Khatu Shyam Ji को भगवान श्री कृष्ण के कलयुगी अवतार के रूप में जाना जाता है, जिसका एक पौराणिक कथा से गहरा संबंध है। राजस्थान के सीकर जिले में स्थित उनका भव्य मंदिर हर वर्ष बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं से भरा होता है। लोग मानते हैं कि बाबा श्याम सभी की मुरादें पूरी करते हैं और विशेषकर उन्हें राजा बना सकते हैं।
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पौराणिक कथा के अनुसार, खाटू श्याम का अवतार उस समय हुआ था जब कलयुग में धरती पर अधर्म और अनैतिकता का विसर्जन हो रहा था। भगवान ने इस अवस्था में मानव स्वरूप में जन्म लेकर लोगों को धर्म और सत्य की ओर प्रवृत्ति करने के लिए प्रेरित किया।
खाटू श्याम के मंदिर में श्रद्धालुओं का आत्मविश्वास उच्च है, और वे मानते हैं कि उनकी पूजा से बाबा श्याम सभी कष्टों को दूर करते हैं और समृद्धि की दिशा में मार्गदर्शन करते हैं। इस मंदिर में हर वर्ष आयोजित होने वाले उत्सवों में भी श्रद्धालुओं की भारी संख्या होती है, जिससे सामाजिक सांस्कृतिक सांगठन बढ़ता है।
Today Shyam Baba Darshan
इस प्रमाण में, लोग विश्वास करते हैं कि बाबा श्याम सबकी मनोकामनाएं पूरी करते हैं और उन्हें राजा बनाने की क्षमता है। खाटू श्याम का मंदिर एक धार्मिक और सामाजिक हब के रूप में उभरा है, जो लोगों को एक साजग समृद्धि की दिशा में प्रेरित करता है।
कौन हैं बाबा Khatu Shyam Ji
बाबा खाटू श्याम का संबंध महाभारत काल से माना जाता है, जो पांडुपुत्र भीम के पौत्र थे। एक प्राचीन कथा के अनुसार, खाटू श्याम की अपार शक्ति और क्षमता ने श्रीकृष्ण को इतने प्रभावित किया कि उन्होंने इस अद्भुत आत्मा को कलियुग में अपने नाम से पूजनीय बनाने का वरदान दिया।
महाभारत के समय के युद्धों में भीम के पराक्रमी पौत्र के रूप में खाटू श्याम का जन्म हुआ था। इस पौराणिक कथा के अनुसार, उनका रूप महाभारत के युद्धकांड में दिखाई दिया गया था और उन्होंने धरती पर धर्म और न्याय की रक्षा करने का संकल्प किया।
श्रीकृष्ण ने इस अत्युत्तम आत्मा को देखकर उनके शौर्य और धर्मयुद्ध में प्रतिबद्धता को पहचाना और उन्हें कलियुग में अपने पूजनीय अवतार के रूप में स्थापित किया। खाटू श्याम का यह पौराणिक संबंध लोगों को इस महान आत्मा की अद्भुतता और धार्मिक महत्वपूर्णता के प्रति आदर्श बनाए रखने के लिए प्रेरित करता है।
लाक्षागृह की घटना में प्राण बचाकर वन-वन भटकते पांडवों की मुलाकात हिडिंबा नाम की राक्षसी से हुई। यह भीम को पति रूप में प्राप्त करना चाहती थी। माता कुंती की आज्ञा से भीम और हिडिंबा का विवाह हुआ, जिससे घटोत्कच का जन्म हुआ। घटोत्कच का पुत्र था बर्बरीक, जो अपने पिता से भी शक्तिशाली और मायाबी था।
बर्बरीक ने बर्बरीक देवी की उपासना की और उनसे तीन दिव्य बाण प्राप्त किए, जो अपने लक्ष्य को भेदकर वापस लौट आते थे। इन अद्वितीय बाणों के कारण बर्बरीक अजेय बन गया था और उसने युद्ध में अपनी असाधारण शक्तियों का प्रदर्शन किया।
इस रूप में, बर्बरीक की कथा हमें धार्मिक ग्रंथों में महत्वपूर्ण शिक्षाएं देती है, जो प्रेम, कठिनाइयों का सामना करना, और अपने लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए आत्मविश्वास रखने के महत्व को सार्थक बनाती हैं।
