जालोर जिले में सरनाऊ पंचायत समिति के लाछीवाड़ा गोलिया गांव के किसान कुंपाराम चौधरी ने क्षेत्र में पहली बार सहजन की खेती की पहल की है। इसमें दिक्कत आई तो अपने खेती के अनुभव के दम पर उन्होंने फसल चक्र में ही बदलाव कर दिया। कुंपाराम बताते हैं- मैं प्राय: जीरा, अरंडी, सरसों, बाजरा, ज्वार आदि की खेती करता रहा हूं। लेकिन वर्ष 2017 में केशवना स्थित कृषि विकास केंद्र गया तो वहां प्रयोग के लिए लगे सहजन के पौधों को देखा। वे फलियों से लदे हुए थे। इस दौरान पता चला कि बाजार में सहजन की फलियां 25 रुपए किलो बिकती हैं, तो इसमें मुनाफा नजर आया। भावनगर में इसकी पैदावार ज्यादा होती है तो वहां जाकर इसकी खेती के तरीके समझे और फिर वहां से बीज लाया। हमारे क्षेत्र में सहजन की खेती नहीं होती लेकिन 2 साल पहले मैंने इसकी पहल की। लेकिन मावठ से काफी परेशानी हुई। फलियां व फूल काले पड़कर गिरने लगे। पहले साल काफी नुकसान हुआ। पहले अप्रैल-मई-जून में हार्वेस्टिंग करता था तो सितंबर में फलियां लगनी शुरू हुई। खेती का जो व्यक्तिगत अनुभव था, उससे इसका समाधान निकाला। इसका समय बदला और फरवरी-मार्च में हार्वेस्टिंग करने लगा। इससे जून में फली लगनी शुरू हो जाती है और 4-5 माह में उपज लेते हैं। अच्छे उत्पादन के लिए गोबर खाद का उपयोग किया। हर पांचवें दिन ड्रिप सिस्टम से पानी दिया। पौधे ज्यादा लंबाई न लें, इसके लिए नियमित कटिंग व निराई-गुड़ाई की। मुनाफा हुआ तो पिछले साल आधे हेक्टर में बुवाई की। लागत 3.5 लाख रुपए आई, फलियां 12 लाख रुपए की बिकीं। इस साल 1 हेक्टर में इसकी बुवाई की और करीब 40 टन पैदावार हुई। करीब 25 लाख रुपए की फलियां बेचीं जबकि इस साल कुल लागत 5 लाख रुपए ही आई। कुंपाराम ने बताया- मैंने अपने खेत में सहजन की पीकेएम-1 वेरायटी के पौधे लगा रखे हैं। इसकी एक फली का वजन 70-80 ग्राम, लंबाई एक-डेढ़ फीट है। एक पौधा एक माह में 3 बार फली देता है। मुनाफा देखते हुए पड़ोस के 2-3 किसान भी सहजन उगा रहे हैं। इसके अलावा मैंने मेड़ पर थार शोभा खेजड़ी के 80 पौधे लगाए हैं। इन्हें 15-15 फीट की दूरी पर रोपा। ये पौधे अब सांगरी (फलियां) देने लगे हैं। इस साल 100 पौधे और लाऊंगा। गीली सांगरी बाजार में 200 रुपए और सूखी सांगरी 1000 से 1200 रुपए किलो बिकती है। सूखी सांगरी 2 से 4 साल तक काम में ली जा सकती है।