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वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने मंगलवार को लगातार सातवीं बार बजट पेश किया। इसमें मनोरंजन जगत के लिए कोई घोषणा नहीं होने से बॉलीवुड सेलेब्स में मायूसी है। ऐसा माना जा रहा था कि सरकार इस बार एंटरटेनमेंट टैक्स में कमी कर सकती है लेकिन इसमें कोई बदलाव नहीं हुआ। मौजूदा समय में फिल्म का टिकट 100 रुपए से कम है तो उसपर 12% GST लगता है लेकिन 100 रुपए से ज्यादा प्राइज वाली टिकट का GST स्लैब अलग है और इसपर 18% GST वसूला जाता है। दैनिक भास्कर से सेंसर बोर्ड के पूर्व चेयरमैन और फिल्म प्रोड्यूसर पहलाज निहलानी ने कहा कि फिल्मों के टिकट पर लगने वाले GST को खत्म किया जाना चाहिए था लेकिन ऐसा नहीं हुआ। पहलाज निहलानी बोले, बहुत से देशों में एंटरटेनमेंट पर टैक्स नहीं है इसलिए GST को इंडिया में भी एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री से पूरी तरह हटाना चाहिए। सरकार को ये सोचना चाहिए कि अपने कल्चर और भाषा को बचाने के लिए ज्यादा से ज्यादा फिल्में बनाने की कोशिशों को बढ़ावा दिया जाए। मौजूदा समय में जिस तरह का बिजनेस आ रहा है, उसकी वजह से अच्छे विषयों पर फिल्में नहीं बन पा रही हैं और पैसे बनाने के लिए हल्के विषयों और वल्गर कंटेंट पर फिल्में बनने की मजबूरी हो गई है। निहलानी ने आगे कहा, फिल्में कॉमन मैन के लिए बनती हैं। छोटे से छोटा मजदूर भी जो है पिक्चर देखता है अगर जो फिल्म टिकट सस्ती हो जाए और इस पर टैक्स न लगे तो इससे सिंगल स्क्रीन सिनेमा को बूस्ट अप मिलेगा। आइए जानते हैं बजट पर फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े बाकी लोगों ने क्या कहा… एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री हमेशा नजरअंदाज की जाती है: शब्बीर बॉक्सवाला शेरशाह, मिशन इस्तांबुल और लूट जैसी फिल्मों के प्रोड्यूसर रहे शब्बीर बॉक्सवाला ने कहा कि बजट सिर्फ गरीबों के लिए ही होता है, एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री को हमेशा नजरअंदाज किया जाता है। ऐसा लगता है कि बजट हमेशा गरीबों पर फोकस होता है, इसमें अमीरों पर कोई फोकस नहीं होता जबकि वही गरीबों को रोजगार उपलब्ध करवाते हैं। सरकार मनोरंजन जगत को हमेशा ओवरलुक करती है जबकि एक प्रोड्यूसर किसी फिल्म के जरिए 300 से ज्यादा परिवारों को रोजगार देता है। सरकार इतने बड़े लेवल पर कहां रोजगार दे पा रही है। जिस तरह से फिल्म बॉक्स ऑफिस पर चल रही है, बहुत बुरा हाल है, थिएटर बंद हो चुके हैं, ऐसे में सरकार को मदद करनी चाहिए थी। फिल्म प्रोड्यूसर सुनील दर्शन ने कहा, एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री को हमेशा नजरअंदाज किया जाता है। सरकार मनोरंजन जगत के पहलुओं पर बिल्कुल ध्यान नहीं देती है।

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