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प्रताप नगर स्थित ई-मित्र पर 16 निजी यूनिवर्सिटियों की फर्जी डिग्रियों के दस्तावेज मिलने के मामले में चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। अब तक की जांच के अनुसार इस फर्जीवाड़े में कई विश्वविद्यालय भी शामिल हैं। आरोपी ई-मित्र संचालक और उसके दो साथियों ने पूछताछ में बताया कि आवेदकों से मार्कशीट, डिग्री, माइग्रेशन सर्टिफिकेट के रुपए सीधे विश्वविद्यालयों के बैंक खातों में ऑनलाइन जमा करवाते थे। इसके बदले में विश्वविद्यालय इन्हें कमीशन देते थे। कमिश्नरेट पुलिस की एसआईटी जब जांच के लिए इन यूनिवर्सिटियों में पहुंची तो टीम को अंदर ही नहीं घुसने दिया। इस पर एसआईटी प्रमुख एसीपी बस्सी विनय कुमार आईपीएस ने महानगर मेट्रो कोर्ट-5 का दरवाजा खटखटाया और सर्च वारंट जारी करवाया। इसके बाद टीम ने आगे की जांच शुरू की। एसआईटी को अब तक 700 से अधिक फर्जी तरीके से डिग्री देने का पता चला है। यानी 700 युवक बिना कॉलेज गए और कक्षा में बैठे ही डिग्री धारक हाे गए। एसआईटी डिग्रियों में दर्ज एनरोलमेंट नंबर को यूनिवर्सिटी में दर्ज नंबर से जांच करने में जुटी है। राजस्थान, बिहार, झारखंड, यूपी, आंध्र और तेलंगाना के 16 विवि शामिल पुलिस को छापे में जिन 16 यूनिवर्सिटी के 3 हजार से ज्यादा दस्तावेज मिले थे। ये बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और राजस्थान की 16 निजी विवि हैं। इनमें से 700 से अधिक काे फर्जी तरीके से डिग्री देने का पता चला है। इनकी डिग्रियों का यूनिवर्सिटी के रिकॉर्ड से मिलान करवाया जा रहा है। दो साल में 10 करोड़ रुपए की डिग्रियां बांट चुके आरोपी एक-एक डिग्री 50 हजार से 2.50 लाख रुपए तक में बेची गई है। ऐसे में दाे साल में ही 10 करोड़ रुपए से अधिक रुपए में फर्जी डिग्रियां बांट चुके हैं। 29 फर्जी किराएनामे, 12 चेक बुक, 97 शपथ पत्र, 14 बैंकों की पास बुक, 13 डेबिट कार्ड, 7 माेबाइल, एक पेटीएम मशीन और 2 डीवीआर की जांच की गई। इसमें यूनिवर्सिटियों से बड़ा लेनदेन सामने आया है। पेन ड्राइव ने उगले कई राज
पुलिस ने 17 अक्टूबर काे छापा मारकर विकास मिश्रा, सत्यनारायण शर्मा, विकास अग्रवाल काे गिरफ्तार किया था। सात दिन की पूछताछ के बाद तीनों जेल में हैं। आरोपियों से बरामद हुए सीपीयू, मॉनिटर, प्रिंटर, दो लैपटॉप और दो पेन ड्राइव की जांच की जा रही है। आरोपियों ने जिस-जिस को डिग्रियां दी हैं, उनका रिकॉर्ड भी इकट्ठा कर रखा है। पेन ड्राइव में डिग्रियां लेने वालों के कई नाम सामने आए हैं। विशेष जांच को ही सर्च वारंट
राजस्थान हाईकोर्ट के एडवोकेट अभिषेक पाराशर ने बताया कि सर्च वारंट विशेष प्रकार के आपत्तिजनक मामले की जांच के लिए कोर्ट से प्राप्त किए जाते हैं, जो फर्जी तरीके से किए गए अपराध के सबूतों को खोजने, स्थान, व्यक्ति या वस्तु की सावधानी पूर्वक जांच करने की अनुमति देता है। नए कानून की धारा-97 के तहत ये सर्च वारंट केवल उचित कानूनी प्राधिकार के तहत ही जारी किए जाते हैं।

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