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2800 साल पहले जब प्राचीन ओलिंपिक खेले जाते थे, तो महिलाओं को हिस्सा लेना तो दूर खेल देखने तक की परमिशन नहीं थी। ऐसा इसलिए, क्योंकि तब एथलीट्स बिना कपड़ों के उतरते थे। कोई विवाहित महिला ओलिंपिक में दिख भी जाए तो उसे पहाड़ से नीचे फेंकने के आदेश थे। 1896 में मॉडर्न ओलिंपिक शुरू हुए, इनमें भी कोई महिला नहीं थी। इसके 50 साल बाद हर 10 में से एक एथलीट महिला होती थी। अब 2024 में जाकर जाकर महिलाओं की संख्या पुरुषों के बराबर हुई, यानी पेरिस ओलिंपिक में हर दूसरी एथलीट महिला होगी। अमेरिका और चीन को तो पिछले 2 ओलिंपिक गेम्स में महिलाओं ने ही ओलिंपिक टॉपर बनाया। उन्होंने अपने देश के पुरुषों से ज्यादा मेडल जीते। भारत भी अब इसी राह पर है, देश के पिछले 15 में से 7 मेडल वुमन एथलीट्स के नाम ही रहे। देश ने विमेंस एथलीट्स की संख्या भी तेजी से बढ़ाई है। स्टोरी में 5 पॉइंट्स में जानेंगे ओलिंपिक में महिलाओं की भागीदारी और भारत अब कैसे विमेंस एथलीट के दम पर आगे बढ़ रहा है… 1. पहले ओलिंपिक में महिलाओं को नहीं मिली थी एंट्री
1896 में पहली बार ओलिंपिक गेम्स आयोजित हुए थे। तब किसी भी देश की टीम में एक भी महिला एथलीट नहीं थी। 1900 में हुए दूसरे ओलिंपिक में पहली बार महिलाओं को एंट्री मिली। तब 22 महिला एथलीट्स ने हिस्सा लिया था। ये कुल एथलीट्स की संख्या का महज 2.2% था। 1996 में अटलांटा में हुए ओलिंपिक तक महिलाओं की भागीदारी महज 34% तक पहुंची थी। टोक्यो में यह नंबर 48% तक पहुंचा। अब पेरिस में पहली बार 50% महिला और 50% ही पुरुष एथलीट हिस्सा लेने वाले हैं। यानी 129 साल में पहली बार दोनों कैटेगरी के बराबर एथलीट्स होंगे। 2. अमेरिका-चीन को पुरुषों से ज्यादा मेडल महिलाएं दिला रहीं 3. भारतीय महिलाओं ने 9 ओलिंपिक खेले ही नहीं 4. देश के आखिरी 15 में 7 मेडल महिलाओं ने दिलाए 5. टोक्यो ओलिंपिक में भारत ने पहली बार 55 महिला खिलाड़ी उतारीं ग्राफिक्स: अंकलेश विश्वकर्मा, संदीप पाल, कुणाल शर्मा

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