गर्भधारण या स्तनपान के समय अगर मां में खून की कमी है या कुपोषित है तो उसके नवजात में भी इनकी कमी पाई जाती है। इस दिशा में एमबी के बाल चिकित्सालय ने अनूठी पहल की है। यूं तो यह अस्पताल बच्चों का है, लेकिन यहां कुपोषित वार्ड में आने वाले बच्चों की मांओं का वजन और लंबाई ली जा रही है। इसके जरिये बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) मापा जाता है।
साथ ही हिमोग्लोबिन भी चेक किया जा रहा है। जांच के दौरान जो मांएं कुपोषण या खून की कमी का शिकार मिलती है, उन्हें आयरन, कैल्शियम के तीन माह तक के सप्लीमेंट दिए जाते हैं। उनकी सही डाइट के लिए भी काउंसलिंग की जाती है। इसके लिए वीडियो और डाइट चार्ट का सहारा लिया जाता है। बीते 4 साल में अब तक इस तरह की 2 हजार 833 महिलाओं की जांच की गई। इनमें से औसत करीब 60 फीसदी मांओं में कुपोषण या खून की कमी मिली। मां कुपोषित तो बच्चे पर भी असर, शारीरिक-मानसिक विकास में आती है बाधा वर्ष 2021 से लेकर 2025 (अप्रैल महीने तक) तक कुल 4169 बच्चे कुपोषित वार्ड में भर्ती हुए थे। इनकी मांओं में से 60 से 70 प्रतिशत की जांच की गई। इनमें भी 60 से 70 फीसदी कुपोषित या खून की कमी का शिकार रहीं। ऐसे में उनके बच्चे भी कुपोषण और खून की कमी का शिकार रहे। इन्हीं आंकड़ों ने चिंता बढ़ा दी थी। बाल चिकित्सालय के विभागाध्यक्ष डॉ. आर.एल. सुमन ने बताया कि आदिवासी अंचल में गरीबी व जानकारी के अभाव में महिलाएं कुपोषण का शिकार हो जाती हैं। गर्भावस्था के दौरान ख्याल नहीं रखा जाए तो कई बार उनके बच्चे भी कुपोषित होते हैं। इसका असर बच्चे के मानसिक और शारीरिक विकास पर भी पड़ता है। इस पहल के जरिये मांओं का न्यूट्रिशन स्टेटस सही किया जा रहा है। जब मां स्वस्थ होगी तो स्तनपान के दौरान बच्चा भी जल्दी स्वस्थ होगा। भविष्य में गर्भावस्था के दौरान भी इससे फायदा मिलेगा। काउंसलिंग का काम नर्सिंग स्टाफ जुगल सेन, शबनम, जशोदा, कृपा पटेल और प्रकाश गौड़ संभालते हैं।
