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भरतपुर दुर्ग को 13 बार आक्रमणों से बचाकर अजेय रखने वाली सुजानगंगा नहर में पानी लाने की कवायद शुरू हो गई है। बजट में इसके लिए प्रावधान किया गया है। कभी इस नहर का पानी मीठा और पीने लायक होता था। भरतपुरवासी इसके पानी से दाल पकाया करते थे। वक्त के साथ यह इतनी दूषित हुई कि इससे गैस रिसाव होने लगा और शहर पर महामारी का खतरा मंडराने लगा। 10 जुलाई को पेश किए गए बजट में प्रावधान किया गया कि डूंगरी बांध से बंध बरेठा होते हुए सुजानगंगा को लिंक किया जाएगा। आइए जानते हैं क्या है सुजानगंगा, इसका ऐतिहासिक महत्व क्या है
इतिहासकार सुधा सिंह के मुताबिक- महाराजा सूरजमल ने लोहागढ़ किले की सुरक्षा के लिए 1733 में सुजानगंगा नहर का निर्माण शुरू कराया था। यह 8 साल में बनकर 1741 में तैयार हुई। इसमें 650 कारीगरों ने रात-दिन काम किया। नहर 2.4 वर्ग किलोमीटर में फैले किले के चारों ओर करीब 2.9 किलोमीटर लंबी है। यह करीब 200-250 फीट चौड़ी और करीब 30 फीट गहरी है। किले की दीवार को फोर्ट वॉल और शहर की तरफ की दीवार को मोट वॉल कहा जाता है। लोहागढ़ पर अंग्रेजों ने 13 बार अटैक किया, लेकिन जीत नहीं सके। कोई भी दुश्मन किले के अंदर तक नहीं पहुंच सका। वजह थी किले के चारों तरफ बनी गहरी खाई, जिसमें युद्ध के वक्त पानी भर दिया जाता था और मगरमच्छ छोड़ दिए जाते थे। युद्धकाल में मगरमच्छों को खाना डालना बंद कर दिया जाता था। खाई में उतरकर किले तक पहुंचना मौत के मुंह में जाने से कम नहीं था। किले के अंदर कई महल और मंदिर हैं। इसमें किशोरी महल, हंसारानी महल, कचहरी कला, चमन बगीची, हम्माम, मथुरा द्वार, बिनारैन गेट, अटल बंध गेट, अनह गेट, कुम्हेर गेट, नीमदा गेट और चांदपोल गेट आदि शामिल हैं। वर्तमान में किले में लोग बसे हुए हैं। सुजानगंगा की हो रही दुर्दशा
सुजानगंगा ने भरतपुर के किले को बचाया, लेकिन इसे बचाने के लिए किए गए प्रयास विफल रहे। आज यह नहर सुसाइड पॉइंट के नाम से प्रसिद्ध है। इसमें सिर्फ गंदगी बची है। नहर को जोड़ने वाले पॉइंट (लिंक नहरें) खत्म हो चुकी हैं या उन पर अतिक्रमण किया जा चुका है। अब यह नहर मच्छर पैदा करती है और यहां गंदगी का अंबार लगा हुआ है। एक बार फिर भरतपुर के लोगों की उम्मीदें जगीं
मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा भरतपुर से ताल्लुक रखते हैं। इसलिए वे सुजानगंगा के हालात समझते हैं। वर्षों से सुजानगंगा के जीर्णोद्धार की मांग होती रही है। इस बार राज्य सरकार ने सुजानगंगा के लिए बजट में प्रावधान किया है। हालांकि पहले भी जीर्णोद्धार के लिए डीपीआर बनी, लेकिन काम नहीं हो सका। इस बार भरतपुर के लोगों को उम्मीद है कि मुख्यमंत्री इस नहर का कायाकल्प कर देंगे। बजट के प्रावधान के अनुसार, सुजानगंगा नहर को डूंगरी बांध से बंध बरेठा होते हुए लिंक किया जाएगा। सुजान गंगा के जीर्णोद्धार और सौंदर्यीकरण की मांग 1986 से उठाने वाले एडवोकेट श्रीनाथ शर्मा ने बताया- सुजानगंगा को डूंगरी या बंध बरेठा से लिंक करना असंभव है। ऐसा कोई चैनल ही नहीं है, जिससे बंध बरेठा से सुजानगंगा नहर में पानी लाया जा सके। सुजानगंगा तक पाइप लाइन के जरिए आ सकता है पानी
