सबसे पहले तीन सवाल… क्या मरीजों को तय मात्रा में दूध मिल रहा है?
क्या मरीजों को तय मेन्यू के अनुसार नाश्ता मिल रहा है?
क्या मरीजों को लंच/डिनर में पौष्टिक भोजन मिल रहा है? इन सवालों का जवाब है- नहीं यह हाल है राजस्थान के सबसे बड़े सवाई मान सिंह (SMS) हॉस्पिटल का। यहां भर्ती मरीजों की थाली से कॉर्नफ्लेक्स, दलिया, उपमा, फ्रूट और पोहे गायब हो रहे हैं। मरीजों के हिस्से का दूध वार्ड बॉय पी रहे हैं। यहां भर्ती तमाम मरीजों को पूरी डाइट नहीं दी जा रही है, जबकि राज्य सरकार के खजाने से रोज डाइट के नाम पर रकम निकाली जा रही है। दैनिक भास्कर टीम ने 7 दिन तक SMS हॉस्पिटल के वार्डों में जाकर इसकी पड़ताल की तो कुछ ऐसी ही चौंकाने वाली सच्चाई सामने आई। पढ़िए यह रिपोर्ट… पड़ताल का पहला दिन किसी की थाली से फ्रूट तो किसी के नाश्ते से कॉर्नफ्लेक्स गायब, दूध भी कम 19 जून (गुरुवार) को हमने अपनी पड़ताल की शुरुआत की। सुबह करीब 8 बजे हमारी टीम SMS हॉस्पिटल की साउथ विंग में बने वार्डों में पहुंची। हॉस्पिटल में मरीजों का खाना सबसे ऊपरी मंजिल पर बनी मेस में तैयार होता है। यहां जाने की किसी को इजाजत नहीं है। हम जिस जगह पर थे, वहां एक ही गलियारे में आमने-सामने मिलाकर 4 वार्ड थे। हर वार्ड में औसत 25-30 मरीज भर्ती थे। वहां केवल एक मेस कर्मचारी ट्रॉली में नाश्ता लेकर आया। 1. ट्रॉली संचालक ने गलियारे में ही खड़े होकर बेहद धीमी आवाज में कहा- नाश्ता…नाश्ता और एक जगह ट्रॉली लेकर खड़ा हो गया। संचालक की यह आवाज कुछ 4-5 मरीजों के कान तक ही पहुंच पाई होगी। 2. 18 जून की डाइट प्लान के अनुसार, वहां भर्ती हर मरीज को 200 एमएल दूध के साथ कॉर्नफ्लेक्स देने थे। रिपोर्टर ने नोटिस किया कि चारों वार्डों से महज 15-16 लोग ही नाश्ता लेने पहुंचे। उन्हें उन्हीं के बर्तनों में बेहद कम दूध दिया गया। नाश्ता बांटने वाले ने किसी भी मरीज को कॉर्नफ्लेक्स नहीं दिए। न ही मरीजों को यह जानकारी दी गई कि आज नाश्ते में कॉर्नफ्लेक्स है। 3. लंच टाइम : करीब 11 बजे थे। एक ट्रॉलीमैन एकदम सही समय पर वहां लंच लेकर पहुंचा। लंच का मेन्यू था- रोटी, दाल, गाजर-आलू की सब्जी, फ्रूट और प्लेन राइस। ये सभी आइटम ट्रॉली में थे। फिर से धीमी आवाज लगाकर खानापूर्ति की गई। कुछ मरीज खाना लेने पहुंचे। कई मरीजों को डाइट के अनुसार कोई फ्रूट तक नहीं दिया गया। 4. बाहरी वार्ड के अंदर बेच रहे चाय : इवनिंग टी के समय तक भास्कर टीम वहीं मौजूद रही। कुछ बाहरी चायवाले अंदर चक्कर लगा कर चाय बेच रहे थे। वार्ड के बाहर तैनात गार्डों की ड्यूटी उन्हें रोकने की थी। मेस की चाय आने से पहले ज्यादातर मरीजों के साथ मौजूद तीमारदारों को अपने पैसों से चाय खरीदनी पड़ी। 5. न डायटीशियन, न नर्सिंगकर्मी मौजूद : पड़ताल में सामने आया कि मरीजों को खाना बांटते समय वहां न कोई डायटीशियन मौजूद था, न ही कोई नर्सिंगकर्मी। नियमानुसार डायटीशियन भर्ती मरीजों की डाइट तय करता है और नर्सिंगकर्मी यह सुनिश्चित करता है कि मरीज को वो डाइट पूरी मिली भी है या नहीं। तमाम मरीजों को इस सुविधा की जानकारी ही नहीं
