आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज का टोंक शहर में ससंघ (36 पिच्छिका) मंगल प्रवेश 55 साल बाद होगा। इसको लेकर ख़ास करके जैन समाज में खुशी की लहर है। उनके संभावित चतुर्मास टोंक शहर में करने को लेकर तैयारियां की जा रही हैं। बुधवार को आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज ससंघ सिरोही से चलकर बंथली पहुंच गए हैं। आज यहां रात्रि विश्राम करेंगे। उधर, इनका सांसरिक जीवन भी अनूठा रहा। मध्य प्रदेश में जन्मे आचार्य जी 14 भाई-बहिनों में से अकेले जीवित बचे हैं। ये अपने माता-पिता की तेरहवीं संतान हैं। इनका बचपन का नाम यशवंत कुमार जैन था। टोंक जैन समाज के सुरेन्द्र जैन ने बताया कि टोंक शहर में चातुर्मास करने को लेकर लोगों ने करीब एक माह पहले आचार्य जी को भीलवाड़ा जिले के बिजोलिया के चवलेश्वर पारसनाथ मंदिर में श्री फल भेंट कर टोंक शहर में चतुर्मास करने का न्योता दिया था। फिर जहाजपुर क्षेत्र में जाकर निमंत्रण दिया था। उस समय आचार्य जी ने कहा था कि मैं चौदहश के दिन जहां होऊंगा, वहीं ससंघ चातुर्मास करूंगा। जैन समाज बंथली के अध्यक्ष अशोक कुमार जैन, टोंक शहर के लोकेश कुमार जैन ने बताया कि इस दौरान भगवान महावीर के जयकारों से क्षेत्र गुंजायमान हो गया। आचार्य जी की पृष्टभूमि इस प्रकार है परम पूज्य आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज की ग्रहस्थ अवस्था का नाम यशवंत कुमार था। इनका जन्म मध्य प्रदेश के खरगोन जिले के सनावद ग्राम में हुआ था। आचार्य वर्धमान सागर जी के 10 भाई, 4 बहिनों ने जन्म लिया। इनको छोड़कर काल के ग्रास बने। ये 13 वी संतान थे और आचार्य श्री जगत के तारणहार बन गए। इनके माता पिता के 14वीं संतान भी जीवित नहीं रही रही। 12 संतानों के निधन से बाद आचार्य जी का जन्म हुआ तो उनके माता पिता ने इनकी लंबी उम्र की कामना को लेकर श्री महावीर जी में उल्टा स्वास्तिक बनाकर उनके लंबे जीवन की कामना की थी। साथ ही ये संकल्प लिया था कि इनके जन्म के बाद इनके (वर्तमान में आचार्य) बाल उतारेंगे। संयोग की बात है कि इनकी मुनि दीक्षा श्री महावीर जी के हुई। जहां इनके केशलोचन हुए। माता मनोरमा देवी,पिता श्री कमल चंद पचोलिया के इन्होंने बीए तक लौकिक शिक्षा ग्रहण की। इनपुट: विनोद शर्मा, दूनी

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