महज 20 हजार रुपए में माता-पिता ने अपने 12 साल के बेटे को 10 महीने के लिए बेच दिया। मालिक (नियोक्ता) ने उसे बूंदी लाकर पीओपी की मूर्तियां बनाने के काम में लगा दिया। बच्चा सुबह 9 से शाम 6 बजे तक काम करता था। परेशान होकर वह गुरुवार को बूंदी रेलवे स्टेशन पहुंचा। वहां से चाइल्ड लाइन 1098 की टीम ने उसे मुक्त कराया। 20 हजार में बेचा चाइल्ड लाइन के जिला समन्वयक रामनारायण गुर्जर को जयपुर कंट्रोल रूम से सूचना मिली थी कि एक लावारिस बच्चा स्टेशन पर बैठा है। वे काउंसलर मंजीत के साथ मौके पर पहुंचे। बच्चे को संरक्षण में लिया गया। बाल कल्याण समिति अध्यक्ष सीमा पोद्दार ने बताया कि पूछताछ में बच्चा राजसमंद जिले का निकला। उसने बताया कि माता-पिता ने उदयपुर जिले में भैरू जी महाराज के एक कार्यक्रम के दौरान 20 हजार रुपए लेकर उसे एक व्यक्ति को सौंप दिया था। वह व्यक्ति उसे बूंदी ले आया। यहां वह अपने परिवार के साथ टेंट में रहता था। बच्चा वहां मूर्तियां बनाता था। वह काम नहीं करना चाहता था, लेकिन घर भी नहीं जा सकता था। गुरुवार को वह स्टेशन पहुंचा। एक अनजान व्यक्ति के मोबाइल से उसने मां को फोन किया। घर आने की इच्छा जताई। मां ने किराए के पैसे का इंतजाम करने को कहा। 30 हजार की आर्थिक सहायता चाइल्डलाइन टीम ने बच्चे को बाल कल्याण समिति के समक्ष पेश किया। समिति के निर्देश पर मानव तस्करी विरोधी यूनिट और श्रम विभाग को सूचना दी गई। सदर थाने में नियोक्ता के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करवाई गई। सूचना मिलते ही एसडीएम एचडी सिंह राजकीय किशोर गृह पहुंचे। बच्चे से बात की। बयान दर्ज किए। मामले की गंभीरता को देखते हुए तुरंत बंधुआ मुक्ति प्रमाण पत्र जारी करने की स्वीकृति दी। प्रमाण पत्र के आधार पर श्रम विभाग ने 30 हजार रुपए की आर्थिक सहायता स्वीकृत की। बच्चे को फिलहाल राजकीय किशोर गृह में रखा गया है। बाल कल्याण समिति अध्यक्ष ने बताया कि जिले में बाल श्रम के खिलाफ अभियान जारी है। जून में 19 बाल श्रमिक मुक्त कराए गए। 5 मामलों में प्राथमिकी दर्ज हुई। जुलाई में अब तक 3 बाल श्रमिक मुक्त कराए गए। 4 जुलाई की रात 11 बजे नैनवां रोड स्थित एक होटल से 2 बच्चों को छुड़ाया गया। जिले में केटरिंग और बैंड-बाजा जैसे कामों में 12 से 16 साल के बच्चों से काम करवाने की सूचनाएं मिल रही हैं। इन पर लगातार कार्रवाई हो रही है।

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