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राजस्थान सरकार की मुफ्त इलाज योजना (RGHS) में करोड़ों रुपए का घोटाला करने वाले सवाई मानसिंह (SMS) अस्पताल के डॉक्टर मनोज कुमार जैन को सस्पेंड कर दिया गया है। निलंबन अवधि में डॉक्टर जैन चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग मुख्यालय में अटैच रहेंगे। मामला सामने आने के बाद शासन उप सचिव सैयद सिराज अली जैदी ने डॉ. मनोज जैन के तत्काल निलंबन के आदेश जारी किए। कैसे हुआ फर्जीवाड़ा
RGHS योजना के तहत सरकारी कर्मचारियों और पेंशनर्स को फ्री इलाज और दवाइयां मिलती हैं। डॉक्टर जो दवा लिखता है, वह अधिकृत मेडिकल स्टोर से मुफ्त मिलती है। बाद में मेडिकल स्टोर बिल बनाकर वित्त विभाग से भुगतान लेता है। इस सिस्टम का गलत फायदा उठाते हुए डॉ. मनोज जैन ने अपने निजी क्लिनिक से 500 से ज्यादा ओपीडी पर्चियां फर्जी तरीके से तैयार की। इन पर्चियों पर बिना किसी जांच या बीमारी का उल्लेख किए महंगी दवाइयां लिखी गईं। जयपुर के अर्पिता मेडिकल स्टोर और लक्ष्मी मेडिकल स्टोर ने इन्हीं पर्चियों के आधार पर करोड़ों रुपए के बिल बनाकर वित्त विभाग से क्लेम कर दिए। वित्त विभाग ने AI की मदद से पकड़ी गड़बड़ी
14 श्रेणियों के सरकारी कर्मचारियों और पेंशनरों को मुफ्त इलाज के लिए राजस्थान सरकार स्वास्थ्य योजना (RGHS) का एक कार्ड जारी करती है। इस कार्ड के जरिए कोई भी बीमारी होने पर सरकारी कर्मचारी कैश-लेस इलाज करवा सकता है। डॉक्टर जो भी दवाई लिखकर देता है, वो उसे RGHS से अधिकृत मेडिकल स्टोर पर बिना कोई पैसा दिए मिल जाती है। मेडिकल स्टोर बाद में उस दवाई का बिल बनाकर भुगतान के लिए वित्त विभाग को भेजते हैं। पिछले जनवरी से मार्च तक अचानक करोड़ों रुपए के क्लेम बढ़े तो वित्त विभाग को शक हुआ। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) की मदद से ऑडिट करवाने पर पूरा फर्जीवाड़ा सामने आया। केस स्टडी : दो मेडिकल स्टोर ने भेजे करोड़ों के बिल, एक ही डॉक्टर की मिली पर्चियां
जयपुर की 2 फार्मेसी (दवा शॉप) से एक ही डॉक्टर की लिखी पर्ची के जरिए करोड़ों रुपए का बिल पास होने के लिए वित्त विभाग को भेजा गया। ऑडिट टीम ने उन पर्चियों की जांच की तो कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। दरअसल, बिना किसी मेडिकल हिस्ट्री, रोग का लक्षण या किसी प्रकार की जांच लिखे डॉक्टर की ओपीडी पर्चियों पर दवाइयां लिखी गई थी। उन दवाइयों के दो फार्मेसी अर्पिता मेडिकल स्टोर और लक्ष्मी मेडिकल स्टोर ने बिल काटे। फिर उन बिलों को क्लेम होने के लिए RGHS पोर्टल पर भेज दिया। पर्चियों पर की एडिटिंग
डॉ. मनोज कुमार जैन SMS अस्पताल में जनरल फिजीशियन थे। ओपीडी उसके निजी क्लिनिक ‘आरव डायबिटीज एंड मल्टी स्पेशियलिटी यूनिट’ की पर्ची पर काटी गई। लेकिन ओपीडी पर सील (स्टैंप) एसएमएस अस्पताल वाली इस्तेमाल की गई। नियमानुसार सरकारी डॉक्टर निजी क्लिनिक की पर्ची पर ओपीडी नहीं कर सकता। ऐसे में एडिटिंग का तरीका निकाला गया। ओपीडी पर्ची के सबसे ऊपर लिखे निजी क्लिनिक का नाम छुपाकर, उस पर डॉ. मनोज कुमार जैन की SMS वाली ओपीडी स्लिप का ऊपरी हिस्सा लगाकर फोटो खींची गई। फिर उस ओपीडी पर्ची को RGHS पोर्टल पर क्लेम करने के लिए भेजा। ऐसी करीब 500 ओपीडी पर्चियों में छेड़खानी सामने आई है। वित्त विभाग की पड़ताल में एक पर्ची ऐसी सामने आई, जिसमें एक RGHS कार्ड धारक मोहनलाल शर्मा की पत्नी का नाम सुशीला से सुशील शर्मा लिखकर दो बार ओपीडी पर्ची बनाई गई। तीसरी बार असली नाम सुशीला शर्मा से बिल काटा गया, ताकि फर्जीवाड़ा पकड़ में नहीं आए। वित्त विभाग की ऑडिट में सामने आ रही ऐसी गड़बड़ियां इस मामले में दोनों फार्मेसियों के RGHS लाइसेंस को रद्द कर दिए हैं। कैसे उठाया जाता है क्लेम?
क्लेम उठाने के लिए मेडिकल स्टोर RGHS की वेबसाइट पर लॉगिन करते हैं। इस दौरान फार्मेसी बिल, डॉक्टर का वैध प्रिस्क्रिप्शन (ओपीडी पर्ची) और मरीज का RGHS कार्ड स्कैन कर अपलोड करना जरूरी होता है। सभी दस्तावेज अपलोड करने के बाद ‘सब्मिट’ बटन पर क्लिक करना होता है, जिसके तुरंत बाद एक यूनिक टीआईडी (TID) नंबर जनरेट होता है। इस टीआईडी नंबर की सहायता से क्लेम की स्थिति बाद में ऑनलाइन ट्रैक की जा सकती है। यह ध्यान रखना जरूरी है कि बिल तभी क्लेम कर सकते हैं, जब दवाएं RGHS पैनल में शामिल फार्मेसी से खरीदी गई हों। डॉक्टर की पर्ची की वैधता सात दिन से अधिक न हो। साथ ही, एक बार में अधिकतम एक महीने की दवाओं का ही बिल उठाया जा सकता है। यदि दवा पर्ची किसी निजी डॉक्टर की है, तो उसे पोर्टल पर अपलोड करना अनिवार्य होता है, तभी क्लेम स्वीकृत होता है।

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