देशभर में 13 मार्च को होलिका दहन की परंपरा को निभाया गया,लेकिन राजस्थान में एक गांव ऐसा भी है, जहां ऐसा नहीं होगा। यहां होलिका दहन की जगह चांदी की होलिका और सोने से बनाए गए भक्त प्रहलाद का विधि विधान के साथ पूजन किया गया। दरअसल, भीलवाड़ा जिला मुख्यालय से करीब 5 किलोमीटर दूर शहर के नजदीक हरणी गांव में करीब 50 साल पहले होलिका दहन के दौरान एक हादसा हो गया। इसके बाद से ग्रामीणों ने यहां होली का दहन नहीं करने का निर्णय लिया और पर्यावरण के संरक्षण के लिए एक अनूठी मिसाल भी कायम की। गांव के बुजुर्ग बताते हैं- करीब 50 साल पहले होलिका दहन के दौरान एक चिंगारी से गांव में आग लग गई थी। इस दौरान कोई जनहानि तो नहीं हुई, लेकिन गांव वालों को काफी नुकसान उठाना पड़ा था। इसके बाद पूरे गांव के ग्रामीणों ने आपस में चर्चा की। जिसमें सर्व सहमति से होलिका दहन नहीं करने का निर्णय लिया। इसके बाद होलिका दहन करने की लंबे समय से चली आ रही परंपरा के स्थान पर चांदी की होलिका और सोने के प्रहलाद बनवा कर उनके पूजन करने का फैसला लिया गया। गांव वालों ने आपसी सहयोग से एक चांदी की होलिका और सोने का प्रहलाद बनवाया। होलिका दहन के दिन संध्या आरती के समय शुभ मुहूर्त में गांव में 500 साल पुराने श्री हरणी श्याम मंदिर से चांदी की होलिका और सोने के प्रहलाद की शोभायात्रा निकाली गई।इस दौरान बड़ी संख्या में ग्रामीण यहां इकठ्ठा हुए ढोल नगाड़े बजाए जाते हैं और पूरे विधि विधान से होलिका दहन स्थल तक लाने के बाद होलिका और प्रह्लाद की पूजा अर्चना की गई और उन्हें फिर से इस मंदिर में रख दिया गया। लोग आपस में एक दूसरे को होली के पर्व की बधाइयां देते हैं। अगले दिन रंगोत्सव पर्व को बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाएगा । मंदिर के पुजारी गोपाल शर्मा बताते हैं कि इस निर्णय के बाद से गांव में अब तक कभी होलिका का दहन नहीं किया गया। इसके कारण आग लगने की घटनाएं रुकी और पेड़ भी कटने से बच गए और लगातार पिछले 50 वर्षों से पर्यावरण बचाने का संदेश भी हमारे द्वारा दिया जा रहा है। हम तो यही चाहते हैं कि जिस प्रकार से हरणी गांव में होलिका दहन के स्थान पर चांदी की होलिका और सोने के प्रहलाद का पूजन किया जाता है उसी प्रकार से अन्य लोग भी होलिका दहन नहीं करें और पर्यावरण संरक्षण और संवर्धन में अपना सहयोग दें।