cover 1741795244

वर्ल्ड हेरिटेज सिटी गुलाबी नगरी में लोगों के दिन की शुरुआत भले ही प्याज कचौरी-समोसा से होती हो, लेकिन जब तक चाय की चुस्की के साथ कड़कदार मोटे सेव न मिल जाएं, स्वाद अधूरा रहता है। होली जैसे त्योहार का मौका हो तो डिमांड कई गुना बढ़ जाती है। ये हैं जयपुर के 150 साल पुरानी ‘काला नमकीन’ की मोटी सेव। जिसके तीखे और कुरकुरे स्वाद के दीवाने विदेशों में भी हैं। ट्रेडिशनल तरीके से तैयार होने वाले इन सेव का स्वाद पूर्व राजपरिवार की दावतों में भी चखा जाता है। इन कड़कदार सेव को ‘कड़के’ भी कहा जाता है। चलिए- राजस्थानी जायका की इस कड़ी में आपको रू-ब-रू करवाते हैं परकोटा के इस पुराने स्वाद से… जयपुर के जौहरी बाजार में मोती सिंह भोमियों का रास्ता पहुंचते ही मूंगफली के तेल में सिकते मोटे सेव का स्वाद खुद आपको वहां तक खींच ले जाएगा। यहां स्थित काला नमकीन भंडार करीब 150 साल से अपनी मोटी सेव और अन्य नमकीन के लिए मशहूर है। इस दुकान की शुरुआत 1875 में जगन्नाथ अकाला ने की थी। पहले यह दुकान झोपड़ी में चलती थी, फिर जैन मंदिर के नीचे 4 आने किराए पर दुकान ली गई। तब से लेकर अब तक यह स्वाद पीढ़ियों से बरकरार है। दुकान के ओनर विमल कुमार अकाला ने बताया- हमारे दादा जगन्नाथ अकाला ने इसे शुरू किया था। तब राजघरानों का राज हुआ करता था। स्वाद और शुद्धता के दम पर उन्होंने अपनी अलग ही पहचान कायम की थी। जिसे आज तीसरी पीढ़ी संभाल रही है। पहले हम बारीक भुजिया और अचार भी बनाते थे, लेकिन अब सिर्फ हमारी पुरानी पहचान मोटे नमकीन और मूंगथाल पर फोकस करते हैं। त्योहारों पर सुबह से देर रात तक भीड़ लगी रहती है। हम कम मात्रा में माल बनाते हैं ताकि कस्टमर को हमेशा ताजा नमकीन मिले। नमकीन कई बड़े क्लब, व्यापारियों और राजघराने तक पहुंचती है। कूटकर तैयार करते हैं मसाले मोटी सेव के लिए चने के बेसन का उपयोग किया जाता है। विमल कुमार अकाला ने बताया नमकीन की खासियत ये है कि आज भी हम मसाले हाथ से कूटकर मिलाते हैं। मिक्सी में पीसकर नहीं। कई बार लेबर नहीं मिलती तो खुद भी पत्थर पर मसाले कूटने पड़ते हैं, क्योंकि इसकी यूएसपी ही यही मसाले हैं, जो अलग ही स्वाद लाते हैं। उन्होंने आगे बताया, “पहले मैं खुद नमकीन बनाया करता था, क्योंकि यह हुनर पीढ़ियों से सीखा है। आज मेरा बेटा दुकान संभालता है। कई बार वह भी बनाता है। हमारे कारीगर भी 35 साल पुराने हैं। वो भी एक ही पीढ़ी के लोग हैं जो कई दशकों से हमारे साथ काम कर रहे हैं। हम कारीगर नहीं बदलते, क्योंकि लोगों को जुबां पर जो स्वाद चढ़ा है, वह बरकरार रखना जरूरी है। …तो इसलिए नाम पड़ा काला नमकीन भंडार दुकान का नाम काला नमकीन भंडार रखने के पीछे भी दिलचस्प वजह है। विमल कुमार ने बताया, ‘हमारा सरनेम अकाला है, लेकिन ग्राहक आकर बोलते थे ‘काला जी एक