते हैं। दोपहर में चौकस रहना पड़ता है। ड्यूटी ऑफिसर आईदान राम बताते हैं- हमारे लिए सर्दी हो या गर्मी, रूटीन में कोई बदलाव नहीं होता। सरहदी थाना होने के चलते यहां दोपहर में ऐसे ही औचक चेकिंग की जाती है। दोपहर में फैक्ट्रियों में नहीं होता काम, मशीनें हो जाती है गर्म
बाखासर के बाद हम उत्तरलाई की तरफ बढे़। इस इलाके में फैक्ट्रियां है। यहां ज्यादातर पीओपी, मुल्तानी मिट्टी, जिप्सम की कई यूनिट्स हैं। हाईवे किनारे स्थित एक फैक्ट्री में दाखिल हुए तो भरी दोपहर में सन्नाटा पसरा हुआ था। आस-पास की कई फैक्ट्रियों में जाकर देखा, एक भी फैक्ट्री में कोई काम नहीं हो रहा था। एक यूनिट के बाहर बने कमरों में मजदूर पंखे की हवा में आराम करते हुए मिले। खेताराम नाम के एक मजदूर ने बताया कि यहां इतनी भीषण गर्मी है कि दोपहर में काम करना बहुत मुश्किल है। मशीनें भी गर्म हो जाती है। फैक्ट्री के भीतर गर्मी इतनी बढ़ जाती है कि कोई काम नहीं कर सकता है। इसलिए यहां फैक्ट्रियों में सुबह 8 से दोपहर 12 बजे तक काम होता है। कई जगह तो 11 बजे ही मशीनें बंद कर देते हैं। शाम को सूरज के तेवर कम होने पर 5-6 बजे फिर से काम शुरू करते हैं। गायों के लिए कूलर की व्यवस्था, एसी से भी गर्मी दूर करने की कोशिश
बाड़मेर में भीषण गर्मी पशु-पक्षियों को भी बेहाल कर देती है। बाड़मेर में पथमेड़ा गोशाला की एक शाखा में एंट्री करते ही बीमार गायों का बाड़ा नजर आया। गर्मी से बचाने के लिए बाड़ों में चारों तरफ बड़े-बड़े कूलर लगाए हुए थे। संचालकों ने बताया कि गोशाला में जमीन की कमी है, ऐसे में आस-पास के कुछ खाली प्लॉट में भी बेसहारा और बीमार गौ-वंशों को गर्मी से बचाने की व्यवस्था की गई है। इस गर्मी में कूलर के बिना इन्हें बचा पाना मुश्किल होता है। अत्यधिक बीमार गौ-वंशों के लिए तो गोशाला के भीतर एक कमरे में डेढ़ टन का AC भी लगाया हुआ है। यह AC गर्मी में 24 घंटे चलता है। उस बाडे़ में सिर्फ ज्यादा घायल या जले हुए गौ-वंश को रखा जाता है। कमरे में परिस्थिति के हिसाब से गौ-वंश रखे जाते हैं। बर्न और गंभीर घायल गौ-वंश की संख्या के आधार पर यहां रखते हैं। वर्तमान में एक बछड़ा इस बाड़े में है, जिसका सिर जला हुआ है। उसके लिए भी चौबीस घंटे एसी चलता है। दिन में सन्नाटा, खाने में छाछ-राबड़ी, बार-बार पानी की जरूरत
बाड़मेर में लोग बताते हैं- तेज गर्मी की मार से बचने का यहां एक ही तरीका है, सूरज सिर पर आने से पहले काम निपटा लो। यानी दोपहर होने से पहले। यहां भीषण गर्मी का असर लोगों के खानपान पर दिखता है। लोगों का कहना है कि गर्मी तेज होते ही वे अपना खानपान बदलते हैं। बाड़मेर निवासी अक्षय प्रताप सिंह ने बताया कि रोजमर्रा के काम सुबह जल्दी कर लेते हैं। छाछ-राबड़ी पीकर शरीर को ठंडक पहुंचाते हैं, ताकि लू से बचा जा सके। शरीर को हाइड्रेट रखने के लिए बार-बार पानी पीते हैं। बाहर निकलने के दौरान पानी साथ रखते हैं। स्थानीय निवासी रामसिंह ने बताया कि दिनभर के काम सुबह 11 बजे हर हाल में निपटाने की कोशिश रहती है। दोपहर होते ही छाछ और नींबू पानी पीकर शरीर को पानी से युक्त रखते हैं। शहर के बाजार में भरी दोपहर कोई नजर नहीं आता। लोग सुबह से दोपहर तक तेज गर्मी से बचाव करते हैं, लेकिन शाम को धूलभरी आंधी का सामना करना पड़ता है। तेज आंधी में मिट्टी उड़कर लोगों के घरों, वाहन ड्राइवरों की आंखों में पहुंचती है। तेज गर्मी में स्किन बर्न, डायरिया के मामले आ रहे
तेज गर्मी का सबसे बुरा असर लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ता है। बाड़मेर के सरकारी अस्पताल के मेडिकल ऑफिसर डॉ. थानसिंह ने बताया कि पिछले दिनों से एकाएक गर्मी बढ़ी है। जिसके बाद ओपीडी में ज्यादातर पेट दर्द, डायरिया के केस आ रहे हैं। जिसमें लोगों को बर्निंग सेंसेशन (स्किन में जलन) होना और डिसुरिया (पेशाब में जलन) होना और कब्ज के केस ज्यादा आ रहे हैं। हाथ-पैर झुलसने पर पेशेंट को डे-केयर भर्ती भी किया जा रहा है। क्योंकि इस गर्मी में लोगों को बर्निंग सेंसेशन होता है। हाथ-पैरों में जलन जैसा अनुभव होता है। डॉ. थानसिंह बताते हैं- गर्मी से बचाव के लिए दोपहर में घरों से नहीं निकलना चाहिए। शरीर में पानी की कमी नहीं रहनी चाहिए। नहीं तो यूरिन इंफेक्शन का खतरा रहता है। गर्मी में आमतौर पर बर्निंग सेंसेशन और हीट स्ट्रोक का खतरा रहता है। इसलिए हाइड्रेट रहना जरूरी है। बच्चे और बुजुर्ग लोगों काे खास देखभाल की जरूरत होती है। खाने-पीने पर भी ध्यान देना चाहिए। दिनभर काम करने की बजाय, जब गर्मी तेज हो, उस दौरान थोड़ा ब्रेक लेना चाहिए। रोडवेज में सफर भी कम मुश्किल नहीं
इतनी तेज गर्मी में सफर करना आसान नहीं है। एक से दूसरे जिले में जाने के लिए लोग बस और ट्रेन का सहारा लेते हैं। ट्रेन का सफर तो फिर भी कट जाता है, लेकिन बसों का सफर यात्रियों के लिए मुश्किल भरा होता है। दोपहर में बसें तपती हैं और ऊपर से लू परेशान कर देती है। बाड़मेर स्टैंड पर पहुंचे तो जैसलमेर, जोधपुर जाने वाली बसों में यात्री बैठे नजर आए। यात्री रामेश्वर ने बताया कि बस का सफर गर्मी में आसान नहीं है। गर्मी में बस तपती है, बस में भीड़ भी बहुत होती है तो सफोकेशन बहुत होता है। इसके बाद दोपहर में बस चलती है तो बाहर की हवा का आसरा रहता है कि थोड़ी राहत मिलेगी, लेकिन गर्म हवा ही आती है।

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