महाभारत के युद्ध के दौरान बर्बरीक युद्ध देखने के इरादे से कुरुक्षेत्र आ रहा था। श्रीकृष्ण जानते थे कि अगर बर्बरीक युद्ध में शामिल हुआ तो परिणाम पाण्डवों के विरुद्ध होगा। बर्बरीक को रोकने के लिए श्री कृष्ण गरीब ब्राह्मण बनकर बर्बरीक के सामने आए। अनजान बनते हुए श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से पूछा कि तुम कौन हो और कुरुक्षेत्र क्यों जा रहे हो। जवाब में बर्बरीक ने बताया कि वह एक दानी योद्धा है जो अपने एक बाण से ही महाभारत युद्ध का निर्णय कर सकता है। श्री कृष्ण ने उसकी परीक्षी लेनी चाही तो उसने एक बाण चलाया, जिससे पीपल के पेड़ के सारे पत्तों में छेद हो गया। एक पत्ता श्रीकृष्ण के पैर के नीचे था इसलिए बाण पैर के ऊपर ठहर गया।
श्रीकृष्ण बर्बरीक की क्षमता से हैरान थे और किसी भी तरह से उसे युद्ध में भाग लेने से रोकना चाहते थे। इसके लिए श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से कहा कि तुम तो बड़े पराक्रमी हो, मुझ गरीब को कुछ दान नहीं दोगे। बर्बरीक ने जब दान मांगने के लिए कहा, तो श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से उसका शीश मांग लिया। बर्बरीक समझ गया कि यह ब्राह्मण नहीं कोई और है और वास्तविक परिचय देने के लिए कहा। श्रीकृष्ण ने अपना वास्तविक परिचय दिया, तो बर्बरीक ने खुशी-खुशी शीश दान देना स्वीकार कर लिया।
रात भर भजन-पूजन कर फाल्गुन शुक्ल द्वादशी को स्नान पूजा करके, बर्बरीक ने अपने हाथ से अपना शीश श्रीकृष्ण को दान कर दिया। शीश दान से पहले बर्बरिक ने श्रीकृष्ण से युद्ध देखने की इच्छा जताई थी, इसलिए श्री कृष्ण ने बर्बरीक के कटे शीश को युद्ध अवलोकन के लिए, एक ऊंचे स्थान पर स्थापित कर दिया।
युद्ध में विजय श्री प्राप्त होने पर पांडव विजय का श्रेय लेने हेतु वाद-विवाद कर रहे थे। तब श्रीकृष्ण ने कहा कि इसका निर्णय बर्बरीक का शीश कर सकता है। बर्बरीक के शीश ने बताया कि युद्ध में श्री कृष्ण का सुदर्शन चक्र चल रहा था, जिससे कटे हुए वृक्ष की तरह योद्धा रणभूमि में गिर रहे थे। द्रौपदी महाकाली के रूप में रक्त पान कर रही थीं।
श्रीकृष्ण ने प्रसन्न होकर बर्बरीक के उस कटे सिर को वरदान दिया कि कलयुग में तुम मेरे श्याम नाम से पूजित होगे, और तुम्हारे स्मरण से ही भक्तों का कल्याण होगा और धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की प्राप्ति होगी।
स्वप्न दर्शन के बाद, बाबा श्याम ने खाटू धाम में स्थित श्याम कुण्ड से प्रकट होकर, श्रीकृष्ण विराट शालिग्राम रूप में सम्वत् 1777 से खाटू श्याम जी के मंदिर में स्थित होकर भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण कर रहे हैं।
हर साल लगता है Khatu Shyam Ji मेला
प्रत्येक वर्ष होली के दौरान Khatu Shyam Ji का मेला आयोजित होता है। इस मेले में देश-विदेश से भक्तजन बाबा खाटू श्याम जी के दर्शन के लिए आते हैं। इस मंदिर में भक्तों की गहरी आस्था है। बाबा श्याम, हारे का सहारा, लखदातार, खाटूश्याम जी, मोर्विनंदन, खाटू का नरेश और शीश का दानी—इन सभी नामों से खाटू श्याम को उनके भक्त पुकारते हैं। खाटूश्याम जी मेले का आकर्षण यहां होने वाली मानव सेवा भी है। बड़े से बड़े घराने के लोग आम आदमी की तरह यहां आकर श्रद्धालुओं की सेवा करते हैं। कहा जाता है ऐसा करने से पुण्य की प्राप्ति होती है।
Khatu Shyam Ji के चमत्कार
भक्तों की इस मंदिर में इतनी आस्था है कि वह अपने सुखों का श्रेय उन्हीं को देते हैं। भक्त बताते हैं कि बाबा खाटू श्याम सभी की मुरादें पूरी करते हैं। खाटूधाम में आस लगाने वालों की झोली बाबा खाली नहीं रखते हैं।
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