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राजस्थान में परिवार नियोजन को लेकर व्यवहारिक बदलाव अब जमीन पर दिखने लगे हैं। विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर पिंकसिटी प्रेस क्लब में आयोजित मीडिया वर्कशॉप में ‘विकल्प परियोजना’ ने यह जानकारी साझा की कि राज्य की कुल प्रजनन दर (TFR) अब घटकर 2.0 पर आ गई है, जो प्रतिस्थापन स्तर की दिशा में एक बड़ी उपलब्धि है। साथ ही, कोई भी आधुनिक गर्भनिरोधक साधनों का उपयोग (MCPR) बढ़कर 62.1% तक पहुंच गया है, जो राज्य में बढ़ती जागरूकता और सकारात्मक सोच को दर्शाता है। विकल्प परियोजना के तहत आयोजित इस वर्कशॉप का उद्देश्य मीडिया को ग्रामीण भारत, विशेषकर राजस्थान में बदलती परिवार नियोजन प्रवृत्तियों और सरकार के प्रयासों से अवगत कराना था, ताकि यह विषय अधिक संवेदनशीलता और सटीकता के साथ जनमानस तक पहुंच सके। राज्य परिवार कल्याण विभाग के परियोजना निदेशक सुरेंद्र सिंह शेखावत ने बताया कि अब महिलाएं गर्भनिरोधक के अस्थायी और रिवर्सिबल साधनों को अपनाने में रुचि दिखा रही हैं। पैरिटी 0-1 (जिनके 0 या 1 बच्चा है) महिलाओं में कोई भी आधुनिक गर्भनिरोधक साधन अपनाने की दर 18.6% (NFHS-4) से बढ़कर 31.5% (NFHS-5) हो गई है। डॉ. सुमन मित्तल ने बताया कि यदि नवविवाहित दंपति पहले बच्चे में कम से कम दो साल का अंतर और दो बच्चों के बीच तीन साल का अंतर रखते हैं, तो इससे मातृ एवं शिशु मृत्यु दर में गिरावट आती है और संपूर्ण परिवार स्वस्थ रहता है।
विकल्प परियोजना द्वारा एक नई पहल के रूप में ‘सखी हेल्पलाइन’ (टोल फ्री नं – 1800 202 5862) शुरू की गई है, जो प्रतिदिन सुबह 8 बजे से रात 8 बजे तक महिलाओं और दंपतियों को नि:शुल्क और गोपनीय परामर्श सेवा प्रदान करती है। इस सेवा में प्रशिक्षित महिला सलाहकार सरल भाषा में मार्गदर्शन देती हैं। परियोजना निदेशक अरुण नायर ने कहा कि पहले बच्चे के जन्म में देरी और बच्चों के बीच अंतराल न केवल महिला के शारीरिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाते हैं, बल्कि मानसिक, भावनात्मक और आर्थिक रूप से पूरे परिवार को सशक्त बनाते हैं।

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