किलो सेव पैक कर दो’, यह नाम ग्राहकों की जुबां पर चढ़ गया था। इसलिए हमने इसे ‘काला नमकीन भंडार’ नाम दिया। एक महीने तक खराब नहीं होती नमकीन विमल कुमार ने बताया कि नमकीन बनाने में डीजल की भट्टी इस्तेमाल करते हैं, क्योंकि नमकीन की सिकाई में एक तय आंच की जरूरत होती है। वहीं, तेल भी खास तौर पर मूंगफली का उपयोग किया जाता है, जिससे नमकीन एक महीने तक खराब नहीं होती। त्योहारों के दौरान जब ऑर्डर ज्यादा होते हैं, तो कड़ाही से बीच-बीच में तेल निकालकर नया तेल डाला जाता है, ताकि स्वाद बिगड़े नहीं। विमल कुमार ने दावा किया, ‘शहर में कई जगह मोटी सेव बनाई जाती है, लेकिन ऐसा स्वाद नहीं मिल पाता। कई लोग कोशिश कर चुके हैं, लेकिन हमारा जैसा टेस्ट और क्रिस्पीनेस कोई नहीं बना पाता। हमारे ग्राहक सालों से जुड़े हुए हैं। कई बार उन्होंने दूसरी जगह ट्राई की, लेकिन आखिर में हमारी दुकान पर ही आते हैं।” त्योहारों पर बढ़ती डिमांड, नमकीन की कई वैरायटी यहां की नमकीन और मूंगथाल विदेशों तक जाती है। खासतौर पर दीवाली, होली और अन्य त्योहारों पर इकट्ठे ऑर्डर आते हैं। लोग इसे शादी, फंक्शन और ऑफिस गिफ्टिंग के लिए भी खरीदते हैं। होली पर तो नमकीन की खास डिमांड रहती है। मोटी सेव तो खास है ही, इसके अलावा भी कई वैरायटी के नमकीन तैयार होते हैं। बारीक सेव, मूंगथाल, मीठा पेठा, मसाला नुगरा, सादा नुक्ति, मठरी, नमक पारा और मटर सांख भी बनाई जाती है। आगे बढ़ने से पहले देते चलिए आसान से सवाल का जवाब… ग्राहकों का भरोसा और प्यार यहां मोटी सेव 260 रुपए किलो मिलती है। सालों पुरानी इस दुकान का स्वाद आज भी ग्राहकों को लुभा रहा है। यहां की ताजा और हाथ से तैयार की गई नमकीन का स्वाद हर त्योहार और खास मौके को और भी खास बना देता है। 66 साल के सुरेंद्र गोयल ने बताया, ‘मेरा बचपन इसी गली में बीता है। जब से होश संभाला है, तब से यहां की नमकीन खा रहे हैं। कुछ साल पहले हम सोडाला शिफ्ट हो गए, लेकिन नमकीन लेने आज भी इसी पुरानी दुकान पर आते हैं।’ जयपुर के सुरेश ने बताया, ‘त्योहारों पर हमारी नमकीन हमेशा यहीं से जाती है। पहले पिताजी लेने आते थे, अब मैं आता हूं। इसका टेस्ट सालों से वैसा ही है।’ ट्रांसपोर्ट व्यापारी अवजोत सिंह ने कहा, ‘बचपन से यही की नमकीन खा रहे हैं। त्योहार पर अपने स्टाफ के लिए भी यही नमकीन और मिठाई लेकर जाते हैं। दिल्ली-मुंबई के हमारे कर्मचारी इसे गिफ्ट में पाकर दोबारा यही से खरीदने आते हैं।’ पिछले राजस्थानी जायका में पूछे गए प्रश्न का सही उत्तर ये है जयपुर का भीगा पाव। तीखा और चटाखेदार जायका। सब्जियों और छोले से तैयार हुई चटपटी भाजी में डुबकी लगाते पाव का स्वाद ही निराला है। यह कोई नया जायका नहीं है, पाकिस्तान के मुल्तान की भीगी रोटी से प्रेरित है। (CLICK कर पूरा पढ़िए)

By

Leave a Reply