एसजेपी मेडिकल कॉलेज के खेल मैदान में पिछले करीब 7 माह से गंदा पानी भरा है, जिसकी वजह से स्टूडेंट्स से स्पोर्ट्स फीस के 97 लाख रुपए से ज्यादा की सालाना राशि वसूलने के बाद भी खेल के इंतजाम नहीं हैं। कॉलेज में करीब 3 करोड़ रुपए लागत के सीवर ट्रीटमेंट प्लांट की मोटरें खराब व लाइनें टूटी होने से खेल मैदान में शौचालयों व बरसात का गंदा पानी भरा है, जिससे संक्रमण का भी खतरा है। असल में मेडिकल कॉलेज में नॉन टीचिंग ब्लॉक के पीछे कॉलेज व हॉस्टल के शौचालयों का ट्रीटमेंट प्लांट करीब 3 करोड़ रुपए की लागत से लगाया हुआ है, जिसमें करीब 7 मोटरें लगी हैं। ये गंदे पानी को केमिकल के जरिए ट्रीट करके साफ पानी पौधों के उपयोगी और गंदा मल बाहर नाले में फेंकने का काम करती हैं। लेकिन पिछले दिनों मेडिकल कॉलेज में कंस्ट्रक्शन का काम चला था, जिसकी वजह से सीवर ट्रीटमेंट प्लांट की की पाइप लाइन टूट गईं और मोटरें खराब होने से बंद हो गईं। इन्हें आजतक ठीक नहीं कराया गया। करीब एक साल से पानी ग्राउंड में भर रहा था, लेकिन धूप में सूख जाता था। इस बार जुलाई में भारी बरसात हुई, जो खेल मैदान के साथ-साथ बाहर आस पास के इलाकों में भी भर गया। सीवर का गंदा पानी सूखना तो दूर बरसात के पानी से समस्या दोगुनी खराब हो गई। जुलाई के बाद करीब 7 माह से बरसात व सीवर का गंदा पानी सूख ही नहीं पाया है और इसे बाहर निकलवाने के कोई सार्थक प्रयास नहीं हुए हैं। दिन पर दिन सीवर का पानी मैदान में बढ़ ही रहा है। स्टूडेंट्स की खेल गतिविधियां भी नहीं हो पा रही हैं। साथ ही गंदे पानी से संक्रमण का खतरा भी बना है। प्रत्येक स्टूडेंट से सालाना 16170 रुपए के हिसाब से 600 स्टूडेंट्स के 97 लाख से ज्यादा जमा मेडिकल कॉलेज में हर साल प्रत्येक स्टूडेंट्स से 16 हजार 170 रुपए के हिसाब से स्पोर्ट्स फीस एंड एकेडमिक फंड के नाम से जमा की जाती है।वर्तमान में एक बैच में 150 स्टूडेंट्स हैं और फोर्थ ईयर तक के 600 स्टूडेंट्स से सालाना 16 हजार 170 रुपए प्रति स्टूडेंट के हिसाब से 97 लाख 2 हजार रुपए जमा हो रहे हैं। परंतु कॉलेज प्रशासन पूरी साल में कोई भी खेल की गतिविधि का सामान व खेल मैदान तक उपलब्ध नहीं करा सका है। गंदे पानी के बीच रखे हैं बिजली ट्रांसफार्मर गंदे पानी के बीच बिजली के ट्रांसफार्मर रखे हैं। जिनके खराब होने पर उन तक पहुंचने का रास्ता तक नहीं है। पिछले दिनों इसी वजह से इन्हें ठीक करने में प्रशासन व बिजली विभाग के अधिकारियों व इंजीनियरों को दिक्कत का सामना करना पड़ा था। करंट आने का खतरा अलग है।