बांदरसिंदरी स्थित राजस्थान केंद्रीय विश्वविद्यालय (सीयूराज) में एक बार फिर छात्रों और प्रशासन के बीच टकराव की स्थिति उत्पन्न हो गई है। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) से जुड़े छात्रों को हॉस्टल से निष्कासित करने के विरोध में विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों ने वाइस चांसलर के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए गुरुवार को जोरदार प्रदर्शन किया। छात्रों ने विश्वविद्यालय में व्याप्त अनियमितताओं और तुगलकी फैसलों का हवाला देते हुए कुलपति पर तानाशाही रवैया अपनाने का आरोप लगाया। विवि प्रशासन की ओर से मामले में सफाई दी गई है। विश्वविद्यालय परिसर में बड़ी संख्या में छात्र एकत्र हुए और प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी करते हुए रैली निकाली। छात्रों ने निष्कासन आदेशों की प्रतियां जलाकर विरोध जताया और सेंट्रल यूनिवर्सिटी के मुख्य द्वार पर अनिश्चितकालीन धरना शुरू कर दिया। प्रदर्शन कर रहे छात्रों ने कहा कि ABVP से जुड़े कुछ छात्र कार्यकर्ताओं को हॉस्टल से निकाले जाने का निर्णय मनमाना और तानाशाहीपूर्ण है। छात्रों ने चेतावनी दी है कि जब तक निष्कासन आदेश वापस नहीं लिया जाता और विश्वविद्यालय प्रशासन छात्रों की बात नहीं सुनता, तब तक आंदोलन जारी रहेगा। छात्रों की मांगों में निष्कासित छात्रों को तुरंत हॉस्टल में पुनः प्रवेश देने, पारदर्शिता और छात्रहित में निर्णय लेने, छात्रों के साथ संवाद स्थापित करने, कुलपति को छात्रों से माफी मांगने जैसी मांगे शामिल है। इस मामले में राजस्थान केंद्रीय विश्वविद्यालय की जनसंपर्क अधिकारी अनुराधा मित्तल ने विवि प्रशासन का तर्क प्रस्तुत किया। उन्होंने बताया कि 7 एवं 9 जनवरी को कुछ छात्रों ने प्रशासनिक भवन के बाहर धरना प्रदर्शन किया, जो विवि की कार्यकारी परिषद के उस नियम का स्पष्ट उल्लंघन था, जिसमें किसी भी प्रकार के धरने या प्रदर्शन को विश्वविद्यालय के कार्यालयों या अधिकारियों के निवास से 300 मीटर की परिधि में पूरी तरह से प्रतिबंधित किया गया है। इन विद्यार्थियों ने कार्यकारी परिषद का नियम तोड़ा था। जिस क्रिकेट टीम के लिए इन्होंने कार्यकारी परिषद का नियम तोड़ा उस टीम से इनका कोई संबंध ही नहीं है। प्रैक्टिस ना होने के कारण टीम नहीं भेजना स्पोर्ट्स कमेटी का निर्णय था। इसी के चलते केंद्रीय निवास समिति एवं विश्वविद्यालय अनुशासन समिति द्वारा एक संयुक्त जांच की गई। इस दौरान कई बैठकें हुईं जिनमें विषय की गंभीरता से समीक्षा की गई। छात्रों को शांतिपूर्ण तरीके से अपनी बात रखने एवं समाधान की दिशा में बढ़ने के लिए 9 जनवरी को बैठक के लिए आमंत्रित किया गया, किंतु कोई भी संबंधित छात्र बैठक में नहीं आया। इसके बाद 16 जनवरी को दोबारा बैठक बुलाई गई, जिसमें छात्रों को एक और अवसर दिया गया, लेकिन उन्होंने अनुचित व्यवहार किया और बहुत ही अहंकारपूर्वक इसे नकार दिया। अंततः 6 मार्च को कुलपति प्रो. आनंद भालेराव ने एक अंतिम बैठक बुलाई, जिसमें छात्रों को पुनः अपनी गलती स्वीकार कर माफ़ी मांगने का अवसर दिया गया। इसमें एक छात्र सूरज चौहान ने अपनी गलती स्वीकार की और माफ़ी मांगी। उन्हें कड़ी चेतावनी दी गई और उनकी शैक्षणिक व छात्रावास संबंधी सुविधाएं जारी रखी गईं। कार्यवाही को तीन महीने तक टालने, पूरा मौका देने के बाद दुर्भाग्यवश और अत्यंत अनिच्छा से प्रॉक्टर की रिपोर्ट पर हस्ताक्षर करने के लिए कुलपति को बाध्य होना पड़ा। विश्वविद्यालय की अनुशासन समितियों की अनुशंसा के आधार पर चार छात्रों रामू राम जानी, मयंक खिड़िया, शिशुपाल सिंह एवं गणेश चौधरी को उनकी शिक्षा की पूर्णता तक छात्रावास से निष्कासित किया गया। एक छात्र अमन महला को नियमों का गंभीर उल्लंघन करने के लिए शैक्षणिक एवं छात्रावास दोनों से निष्कासित किया गया है।