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आज यानी 16 जून को मई महीने के थोक महंगाई के आंकड़े जारी होंगे। एक्सपर्ट्स के अनुसार इसमें गिरावट देखने को मिल सकती है। रोजाना की जरूरत के सामान और खाने-पीने की चीजों की कीमतों के घटने से महंगाई में कमी आई है। इससे पहले अप्रैल में थोक महंगाई 2.05% से घटकर 0.85 % पर आ गई थी। ये महंगाई का 13 महीनों का निचला स्तर था। वहीं मार्च 2024 में महंगाई 0.53% पर थी। वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय ने ये आंकड़े जारी करेगा। रिटेल महंगाई 6 साल के निचले स्तर पर आई
इससे पहले 12 जून को जारी आंकड़ों के अनुसार भारत की रिटेल महंगाई मई में 2.82% पर आ गई है। ये 6 साल का निचला स्तर है। इससे पहले मार्च 2019 में ये 2.86% रही थी। खाने-पीने के सामान की कीमतों में लगातार नरमी के कारण रिटेल महंगाई घटी है। इससे पहले अप्रैल में रिटेल महंगाई घटकर 3.16% पर आई गई थी। वहीं मार्च महीने में रिटेल महंगाई 3.34% रही थी। ये महंगाई का 67 महीने का निचला स्तर था। रिटेल महंगाई फरवरी से RBI के लक्ष्य 4% से नीचे है। होलसेल प्राइस इंडेक्स (WPI) का आम आदमी पर असर
थोक महंगाई के लंबे समय तक बढ़े रहने से ज्यादातर प्रोडक्टिव सेक्टर पर इसका बुरा असर पड़ता है। अगर थोक मूल्य बहुत ज्यादा समय तक ऊंचे स्तर पर रहता है तो प्रोड्यूसर इसका बोझ कंज्यूमर्स पर डाल देते हैं। सरकार केवल टैक्स के जरिए WPI को कंट्रोल कर सकती है। जैसे कच्चे तेल में तेज बढ़ोतरी की स्थिति में सरकार ने ईंधन पर एक्साइज ड्यूटी कटौती की थी। हालांकि सरकार टैक्स कटौती एक सीमा में ही कम कर सकती है। WPI में ज्यादा वेटेज मेटल, केमिकल, प्लास्टिक, रबर जैसे फैक्ट्री से जुड़े सामानों का होता है। होलसेल महंगाई के तीन हिस्से
प्राइमरी आर्टिकल, जिसका वेटेज 22.62% है। फ्यूल एंड पावर का वेटेज 13.15% और मैन्युफैक्चर्ड प्रोडक्ट का वेटेज सबसे ज्यादा 64.23% है। प्राइमरी आर्टिकल के भी चार हिस्से हैं। महंगाई कैसे मापी जाती है?
भारत में दो तरह की महंगाई होती है। एक रिटेल यानी खुदरा और दूसरी थोक महंगाई होती है। रिटेल महंगाई दर आम ग्राहकों की तरफ से दी जाने वाली कीमतों पर आधारित होती है। इसको कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स (CPI) भी कहते हैं। वहीं, होलसेल प्राइस इंडेक्स (WPI) का अर्थ उन कीमतों से होता है, जो थोक बाजार में एक कारोबारी दूसरे कारोबारी से वसूलता है। महंगाई मापने के लिए अलग-अलग आइटम्स को शामिल किया जाता है। जैसे थोक महंगाई में मैन्युफैक्चर्ड प्रोडक्ट्स की हिस्सेदारी 63.75%, प्राइमरी आर्टिकल जैसे फूड 22.62% और फ्यूल एंड पावर 13.15% होती है। वहीं, रिटेल महंगाई में फूड और प्रोडक्ट की भागीदारी 45.86%, हाउसिंग की 10.07% और फ्यूल सहित अन्य आइटम्स की भी भागीदारी होती है।

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