57 साल पहले बिजनेस और पारिवारिक विवाद के चलते मुझ पर तेजाब फेंका। रात के ढाई बज रहे थे। मैं सोई हुई थी। विरोधी पार्टी ने नौकर को पैसे देकर मुझ पर तेजाब से अटैक करवाया था। असहनीय जलन से मैं चीखने लगी। हॉस्पिटल ले जाते हुए मैं बेहोश हो गई। 25 दिन सरकारी हॉस्पिटल में एडमिट रही। होश आने पर चीखना शुरू कर देती थी। हॉस्पिटल में मेरी मरणासन्न स्थिति हो गई। परिवार वाले मुझे घर लेकर आ गए। घर के आंगन में लिटाकर मेरे मरने का इंतजार करने लगे। मैं बेहोश पड़ी रहती थी। रात में बाबा प्राइवेट हॉस्पिटल के डॉक्टर को घर बुलाकर लाए। डॉक्टर ने नींद की दवा देकर कहा, सुबह जाग गई तो बच जाएगी। सुबह होश आते ही चीखना शुरू कर दिया। मुझे उस प्राइवेट हॉस्पिटल में एडमिट करवा दिया। सात से आठ घंटे मेरे चेहरे का लंबा ऑपरेशन हुआ। जली हुई काली चमड़ी हटाई गई। लंबे समय तक हॉस्पिटल में रही। बनारस में नहीं, लखनऊ में प्लास्टिक सर्जरी होती थी। पिताजी के पास पैसे नहीं थे। वे घर ले आए। डॉक्टर मामाजी ने पटना बुलाया। छह साल तक हॉस्पिटल में रही। वहां मेरी 36 सर्जरी हुईं। पूरे शरीर पर घाव रहते थे। गर्दन सिकुड़ गई। होंठ लटक गए। चेहरा विकृत हो चुका था। ऑटोबायोग्राफी “सीरत’ लिखी पीचीएडी खत्म करने के बाद बीएचयू में लेक्चरर के पद पर नियुक्त हुई। फिर प्रोफेसर बनी। स्टेज प्रोग्राम शुरू किए। बनारस की लता अवॉर्ड से नवाजा गया। कई सम्मान मिले। मेरे संघर्ष में मुझ से और परिवार से बात नहीं करते थे। मैंने उनसे बात नहीं करने का फैसला लिया। आज तक उनसे बात नहीं है। ऑटोबायोग्राफी “सीरत’ लिखी। एक डॉक्यूमेंट्री भी बनी। अभी मराठी भाषा में मंगला फीचर फिल्म दो घंटे की बन रही है। इसे फिर कई भाषाओं में रिलीज किया जाएगा। तीन साल अंधेरे कमरे में बैठी रही बनारस लौटने और घर से बाहर निकलने पर लोग ताने मारते थे। तीन साल अंधेरे कमरे में अकेले बैठी रहती थी। कई बार आत्महत्या का विचार आया। पापा का चेहरा सामने आ जाता था, इसलिए नहीं कर पाई। हादसा हुआ जब सातवीं में पढ़ती थी। प्राइवेट फॉर्म भरकर पढ़ना शुरू किया। बीएचयू यूनिवर्सिटी में एडमिशन लिया। यहां से संगीत में पीएचडी की। यह भी लंबा संघर्ष था, यूनिवर्सिटी पैदल जाना पड़ता था। ठंड में गर्म कपड़े नहीं होते थे। स्वाभिमान के लिए स्वयंसिद्धा बनने का फैसला लिया }शादी का एक रिश्ता आया। मैंने मना कर दिया। मेरा मानना था, जब अच्छी और सुंदर लड़कियों को छोड़ दिया जाता है तो मुझे यह समाज कैसे स्वीकार करेगा। परित्यक्ता कहलाने से अच्छा है, अकेला रहना। मैसेज : मैंने संघर्ष के बाद भी हिम्मत नहीं छाड़ी, लोग फेल होने पर सुसाइड क्यों करते हैं }यही संदेश देना है कि हिम्मत नहीं हारें। नकारात्मकता से दूर रहें। मैं इतने संघर्ष के बाद भी जिंदा हूं। मैंने अपनी यात्रा कभी नहीं रोकी, तो आप लोग फेल होने के बाद सुसाइड क्यों करते हैं। वही करें, जो पसंद हो।