राजधानी की पौराणिक ढूंढ नदी अपना वजूद खाेती जा रही है। दिल्ली राेड पर चावड़ का मांड से नायला, कानाेता, आगरा राेड, सांभरिया, बस्सी से बहकर माेरल नदी में मिलने वाली ढूंढ नदी मानसून के दौरान पहले 600 से 800 मीटर चौड़ाई में बहती थी। इसे देखते हुए प्रदेश सरकार ने 25 साल पहले पेयजल सप्लाई और सिंचाई के लिए नदी के बहाव क्षेत्र में कानाेता पर डेम बनवाया था। इसके बाद यहां अवैध काॅलाेनियाें, फैक्ट्रियाें और रिसाेर्ट की बाढ़-सी आ गई। ऐसे में नदी का कैचमेंट सिकुड़कर 300 मीटर ही रह गया, जबकि जेडीए मास्टर प्लान में नदी का बहाव क्षेत्र इकाॅलाेजिकल जाेन में आता है। बांध बनने से कानोता के आगे नदी में पानी कम हाे जाता है। ऐसे में अवैध काॅलाेनी बसाने वाली गृह निर्माण साेसायटियां कैचमेंट क्षेत्र की खातेदारी जमीनाें पर काॅलाेनियां काट रही हैं। मुख्य आगरा राेड से दाेनाें तरफ पांच साल में हजाराें बीघा कैचमेंट एरिया की जमीन पर 100-150 अवैध काॅलाेनियां बस चुकी हैं। सैकड़ों फैक्ट्रियों का निर्माण हो चुका है। नए-नए रिसोर्ट सामने आ रहा है। कैचमेंट एरिये में रिसोर्ट बनाने वाले इतने बेखौफ हैं कि अब बांध के डूब क्षेत्र में भी मिट्टी का भराव कर कैचमेंट एरिया काे खा रहे हैं। ऐसी ही एक शिकायत मिलने पर सिंचाई विभाग के अधिकारी शुक्रवार को विला पलाडिया रिसाेर्ट संचालक देवेन्द्र सिंह काे नाेटिस देने पहुंचे। वहां सिंचाई विभाग की टीम काे दाे घंटे तक अंदर घुसने नहीं दिया। जेईएएन राजू बैरवा ने बताया कि यह राजस्थान इरिगेशन एंड ड्रेनेज एक्ट 1954 की अवहेलना है। रिसाेर्ट में एंट्री नहीं देने के बाद टीम ने नाेटिस चस्पा कर दिया है और अब आगे की कार्रवाई की जाएगी।