केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कहा किसी भी ग्रंथ के विवादास्पद हिस्से को शामिल नहीं किया जाएगा। सरकार संविधान के प्रति सच्ची भावना को बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है।
केंद्रीय शिक्षा मंत्री ने आज सुबह बताया कि कल, हमें कुछ जानकारी मिली कि मनुस्मृति दिल्ली यूनिवर्सिटी के लॉ फैकल्टी के पाठ्यक्रम का हिस्सा होगी। मैंने जांच की और दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति से बात की। उन्होंने मुझे बताया कि कुछ लॉ फैकल्टी के मेंबर्स के सदस्यों ने LLB के पाठ्यक्रम के कुछ अध्याय में कुछ बदलावों का प्रस्ताव रखा था।
लेकिन एकेडिमिक काउंसिल की ऑथेंटिक बॉडी ने इसका समर्थन नहीं किया और वाइस चांसलर ने प्रस्ताव को खारिज कर दिया।
मायावती ने ‘मनुस्मृति’ के कोर्स का हिस्सा ना बनाने के निर्णय का स्वागत किया
गुरुवार 11 जुलाई को दिल्ली यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर प्रो. योगेश सिंह ने ‘मनुस्मृति’ या मनु के नियमों को LLB प्रोग्राम में शामिल करने के प्रस्ताव को खारिज कर दिया था। उन्होंने कहा था कि मनुस्मृति हिंदू धर्म की धर्मशास्त्र साहित्यिक परंपरा से संबंधित संस्कृत पाठ है। बहुजन समाजवादी पार्टी की सुप्रीमों मायावती ने डीयू के लॉ सिलेबस में ‘मनुस्मृति’ शामिल न करने के निर्णय का स्वागत किया है।

दिल्ली यूनिवर्सिटी के LLB छात्रों को मनुस्मृति (लॉज ऑफ मनु) पढ़ाने के प्रस्ताव पर कल चर्चा हुई थी। इसे एकेडमिक काउंसिल की बैठक में पेश किया गया था। शिक्षकों का एक वर्ग इसके खिलाफ था। कुछ फैकल्टी ने कहा कि ये महिलाओं और पिछड़े तबकों को और पीछे ले जाएगा।
लॉ फैकल्टी ने दिल्ली विश्वविद्यालय (DU) की फैसले लेने वाली सर्वोच्च संस्था से अपने फर्स्ट और थर्ड ईयर के स्टूडेंट्स के सिलेबस में बदलाव करने की इजाजत मांगी थी, ताकि उन्हें ‘मनुस्मृति’ पढ़ाई जा सके। दरअसल न्यायशास्त्र पेपर के सिलेबस में बदलाव LLB के पहले और छठे सेमेस्टर से संबंधित हैं।
मनुस्मृति के चैप्टर सिलेबस में शामिल किए जाने थे
संशोधनों के अनुसार, मनुस्मृति के दो चैप्टर- जी.एन. झा की लिखी ‘मनुस्मृति विद द मनुभाश्य ऑफ मेधातिथि’ और टी. कृषणस्वामी अय्यर द्वारा लिखी- ‘कमेंटरी ऑफ मनु स्मृति- स्मृतिचंद्रिका’ छात्रों के पढ़ने के लिए प्रस्तावित किए गए थें।

सोशल डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट ने DU के कुलपति को पत्र लिखा था
लेफ्ट समर्थित सोशल डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट (SDTF) ने इस कदम का विरोध किया है। SDTF ने 10 जुलाई को दिल्ली यूनिवर्सिटी के कुलपति योगेश सिंह को पत्र लिखकर कहा कि यह किताब महिलाओं और हाशिए पर रहने वाले समुदायों के अधिकारों के प्रति पिछड़े नजरिए को बढ़ावा देती है और प्रगतिशील शिक्षा प्रणाली के खिलाफ है।
SDTF के जनरल सेक्रेटरी एसएस बरवाल और चेयरपर्सन एस.के. सागर ने इस पत्र में कहा कि छात्रों को सजेस्टिड रीडिंग के तौर पर मनुस्मृति पढ़ने की सलाह देना बेहद आपत्तिजनक है, क्योंकि यह किताब भारत में महिलाओं और अधिकारविहीन समुदायों की प्रगति और शिक्षा के खिलाफ है।
इस पत्र में लिखा है कि मनुस्मृति के कई वर्गों में महिलाओं की शिक्षा और समान अधिकारों के विरोध में बातें लिखी हैं। मनुस्मृति के किसी भी खंड या भाग का परिचय हमारे संविधान की बुनियादी संरचना और सिद्धांतों के खिलाफ है।
SDTF ने इस प्रस्ताव को तुरंत वापस लेने और 12 जुलाई को होने वाली एकेडमिक काउंसिल की बैठक में स्वीकृत न करने की मांग की है। इस पत्र में कुलपति से अनुरोध किया गया है कि कि वे लॉ फैकल्टी और संबंधित स्टाफ सदस्यों को मौजूदा सिलेबस के आधार पर न्यायशास्त्र पेपर पढ़ाते रहने का आदेश जारी करें।