पड़ताल में सबसे चौंकाने वाली बात यह थी कि कई मरीजों को यही मालूम नहीं है कि राज्य सरकार ने उनके लिए मुफ्त खाने की व्यवस्था भी कर रखी है। इसलिए बड़ी संख्या में मरीज बाहर से खाना लाने को मजबूर हैं। हमने वार्ड में भर्ती कुछ मरीजों से बात की…. (भास्कर टीम को देखते ही मेस के सुपरवाइजर से लेकर स्टाफ सतर्क हो गए। उन्होंने तुरंत सारी व्यवस्थाएं ठीक कर दीं। सवाल पूछने पर एक कर्मचारी ने बताया कि सभी मरीजों तक खाना पहुंचा रहे हैं। सप्लाई भी ठीक है। ऐसे में हमने कुछ दिन बाद फिर से पड़ताल का फैसला लिया) पड़ताल का दूसरा दिन : 6 दिन बाद भी ऑन कैमरा पड़ताल में वही हाल 19 जून को हमारी पड़ताल में कई चौंकाने वाली चीजों सामने आई थीं। एक बार फिर हमारी टीम 6 दिन बाद 25 जून (बुधवार) की सुबह SMS हॉस्पिटल पहुंची…. 1. 200 की जगह 70-80 एमएल दूध, आधे मरीज तरसे
सबसे पहले साउथ विंग के वार्डों का हाल देखा तो पाया कि डाइट की सप्लाई करने वाला स्टाफ ट्रॉली लेकर पहुंचा। यहां पर सिर्फ दूध सप्लाई किया जा रहा था। हर मरीज के लिए 200 एमएल दूध तय है। मरीजों को इससे कम दूध दिया जा रहा था। कुछ लोगों के बर्तनों में तो 70-80 एमएल दूध भी नहीं था। दूध भी कुछ ही मरीजों को दिया गया। 2. दूध बांटा, उपमा नहीं : दूध के साथ नाश्ता देने का भी प्रावधान है। बुधवार को दूध के साथ 100 ग्राम उपमा देना था। लेकिन किसी भी मरीज को उपमा नहीं दिया गया। इस दौरान एक मरीज के परिजन द्वारा दूध की मात्रा को लेकर सवाल किया गया तो भी उन्हें पूरा दूध नहीं दिया गया। ट्रॉलीमैन से जब हमने सवाल किया तो वह बोला- नाश्ता लेकर आए हैं। यानी नाश्ता मौजूद होने के बावजूद लोगों को बांटा नहीं गया। न ही किसी मरीज को इसकी जानकारी दी। 3. वार्ड बॉय पी रहे मरीजों का दूध : डाइट केवल मरीजों को ही दी जाती है, लेकिन वार्ड बॉय तक उनके हक का दूध पी रहे थे। एक वार्ड बॉय बड़ा भगोना लेकर दूध लेने पहुंच गया। इस पूरे माजरे को हमारी टीम ने वीडियो में भी कैद किया। जब हमारी टीम ने कैंटीन के कर्मचारियों से कम मात्रा में दूध देने और नाश्ता नहीं देने को लेकर सवाल किए तो उन्होंने चुप्पी साध ली। दूसरे वार्डों में भी हाल कुछ ऐसे ही थे। हम बांगड़ में बने वार्ड में गए तो वहां भी कैंटीन कर्मचारी कुछ मरीजों को सिर्फ दूध देते नजर आए। यहां पर भी मरीजों को नाश्ता नहीं दिया गया। एक वार्ड बॉय जग भरकर दूध लेता हुआ कैमरे में कैद हुआ। 4. मॉनिटरिंग तक नहीं : जब हमने बांगड़ के वार्ड में मौजूद नर्सिंग इंचार्ज से पूछा तो उन्होंने कहा कि नाश्ता बाद में आता, दूध पहले आता है। फिर कहा कि कैंटीन वाले को बोल दिया है वो देकर जाएगा। हमारी पड़ताल में ये भी सामने आया कि कैंटीन कर्मचारी वार्ड में नाश्ता या खाना देने आते हैं, तब कोई मॉनिटरिंग नहीं होती है। हॉस्पिटल में भर्ती कितने मरीजों को डाइट मिल रही है, कितनों को नहीं, इसका कोई मैकेनिज्म तक नहीं है। प्रशासन के अनुसार डेली 1 हजार मरीजों को यह डाइट दी जाती है। कहीं भी ऐसा सिस्टम नहीं था, जिससे यह मालूम किया जा सके कि कितने मरीजों को डाइट दी जा रही है। SMS हॉस्पिटल में अलग-अलग बीमारियों के मरीजों के लिए अलग-अलग तरह की डाइट है। सप्ताह के सातों दिन नाश्ता, लंच, दोपहर में सूप-चाय और डिनर शामिल है। इसके अलावा जिन मरीजों को सॉफ्ट या लिक्विड डाइट की जरूरत होती है उनके लिए भी प्रॉपर मेन्यू है। पूरा मेन्यू डायटीशियन की देखरेख में तैयार किया गया है। 