एडवोकेट श्रीनाथ शर्मा ने बताया- सुजानगंगा के लिए बजट में प्रावधान करना अच्छी बात है, लेकिन डूंगरी बांध से सुजानगंगा में पानी लाना बहुत मुश्किल है। ऐसी कोशिश की गई तो यह लगभग नामुमकिन, बेहद खर्चीली और लोगों को परेशान करने वाली प्रक्रिया रहेगी। बंध बरेठा से भरतपुर में पेयजल की सप्लाई पाइपों के माध्यम से होती है। सुजानगंगा नहर में पानी पाइपों से ही लाया जा सकता है। इसमें भी काफी समय लगेगा। सुजानगंगा में पानी अजान बांध से रामनगर दो मोरा होता हुआ चैनल के जरिए भरतपुर शहर के घोड़ा घाट पर आता था। तब सुजानगंगा नहर फ्रेश पानी से रिचार्ज होती थी। पूरे साल वही पानी चलता था। वर्तमान में बंध बरेठा से ऐसा कोई चैनल (लिंक नहर) नहीं है, जो सुजान गंगा नहर तक आती हो। सरकार को यह करना चाहिए कि बंध बरेठा से अजान बांध तक पानी आए और फिर अजान बांध से सुजान गंगा तक चैनल से पानी लाया जाए। 50 साल पहले पानी का मुख्य स्रोत होती थी सुजान गंगा नहर
श्रीनाथ शर्मा ने बताया- सुजान गंगा भरतपुर की लाइफ लाइन है। किसी समय पर सुजान गंगा पानी का भरतपुर शहर के पेयजल के लिए मुख्य स्रोत हुआ करता था। नलों से खारा पानी आया करता था। इसमें दाल नहीं पकती थी। तब लोग सुजानगंगा के पानी से दाल बनाते थे। आधी से ज्यादा आबादी सुजानगंगा नहर के पानी का इस्तेमाल करती थी। समय की मार और प्रशासन की लापरवाही के कारण सुजानगंगा दूषित होती चली गई। इतनी कि नहर से टॉक्सिक गैसों का रिसाव तक होने लगा। शहर पर महामारी का खतरा मंडराने लगा। तब काफी आंदोलन हुए। तत्कालीन भरतपुर MLA आरपी शर्मा ने विधानसभा में सुजानगंगा नहर का मुद्दा उठाया था। कोई सुनवाई नहीं हुई। इसके बाद 2003 में हाईकोर्ट में रिट दायर की गई। हाईकोर्ट ने ASI को डायरेक्शन दिए कि सुजानगंगा में 1 साल के अंदर फ्रेश पानी भरा जाए। लेकिन हाईकोर्ट के निर्देशों का भी पालन नहीं हुआ। सुजानगंगा नहर में विकास के नाम पर 10 करोड़ रुपए खर्च किए जा चुके हैं, लेकिन काम दिखाई नहीं देता। सुजानगंगा के विकास के लिए कई बार बन चुकी है DPR
श्रीनाथ शर्मा ने बताया- सुजानगंगा दूषित पड़ी है। किला जगह-जगह से जर्जर हो चुका है। पहले जर्जर हिस्सों को ठीक करना होगा। इसके बाद ही सुजानगंगा में पानी लाया जाना चाहिए। नहीं तो इस बजट का प्रावधान भी DPR तक सीमित रह जाएगा। सुजानगंगा को लेकर पहले कई DPR बन चुकी है। एक DPR में 49 लाख रुपए खर्च हुए थे। एक DPR राजस्थान सरकार की तकनीकी कमेटी द्वारा अप्रूव की हुई है। MNIT की ओर से भी अप्रूव की हुई है। वह केंद्र सरकार को भेजी भी जा चुकी है। इसलिए DPR पर पैसा खर्च करना व्यर्थ होगा। अगर बजट में DPR को ही सम्मिलित किया गया है तो यह भरतपुर की जनता के साथ धोखा है। पहले बनी हुई DPR किसी विदेशी कंपनी ने बनाई थी। उस पर काम किया जाना चाहिए था। अब सुजानगंगा के जीर्णोद्धार के लिए बजट आना चाहिए। इसमें लगभग 300 करोड़ रुपए खर्च होंगे। अगर सिर्फ पानी ले आया गया तो इसे और अधिक दूषित ही किया जाएगा। वसुंधरा की सरकार जाने के बाद नहीं हुआ सुजानगंगा के विकास का काम
श्रीनाथ शर्मा ने बताया- पूर्व सीएम वसुंधरा राजे ने सुजानगंगा नहर के लिए काम किया था। उन्होंने ASI डिपार्टमेंट से स्वीकृति ली थी कि पैसा हम देंगे। सुजानगंगा नहर में काम करवाएंगे। ASI डिपार्टमेंट राज्य सरकार को पैसा नहीं लगाने दे रहा था। जब वसुंधरा राजे सीएम थीं और ऊषा शर्मा ASI की डायरेक्टर थीं। उस दौरान सुबोध अग्रवाल को नोडल ऑफिसर बनाया गया था। तब यह सहमति ली गई कि आप पैसा खर्च करो आप इसे बनवा लो शर्त यह कि DPR हम अप्रूव करेंगे। हमारे पैरामीटर से हमारे इंजीनियर द्वारा इसका निर्माण कार्य करवाया जाएगा। इस दौरान पहली बार में 8 करोड़ रुपए वसुंधरा राजे ने अप्रूव कर दिए थे। लेकिन वसुंधरा राजे सरकार का समय खत्म हो गया और बात वहीं की वहीं रह गई। उसके बाद कांग्रेस सरकार में DPR नहीं बन पाई। सुजानगंगा के आसपास कुएं और नालों पर 5 साल पहले यह नोट लगा दिया गया था कि यह पानी पीने योग्य नहीं है। भरतपुर शहर आज भी दूषित पानी पी रहा है।

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