चांदीपुरा वायरस की आशंकाओं के बीच उदयपुर में बच्चों में कॉक्सेकी वायरस का खतरा बढ़ गया है। एमबी अस्पताल की बाल चिकित्सा इकाई के आउटडोर में रोज 10 फीसदी बच्चे ऐसे आ रहे हैं, जो कॉक्सेकी से पीड़ित हैं। ऐसे ही एंट्रो वायरस (डायरिया) जैसे लक्षणों से पीड़ित दस्त रोगियों की संख्या का आंकड़ा भी 15% पार है। आउटडोर में रोज 657 बीमार बच्चे आ रहे हैं। इनमें से 50 कॉक्सेकी और करीब 75 आशंकित एंट्रो वायरस के शिकार हैं। पहले ओपीडी में रोज 400 बच्चे आ रहे थे, जिनमें कॉक्सेकी और आशंकित एंट्रो वायरस का एक भी मरीज नहीं था। कॉक्सेकी वायरस अपेक्षाकृत कम घातक है, लेकिन, डायरिया के बढ़ते रोगी चिंताजनक हैं। बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. लाखन पोसवाल बताते हैं कि बच्चों की बढ़ती संख्या चिंताजनक है। कॉक्सेकी वायरस ह्यूमन बॉडी का हिस्सा है, जो बरसात में अनुकूल माहौल में लक्षण दिखाने लगता है। हाथ-पैर और मुंह में छाले होने पर बच्चों को स्कूल जाने से रोकना चाहिए। परिवार की कोशिश रहे कि ऐसा बच्चे दूसरोंे के संपर्क में नहीं आएं। ऐसे ही डायरिया से पीड़ित बच्चों में नियमित हाथ धोने की आदत डालनी चाहिए। संक्रमण से फैलती है बीमारी, 7 दिन तक असर एचएफएमडी आमतौर पर कॉक्सेकी वायरस के कारण होता है। एचएफएमडी फैलने की खास वजह छाले के अंदर से तरल पदार्थ का बाहर आना और दूसरे बच्चों का उनसे सपंर्क में आना है। इसके अलावा छींकने और खांसने से फैलने वाली बूंदों से भी वायरस दूसरे बच्चों में पहुंचता है। रोगी के स्वस्थ होने के बाद भी कई हफ्तों तक मल त्याग (मूत्र) में भी इसकी मौजूदगी रह सकती है। एंटी बायोटिक्स दवाइयों का भी इन पर असर नहीं होता। बेहतर यही है कि ऐसे बच्चों की देखरेख घर पर ही करें। सात दिन तक इस बीमारी से बच्चा परेशान रहता है। इसके बाद इसका असर कम होने लगता है।