1. नॉर्मल मरीजों के लिए हर दिन का अलग मेन्यू
नॉर्मल मरीजों को फुल डाइट दी जाती है। सप्ताह के सभी 7 दिनों के हिसाब से अलग-अलग मेन्यू है। दिन में दूध के साथ कभी कॉर्नफ्लेक्स, कभी दलिया, कभी उपमा तो कभी पोहा। लंच और डिनर में रोटी-दाल, पुलाव, सब्जी से लेकर दोनों टाइम फ्रूट देने का नियम है। लंच और डिनर के बीच में इवनिंग टाइम चाय/टमाटर सूप/ काला चना सूप देने का नियम है। 2. गंभीर मरीजों को दिन में चार टाइम डाइट
कोई मरीज ऑपरेशन के लिए पहुंचता है तो किसी को गंभीर बीमारी होती है। इस लिहाज से मरीजों को सॉफ्ट डाइट देने का मेन्यू बना रखा है। पूरे सप्ताह दिन में चार टाइम डाइट देने का नियम है। नाश्ते में दूध के साथ अलग-अलग दिन कॉर्नफ्लेक्स, दलिया, उपमा और पोहे के साथ लंच में खिचड़ी, प्लेन दाल, सब्जी और पुलाव होते हैं। 3. दिन में 6 बार लिक्विड डाइट
ऐसे मरीज जिनको डॉक्टर्स ने सिर्फ लिक्विड डाइट पर रहने की सलाह दी है, उनके लिए भी दिन में 6 बार अलग-अलग डाइट देने का नियम है। इसमें सुबह आठ बजे दूध के अलावा सुबह 10 बजे दाल पानी, दोपहर 12 बजे दूध, दोपहर 2 बजे कभी चावल का पानी, कभी दलिए का पानी, कभी नींबू पानी देने का नियम है। वहीं शाम चार बजे फिर से दाल पानी और शाम 6 बजे दूध देने का नियम है। इसमें भी मात्रा तय है। अब जानते हैं मरीजों के पास कैसे पहुंचता है खाना? SMS हॉस्पिटल में भर्ती मरीजों की डाइट तैयार करने का काम कॉन्ट्रैक्ट पर दिया हुआ है। हर वार्ड में मौजूद नर्सिंग स्टाफ भर्ती मरीजों की जरूरत के हिसाब से ऑनलाइन और ऑफलाइन कैन्टीन में डाइट लिखवा देता है। उस हिसाब से वार्डाें तक कॉन्ट्रैक्टर खाना तैयार कर पहुंचाते हैं। नर्सिंग सुपरिटेंडेंट कन्हैयालाल शर्मा ने बताया- एडमिट होने वाले सभी मरीजों के लिए भोजन की व्यवस्था होती है। वार्ड में रहने वाले नर्सिंग स्टाफ भर्ती मरीजों के लिए डाइट किचन से मंगवाते हैं। बीमारी के हिसाब से डायटीशियन की सलाह पर डाइट मरीजों को मिलती है।। एक मरीज पर 78 रुपए खर्च कर रही सरकार
हॉस्पिटल प्रशासन का दावा है कि रोज एक हजार मरीजों को दिनभर की सभी डाइट दी जा रही है। एक मरीज पर एक दिन की डाइट में 78 रुपए खर्च किए जा रहे हैं। इस लिहाज से डेली 78000 रुपए अकेले SMS हॉस्पिटल में खर्च हो रहे हैं। फिर भी मरीजों तक खाना नहीं पहुंच रहा है। जो पहुंच भी रहा है, वह आधा-अधूरा। इसके लेकर भास्कर ने SMS हॉस्पिटल के इंचार्ज डॉ. सतीश वर्मा से सवाल पूछे। उन्होंने बताया कि राज्य सरकार ने टेंडर कर किचन का कॉन्ट्रैक्ट दिया हुआ है। एक हजार डाइट के बाद टेंडर की शर्तों के अनुसार भुगतान किया जाता है।
