धौलपुर में राष्ट्रीय चंबल घड़ियाल अभयारण्य और टीएसएएफ फाउंडेशन इंडिया ने एक महत्वपूर्ण संरक्षण पहल की है। चंबल नदी में पाई जाने वाली बाटागुर प्रजाति के कछुओं के संरक्षण के लिए विशेष प्रयास किए गए। इस वर्ष परियोजना के तहत 160 घोंसलों को संरक्षित किया गया। मोर बसईया गांव के पास स्थित हैचरी में अंडों को सुरक्षित रखा गया। इन अंडों से निकले 3267 बच्चों को उनके प्राकृतिक आवास चंबल नदी में छोड़ा गया। चंबल नदी में बाटागुर की दो प्रजातियां पाई जाती हैं- लाल तिलक धारी (रेड-क्राउंड रूफ्ड टर्टल) और ढोर (थ्री स्ट्राइप्ड रूफ्ड टर्टल)। प्रभागीय वनाधिकारी डॉ. आशीष व्यास और चेतन कुमार ने इस कार्यक्रम को प्रतिवर्ष दोहराने का सुझाव दिया है। हैचरी का संचालन क्षेत्रीय वनाधिकारी दीपक मीना और टीएसएएफआई के पवन पारीक के मार्गदर्शन में किया गया। टीएसएएफआई के फील्ड कर्मचारी संतराम और रामानंद ने 25 घंटे नदी पर रहकर हैचरी की सुरक्षा और देखभाल की। 23 मई को मनाए जाने वाले विश्व कछुआ दिवस पर यह कार्यक्रम विशेष महत्व रखता है। कछुए जलीय पारिस्थितिकी तंत्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।