आषाढ़ मास की पूर्णिमा को हर साल की तरह इस बार भी गुरुवार को गुरु पूर्णिमा का पावन पर्व श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया गया। इस खास दिन पर सुबह से ही शहर और ग्रामीण इलाकों के लोग अपने-अपने गुरुओं के दर्शन और आशीर्वाद लेने के लिए पहुंचे। मंदिरों और आश्रमों में भक्तों की भारी भीड़ देखी गई। भक्तों ने अपने गुरुओं की पूजा कर उनके चरणों में श्रद्धा अर्पित की और उनका आशीर्वाद लिया। धर्म गुरुओं के पास लगा श्रद्धालुओं का तांता इस पावन अवसर पर चित्तौड़गढ़ के हजारेश्वर महादेव मंदिर में महंत चंद्र भारती महाराज के दर्शन के लिए सुबह से ही भक्तों का तांता लगा रहा। वहीं कालिका माता मंदिर में महंत राम नारायण पूरी महाराज, नीलकंठ महादेव मंदिर में महंत जगन्नाथ पूरी महाराज, रामद्वारा में संत रमता राम महाराज और दिग्विजय राम महाराज, विनोद यति जी महाराज के पास भी भक्तों की भीड़ देखने को मिली। भक्तों ने अपने-अपने गुरुओं के पास जाकर उनकी पूजा की, उन्हें फूल-माला अर्पित किए और पैर छूकर आशीर्वाद लिया। इस दौरान धार्मिक भजन, कीर्तन और आरती का भी आयोजन हुआ। मंदिरों में खास सजावट की गई थी और चारों ओर भक्ति का वातावरण बना रहा। विधायक चंद्रभान सिंह आक्या ने भी लिया आशीर्वाद चित्तौड़गढ़ विधायक चंद्रभान सिंह आक्या भी इस अवसर पर विभिन्न धर्म गुरुओं के पास पहुंचे। उन्होंने श्री चंद्र भारती महाराज, राम नारायण पूरी महाराज, विनोद जी यति महाराज रमता राम महाराज और दिग्विजय राम महाराज से मुलाकात की और उनका आशीर्वाद लिया। उन्होंने कहा कि “मेरे जीवन में जो भी उपलब्धियां हैं, वो गुरुओं के आशीर्वाद से ही हैं। जीवन में गुरु का स्थान सबसे ऊंचा होता है।” विधायक के साथ उनकी टीम के अनिल ईनाणी, राजन माली, ओमप्रकाश शर्मा और रवि वीरानी भी मौजूद थे। सभी ने धर्मगुरुओं से मुलाकात की और गुरु पूर्णिमा की शुभकामनाएं दीं। गुरु का स्थान भगवान से भी ऊंचा, उनका जीवन में होना जरूरी हजारेश्वर महादेव मंदिर के पुजारी पंडित श्रवण कुमार ने बताया कि सनातन धर्म में गुरु का स्थान भगवान से भी ऊपर माना गया है। उन्होंने कहा “गुरु ही वह मार्गदर्शक है, जो अज्ञान के अंधकार में रोशनी लेकर आता है। गुरु जीवन को दिशा देता है, संस्कार देता है और सही राह दिखाता है। इसलिए गुरु का आशीर्वाद लेना बहुत ही जरूरी होता है।” उन्होंने बताया कि सुबह से ही भक्त मंदिर में पहुंच रहे हैं। सभी ने महंत श्री चंद्र भारती महाराज की पूजा की और उनका आशीर्वाद लिया। उन्होंने यह भी बताया कि यह दिन स्नान, दान और पूजन के लिए बेहद शुभ माना जाता है। महर्षि वेद व्यास को माना जाता है पहला गुरू गुरु पूर्णिमा का पर्व हर साल आषाढ़ मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार इस दिन महर्षि वेदव्यास जी का जन्म हुआ था। वेदव्यास को पहला गुरु माना जाता है क्योंकि उन्होंने न केवल महाभारत की रचना की, बल्कि हिंदू धर्म के चारों वेदों ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद का भी संकलन और वर्गीकरण किया। उनके इस अद्भुत योगदान के कारण उन्हें ‘आदिगुरु’ यानी प्रथम गुरु माना गया है। इसी वजह से इस दिन को वेदव्यास जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। उनके सम्मान में इस दिन सभी गुरुजनों की पूजा की जाती है। शिष्य अपने गुरु को भेंट स्वरूप वस्त्र, फल, मिष्ठान्न आदि अर्पित करते हैं और गुरु के चरणों में बैठकर ज्ञान और आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। शिक्षकों और गुरुओं को किया गया सम्मानित कुछ स्कूलों और सामाजिक संगठनों ने भी इस दिन गुरु वंदना और सम्मान समारोह का आयोजन किया, जिसमें समाज के शिक्षकों, गुरुओं और आचार्यों को सम्मानित किया गया। बच्चों ने गुरुओं के चरण छूकर आशीर्वाद लिया और भजन, कविता और भाषणों के माध्यम से गुरु की महिमा का गुणगान किया।

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