NEP 2020 में शामिल करने का सुझाव
लॉ फैकल्टी के डीन प्रोफेसर अंजू वली टिकु ने कहा, ‘मनुस्मृति को NEP 2020 में शामिल करने का प्रस्ताव रखा गया है। इसमें भारत की सोच को शामिल करने का विचार शामिल है। जिस यूनिट में इसे शामिल किया गया है, वो एक एनालिटिक यूनिट है ये एनालिटिक को मजबूत करता है। ये समझने के लिए एक बेहतर कदम के रूप में होगा।
जयराम रमेश बोले- यह RSS की दशकों पुरानी रणनीति को पूरा करने की कोशिश
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने इसे लेकर कहा कि RSS दशकों से संविधान और डॉ. अंबेडकर की विरासत पर हमला करता आया है। DU में मनुस्मृति पढ़ाना इन्हीं कोशिशों को पूरा करने के लिए नॉन बायोलॉजिकल प्रधानमंत्री की सलामी रणनीति का हिस्सा है।
क्या है मनुस्मृति ?
मनुस्मृति एक धार्मिक ग्रंथ है, जिसमें धर्म और राजनीति के बारे में बताया गया है। इसमें में 2694 श्लोक हैं। इसे 12 अध्याय में बांटा गया है। इन 12 अध्यायों में हिंदू संस्कार, श्राद्ध व्यवस्था, आश्रम की व्यवस्था, हिंदू विवाह और महिलाओं के लिए नियम बताए गए हैं। इसमें जाति व्यवस्था को भी बताया गया है।
मनुस्मृति का विरोध क्यों?
मनुस्मृति में कहा गया है कि ब्रह्माजी ने विश्व की रचना की थी। ब्रह्माजी के मुंह से ब्राह्मण शब्द निकला था। इसमें बताया गया था कि ब्राह्मण का मतलब किसी विषय पर अध्ययन करना या यज्ञ करना होता है। वहीं, क्षत्रिय वर्ण ब्रह्माजी की भुजाओं से निकला, जिसका होता है रक्षा करना।
मनुस्मृति में लिखा है कि ब्रह्माजी के पेट से वैश्य वर्ण निकला। मनुस्मृति में बताया गया कि वैश्य का काम समाज का पेट भरना होता है। जैसे सामाजिक कार्य और खेती, किसानी। शूद्र शब्द ब्रह्माजी के पैर से उत्पन्न हुए। बताया गया कि इनका काम स्वच्छता बनाए रखना है।
मनुस्मृति में महिलाओं के नियमों के बारे में भी बताया गया है। इसमें लिखा गया है कि महिलाओं को पिता, पति और पुत्र से अलग अकेले कभी नहीं रहना चाहिए। महिलाओं और पिछड़े वर्ग को लेकर लिखी बातों को लेकर मनुस्मृति का विरोध होता है।
अंबेडकर ने जलाई थी मनुस्मृति
अंबेडकर ने अपनी किताब ‘फिलॉसफी ऑफ हिंदूइज्म’ में लिखते हैं, “मनु ने चार वर्ण व्यवस्था की वकालत की थी। मनु ने इन चार वर्णों को अलग-अलग रखने के बारे में बताकर जाति व्यवस्था की नींव रखी। हालांकि, ये नहीं कहा जा सकता है कि मनु ने जाति व्यवस्था की रचना की है। लेकिन उन्होंने इस व्यवस्था के बीज जरूर बोए थे।”
डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर ने 25 जुलाई, 1927 को महाराष्ट्र के कोलाबा के महाद में सार्वजनिक रूप से मनुस्मृति को जलाई थी।
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NCERT की किताब में हुए बदलाव:’भारत चीन सैन्य संघर्ष’ को ‘चीन की घुसपैठ’ लिखा, ‘आजाद पाकिस्तान’ शब्द भी हटा

NCERT की पॉलिटिकल साइंस की किताब में ‘चीन के साथ भारत के संबंध और स्थिति’ से जुड़े चैप्टर में बदलाव किया गया है। 12वीं में कंटेंपरेरी वर्ल्ड पॉलिटिक्स के दूसरे चैप्टर में भारत-चीन टाइटल के कंटेंट में भी बदलाव कर दिया गया है।
पहले किताब के पेज नंबर 25 पर लिखा था कि भारत-चीन के बीच के ‘सैन्य संघर्ष’ ने उम्मीद को खत्म कर दिया है। अब इस वाक्य की जगह लिखा है – भारतीय सीमा पर ‘चीन की घुसपैठ’ ने उम्मीद को खत्म कर दिया है।
इस वाक्य से सैन्य संघर्ष शब्द को बदलकर अब घुसपैठ कर दिया गया है। इसके अलावा 2019 में संविधान से आर्टिकल 370 हटाने का जिक्र भी शामिल है।