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प्रदेश में सबसे ज्यादा बांस उत्पादन करने वाले उदयपुर में अब इनसे हैंडीक्राफ्ट के आइटम और फर्नीचर तैयार किया जाएगा। इसके लिए वन विभाग ने प्राेजेक्ट तैयार किया है। इसमें एमपी-गुजरात की तर्ज पर फैक्ट्री लगाकर बांस से उपयोगी वस्तुएं बनाई जाएंगी। इससे स्थानीय लाेगाें काे राेजगार मिलेगा। इन दाेनाें राज्याें में सरकारी कार्यालयाें में उपयाेग के लिए वन विभाग से बांस का फर्नीचर खरीदा जाता है। उदयपुर जिले में बांस का उत्पादन ताे हाेता हैं, लेकिन यहां स्थानीय स्तर पर काेई फैक्ट्री नहीं हाेने से इनके प्राेडक्ट तैयार नहीं हाे पा रहे हैं। अभी यहां से बांस कटाई के बाद नीलामी के लिए सिराेही जिले की स्वरूपगंज मंडी भेज दिया जाता है। यहां से टाेंक और जयपुर के व्यापारी खरीदारी करते हैं। वे इनसे प्राेडक्ट तैयार करके बाजार में बेचते हैं। सबसे पहले स्थानीय कारीगराें काे ट्रेनिंग दी जाएगी, फिर शुरू होगा प्रोडक्शन विभाग को 3 करोड़ की कमाई…वन विभाग की ओर हर साल बांस कटाई की जाती है। इससे करीब 3 करोड़ रुपए का राजस्व मिलता है। बांस कटाई से स्थानीय कथाैड़ी समुदाय काे राेजगार मिलता है। यह जनजाति इस काम में माहिर है। बांस कटाई के दाैरान इनके जंगल में रहने के लिए कच्चे घर भी तैयार किए जाते हैं। वन विभाग के अधिकारियाें ने बताया कि इस प्राेजेक्ट में सबसे पहले स्थानीय कारीगराें काे ट्रेनिंग दी जाएगी। इसके लिए प्राेजेक्ट तैयार किया गया है। मुख्यालय से हरी झंडी मिलते ही जिले में फैक्ट्री लगाकर बांस के हैंडीक्राफ्ट और फर्नीचर तैयार किए जाएंगे। इससे स्थानीय लाेगाें काे राेजगार मिलने के साथ विभाग को भी राजस्व में बढ़ोतरी होगी। इसके साथ बांस के उत्पादन में भी वृद्धि हाेगी। उदयपुर में ही पाई जाती है डेंड्रोकैलामस स्ट्रिक्टस प्रजाति
बांस की डेंड्रोकैलामस स्ट्रिक्टस प्रजाति सिर्फ उदयपुर जिले में ही पाई जाती है। इसकी सबसे बड़ी खासियत इसकी लंबाई है। इसकी लंबाई 35 से 40 फीट तक हाेती है। इसका उपयोग बल्लियां बनाने, झोपड़ी, सीढ़ियां और फर्नीचर बनाने में किया जाता है। जिले के काेटड़ा, देवला और ओगणा ब्लाॅक में बांस बहुतायत में पाया जाता है। यहां बांस की 8 प्रकार की साइज का उत्पादन किया जाता है। जिसमें 7 फीट से लेकर 24 फीट तक के बांस शामिल हैं।

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